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पर्यावरण के लिए बातें तो सब करते हैं लेकिन इसके लिए काम करने की बारी आती है तो सब सरकार और शासन पर थोप कर अपनी तरफ से छुट्टी कर लेते हैं। लेकिन दुनिया में कुछ लोग ऐसे भी हैं कि जो वह बोलते हैं वो डेफिनेटली करते हैं। मुंबई में रहने वाली 31 साल की मीरा शाह शहर में रहने वाले उन लोगों के मिसाल हैं। जो कचरे को खुलेआम फेंकना और बेवजह सामान की बर्बादी करने को अपनी मजबूरी बताते हैं। मीरा ने अपनी लाइफ स्टाइल को ऐसा सेट कर लिया है कि उनकी जिन्दगी में अब कचरे का नामो निशान नहीं है।
मीरा शाह ने अपनी जिंदगी को एक दायरे में बांधते हुए तय किया है कि अब वो ऐसा कोई सामान नहीं खरीदेंगी जिसकी घर में कोई खास जरूरत न हो। यहां तक कि मीरा ने पिछले दो सालों से कपड़े तक नहीं खरीदें हैं। उनका कहना है कि मैं जिन्दगी में अंग्रेजी के चार शब्दों में यकीन करती हूं। रिफ्यूज, रिड्यूस, रीयूज और रीसाइकिल।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक मीरा कहती हैं कि मुझे इसके बारे में जानकारी नहीं थी तो ऐसा कोई उद्देश्य भी नहीं था। लेकिन अखबारों में पढ़कर और टीवी की कुछ रिपोर्ट्स देखने के बाद तय किया कि गैरजरूरी खरीददारी से पर्य़ावरण को नुकसान होने से बचाउंगी। उनकी छोटी छोटी पहल काम आने लगी। लोगों के तारीफों के बाद उनका हौसला और बढ़ा। अब उनका पूरा परिवार मीरा शाह के ही कदमों पर चलता है।
मीरा के पति और सास ससुर भी इसमें उनका सहयोग करते हैं। उन्होंने अपनी सोसाइटी में बायोकंपोस्ट सिस्टम भी लगवा दिया है। जिसमें सूखा और गीला कचरा अलग अलग जगहों पर रखा जाता है। मीरा कहीं भी जाती हैं तो साथ में एक डिब्बा लेकर चलती हैं। जिन सामानों का इस्तेमाल घर पर हो सकता है उन्हें वो फेंकने के बजाय घर ले आती हैं। यहां तक कि मीरा ने सैनिटरी नैपकिन तक इस्तेमाल करना बंद कर दिया। मीरा का यह छोटा कदम बड़े बदलाव में बदल सकता है अगर हम और आप भी इस तरह के छोटे-छोटे प्रयास अपने अपने घरों में करें।