लिखने से पहले भयंकर टाईप का कंफ्यूजन हो रहा था। कंफ्यूजन की तुम्हें तुम कहूं या आप? फिर लगा तुम कहना ज्यादा करीब रहेगा। मीडिया में हमें अलग से किसी को सलाम-नमस्ते कहने से बचने को कहा जाता है। लेकिन मैं एक बार नहीं बार-बार इस तरह के नियम तोड़ने को तैयार हूं अगर इस देश को बार-बार टीना जैसी बहादुर बेटियां मिलती रहें।
पिछले दिनों दोस्तों ने बताया। बताया कि तुमने अतहर आमिर के साथ शादी करने का फैसला किया है। सुनते ही मैं समझ गया था कि ये वही अतहर होगा जिसने 2015 के सिविल सर्विसेज़ में तुम्हारे साथ इस एग्जाम में टॉप किया था। दूसरे नंबर पर। जैसे ही सुना, सच कहता हूं इतनी ख़ुशी मिली थी बता नहीं सकता। ये ख़ुशी इस बात के लिए नहीं थी कि तुम्हें एक शानदार जीवन साथी मिला है। बल्कि ये ख़ुशी इस वजह से थी कि तुमने एक मजबूत फैसला लिया था। वो फैसला जो समाज के ढर्रे को तोड़ने वाला था।
मेरे दिमाग में सबसे पहली चीज़ जो आई थी वो थी। टॉप करने के बाद तुम्हारा अपने कॉलेज लेडी श्री राम में दिया गया लेक्चर। जिसमें तुमने कहा था, 'लड़कियों जो करना है करो, लेकिन ये मर्दों की दुनिया है। यहां लड़ना है और जीतना है तो अपनी चमड़ी मोटी कर लो। "
उसी दिन समझ में आ गया था। तुम से उम्मीद करनी ही चाहिए। तभी समझ में आ गया था अगर मौक़ा लगा तो तुम लड़ोगी। फैसले तुम्हारे मजबूत होंगे ही होंगे। शादी का फैसला भी ऐसा ही था। ख़ुशी हुई। तुम्हारे लिए शायद ये आम बात रही होगी। लेकिन हमारे यहां की सोसाइटी के लिए ये बड़ी बात थी। मेरे लिए भी आम बात नहीं थी। क्योंकि हमारे समाज में लड़कियों को आज भी फैसले लेने की आज़ादी नहीं है। उन्हें तो घर से बाहर निकले की भी आज़ादी नहीं। शादी तो बड़ी बात हो गई।
शादी के फैसले वाली बात जैसे ही सुनी। तभी दिमाग में ये डर घर कर गया था। डर ये कि बवाल करने वाले बवाल जरूर करेंगे। उनसे पचेगा नहीं। उनसे ये तो पचता ही नहीं कि लड़की अपनी मर्ज़ी से शादी कर ले। फिर तुमने तो इन चोट्टों के दिमाग पर ही अटैक कर दिया। तुमने तो उस लड़के से शादी करने का फैसला ले लिया। जो न तो तुम्हारी जाति का है और न ही तुम्हारे धर्म का।
आज वो डर सही निकला। हिन्दू महासभा ने अपनी वेबसाइट पर तुम्हारे पापा के नाम एक ख़त पोस्ट किया है। जिसमें उन्होंने तुम्हारे पिता जी से इस शादी को टालने को कहा है। और तुम्हें मनाने को। एक दूसरा ऑप्शन भी दिया है। कहते हैं या अगर शादी करनी मजबूरी ही है तो फिर अतहर को पहले हिंदु धर्म में मिला लिया जाए।
मुझे पता है बड़ी और बुरी ताकतों से लड़ना आसान काम नहीं होता है। लेकिन यहां इससे भी बड़ी बात ये है कि अब तुम्हारे मजबूत कंधों पर एक जिम्मेवारी भी है। जिम्मेवारी देश की उन तमाम लड़कियों को ताकत देने की। देश की उन तमाम लड़कियों को प्रेरणा देने की। जो शायद तुम्हें देख-देख अपने सपने बुनती होंगी। जो शायद अपने बंद कमरों की खिड़कियों से ही सही, उचक-उचक कर बाहर की दुनिया देखना सीख रही होंगी। जिम्मेवारी उनकी। जिम्मेवारी उनके भरोसे को न टूटने देने का। तुम्हें अब लड़ना है। लड़ना है हर उस ढकोसले से जिसके नाम पर लड़कियों को बार-बार घरों में कैद कर दिया जाता है। उनेक फैसलों को घरों में चीख बना कर दबा दिया जाता है।
मुझे ये भी पता है कि ये जिम्मेवारियों वाली बात। कायदे से सही नहीं है। हर लड़की को अपनी जिम्मेवारी लेनी चाहिए। अपने हक़ की लड़ाई लड़नी चाहिए। अपने फैसले की लड़ाई। लड़ाई अपने अस्तित्व की। लड़ाई खुद के वजूद की। लेकिन, ये ताकत उन्हें कहां से मिलेगी? ये ताकत उन्हें मिलती है देख कर। शायद तुम्हारे फैसले ने ही न जाने कितनों को ही ताकत दी होगी।
याद रखना ये वही देश है जो महारानी लक्ष्मीबाई के नाम के नारे लगाता है। बच्चों को महारानी पद्मावती के किस्से सुनाए जाते हैं। जहां देवी मां को पूजा जाता है।
बस इतनी सी गुजारिश है। मौक़ा मिला है। बता दो इन निकम्मों को! तुम क्या चीज़ हो। तुमने देशभर में लौंडों के वर्चस्व वाले इलाके में टॉप किया है। तुमने पहले भी कर दिखाया है। उम्मीद है फिर से लड़ोगी अगर जरूरत हुई तो।
हो सकता है। घर वाले। मम्मी-पापा। अपने बच्चे से प्यार में डरते हुए ही तुमसे फैसले को टालने को कहें। लेकिन उन्हें समझाना, उन्हें बताना कि अगर आज तुमने हार मान लिया। तो इस देश की ना जाने कितनी ही बेटियां अपने घर की चार दिवारियों में ही हार जाएंगी।
और तुमने इश्क किया है। और हमें फ़क्र है इस बात का। फ़क्र है कि तुमने खुद की पहचान के तले अपने खुद के होने के अस्तित्व को खोने नहीं दिया। अब इश्क़ किया है तो इसे मुकम्मल भी तुम्हें ही करना है।