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Menstruation Related To Sins And Not Health
रजोधर्म में पाप-पुण्य! स्वास्थ्य पर बहस क्यों नहीं?
Updated Sun, 26 Jun 2016 06:02 PM IST
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Women lash themselves with leaves of the Aghada plant along the banks of the Bagmati River, during the Rishi Panchami festival, in Kathmandu
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विस्तार
ऋषि पंचमी व्रत के अनुसार "शास्त्रों में लिखा है कि रजस्वला स्त्री पहले दिन चंडालिनी, दूसरे दिन ब्रह्म हत्यारनी, तीसरे दिन पवित्र धोबिन के समान होती है।" ये कौन से शास्त्र हैं जो स्त्री को उपरोक्त उपमाएं देकर उसका अपमान कर रहे हैं? क्या है ऋषि पंचमी व्रत और इसका उद्देश्य क्या है? वास्तव में हिन्दू धर्म में वर्णित ऋषि पंचमी व्रत का उद्देश्य है मासिक धर्म के समय स्त्री पर लगे पाप से छुटकारा पाना, ये व्रत स्त्रियों द्वारा भाद्रपद शुक्ल पक्ष पंचमी को किया जाता है। 21वीं सदी में रजोधर्म को पाप-पुण्य से जोड़ना कितना पिछड़ा और अप्रासंगिक लगता है लेकिन वास्तविकता ये है कि अधिकांश भारतीय समाज में आज भी ऐसी रूढ़िवादी परम्पराओं का बड़ी निष्ठा से पालन किया जाता है। उन परम्पराओं में सभी बातें पूर्णतः नकारात्मक नहीं हैं। कुछेक बातें स्त्री, स्वास्थ्य या आराम से सम्बंधित भी हैं।
उदाहरण के लिए हम ऋषि पंचमी व्रत कथा को लेते हैं जिसका संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है- "एक समय विदर्भ देश में एक ब्राह्मण अपनी स्त्री तथा पुत्र-पुत्री के साथ रहता था। पुत्री विधवा थी। एक बार वह एक शिला पर लेटी आराम कर रही थी कि उसके शरीर में कीड़े पड़ गए। यह सब ब्राह्मण ने देखा और इसका कारण पता लगाया तो ज्ञात हुआ कि पूर्व जन्म में इसने रजस्वला होते हुए भी घर के बर्तन आदि छू कर पाप किया था।"
यह कथा भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर को सुनाई थी। जो स्त्री रजस्वला होते हुए भी घर के काम करती है वो नरक को जाती है। पूर्व जन्म में वृजासुर का वध करने के कारण इन्द्र को ब्रह्म हत्या का महान पाप लगा था। उस समय ब्रह्मा जी ने उस पर कृपा करके उस पाप को चार स्थानों में बांट दिया था यथा- यथा अग्नि (धूम से मिश्रित प्रथम ज्वाला), नदियों (वर्षाकाल के पंकिल जल), पर्वतों (जहाँ गोंद वाले वृक्ष उगते हैं) में तथा स्त्रियों (रजस्वला) में। अत: मासिक धर्म के समय लगे पाप से छुटकारा पाने के लिए यह व्रत स्त्रियों द्वारा किया जाना चाहिए। इस कहानी में हमें एक सकारात्मक बात यह देखने को मिलती है कि संभवतः ये परम्पराएं स्त्री के स्वास्थ्य व आराम को ध्यान में रखते हुए बनाई गयी होंगी, जिसमे स्त्रियों को शारीरिक कार्य करना वर्जित था। किन्तु साथ ही एक नकारात्मक बात यह भी उभर कर आती है कि स्त्री स्वास्थ्य को पाप-पुण्य से क्यों जोड़ा जाए? किसी जैविक प्रकिया को धार्मिक क्यों बनाया जाए?
स्त्रियां आज भी इन्हीं दकियानूसी परम्पराओं से मुक्ति पाने के लिए संघर्षरत हैं। इसका एक उदाहरण स्त्रियों का शनि मंदिर में प्रवेश को लेकर संघर्ष था। वास्तव में ये संघर्ष किसी पूजा पाठ से कम सम्बद्ध था और नज़दीकी से ये इस बात से सम्बद्ध था कि एक हेल्थ हाईजीन का मुद्दा स्त्रियों को गुलाम बनाने की वजह क्यों बन रहा है? किसी स्थान पर प्रवेश को निषिद्ध करने का कारण क्यों बन रहा है? इसीलिए ये संघर्ष सटीक भी था। हमें ऐसी सभी रूढ़ियों का विरोध करना होगा, आज़ादी चाहिए ऐसी सभी रूढ़िवादी और बेतुकी परम्पराओं से। निर्माण करना होगा एक ऐसे समाज का जिसमें सभी को मासिक धर्म से सम्बंधित आवश्यक बातों से अवगत कराया जाए, इसे स्वास्थ्य से ही जोड़ कर देखा जाए। इसे हव्वा बनाकर रखने के बजाय इसपर खुलकर बातचीत की जाए।
साभार - मेदिनी पाण्डेय
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