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हमें बचपन से नसीहतों की घुट्टी पिलाई जाती है। हम घर से बाहर निकलते हैं तो पानी की बोतल के साथ-साथ मां की दी हुई नसीहतों की पोटली भी रख लेते हैं। हमें बताया जाता है कि फलां काम मत करो, क्योंकि वह गलत या बुरा है। अगर इतने पर ही बिना 'बहस' किए बात मान लेते हैं तो 'अच्छी लड़की' बन जाते हैं और अगर पलटकर कुछ पूछ लेते हैं तो बद्तमीज़ी का ठप्पा लगा दिया जाता है। हम जब तक सबकुछ चुपचाप स्वीकारती जाती हैं तबतक 'अच्छी' बनी रहती हैं, अगर हम 'खुद' जैसी हो जाएं तो बुरी बन जाती हैं।
आपको जब तमाम बातें समझायी जाती हैं तो क्या उन बातों के पीछे की वजह जानने का आपका मन नहीं करता? करता ही होगा, पर आप अच्छी बनी रहने की कोशिश में कई बातें यूं ही मान लेती हैं। हम में से ही कुछ 'आधुनिक' लड़कियां ये भी तर्क देती हैं कि उनके ऊपर कोई पाबंदी नहीं है पर वो परिवार के ख़िलाफ़ कोई काम कर के उन्हें हर्ट नहीं करना चाहतीं। ऐसी लड़कियां ये समझती ही नहीं कि वो गलतफहमी का शिकार हैं, जिस दिन उन्होंने कहा कि वो यूं ही शहर का एक चक्कर लगाना चाहती हैं; घरवाले क्यों, कब और क्या ये ज़रूरी है जैसे सवालों के साथ उनके सिर पर खड़े होंगे, पर वो शांत रहकर दिल को तसल्ली देती हैं कि ये उनकी मर्ज़ी है कि वो मनमर्ज़ी नहीं करना चाहती।
लड़कियों के बारे में सबकुछ निर्धारित करना और लड़कियों के चरित्र को अपने पैमाने में मापना समाज की रवायत रही है। पुरुषवाद हमें निर्देश देता है और हम उसकी सहचरी बनकर सबकुछ मानती चली जाती हैं। त्याग की देवी बनकर हम इतने में ही खुश हो लेते हैं कि हमारे इस त्याग से लोग तो खुश हैं। और ये 'लोग' अपने निर्देषों को समाज की नैतिकता का लिहाफ़ ओढ़ा कर और भी वाज़िब बना देते हैं।
इस्लाम लड़कियों को कितनी छूट देता है इससे ऊपर उठें तो हम पाएंगे कि इस धर्म की लड़कियां वाकई तथाकथिक सामाजिक नैतिकता के गिरफ़्त में हैं। इन्हें लेकर आए दिन कानून बनाए जाते हैं फतवे जारी किए जाते हैं जिसमें इनकी एक ही प्रकार की भागीदारी होती है, वो ये कि ये चुपचाप उसे स्वीकार कर सभ्य बनी रहें।
हाल ही में पाकिस्तान के एक विधेयक में एक ऐसा मसौदा पेश किया गया जिसके अनुसार पति को पत्नी की 'हल्की पिटाई' करने की इजाज़त होगी। इस विधेयक को काउंसिल ऑफ़ इस्लामिक आइडिऑलजी के अंतर्गत रखा गया है जिसके अनुसार स्कूलों, अस्पतालों और कार्यालयों में मर्द और औरत के बीच पाबंदी होनी चाहिए। विधेयक में यह भी कहा गया है कि औरतें अगर ग़ैर मर्दों से बात करें, हिजाब न पहनें, पति का कहा न मानें या जानवरों व दूसरी चीज़ों के साथ सेल्फी लें तो उनके पति उनकी 'हल्की पिटाई' कर सकते हैं।
https://twitter.com/maryamshabbir08/status/737236263225446400
ऐसे कानूनों पर बहस करने वाले बुद्धिजीवियों से जानने की इच्छा है कि ग़ैर मर्दों से बात करने में दिक्कत क्या है? क्या आप अपनी बीवियों पर भरोसा नहीं करते? या फिर आपकी संकीर्ण सोच मर्द और औरत के बीच सिर्फ़ एक ही रिश्ता समझती है? हिजाब पहनना अच्छा या बुरा कुछ भी हो सकता है, पर हिजाब थोपना क्या सही है? अगर आप तमाम सामाजिक और वैज्ञानिक मापदंडों के आधार पर भी इसे सही ठहराना चाहें तो भी क्या आपको नहीं लगता कि उस हिजाब के अंदर हाड़-मास की बनी पुतलियों से ये पूछ लेना चाहिए कि - महिलाओं, क्या धूप-धूल और समाज से बचने के लिए तुम हिजाब पहनना पसंद करोगी? पर आप नहीं पूछते.. आप सिर्फ़ थोपते हैं। आपके अनुसार उनमें सोचने-समझने की क्षमता है ही नहीं। पति का कहा न करने पर पत्नी की हल्की-सी पिटाई उचित है, यही कह रहे हैं न आप? तो जनाब! ये आपकी हल्की मानसिकता को दर्शाता है। आपको ये समझने में और कितने साल लगेंगे कि पत्नी आपकी अनुचरी नहीं आपकी हमसफर है। शादीशुदा ज़िंदगी में आप दोनों की बराबर की भागीदारी होती है, और इस बराबर की भागीदारी में बराबर का अधिकार भी आता है। किस आधार पर आप उनकी 'हल्की-सी पिटाई' करने को सही ठहरा रहे हैं। आप उनके मां-बाप हैं? गुरू हैं? कानून आपको ये अधिकार क्यों दे कि आप सबकुछ खुद निर्धारित करें और जब मन चाहे तीन बार तलाक बोलकर बीवी की ज़िंदगी तहस-नहस कर दें? आपको फोटो खिंचाने पर भी आपत्ति है। आप महिलाओं को रोबोट समझते हैं जिनकी कोई भावनाएं नहीं होतीं। वो खुला आसमान नहीं देखना चाहतीं, उनमें लोगों से बात करने की इच्छा नहीं होती, ज़िंदगी को खुशनुमा बनाने की ललक नहीं होती। वो हिजाब में कैद रहें और सिर्फ़ आपके सामने पेश हों। तरस आता है मुझे आपकी इस बुद्धिमता पर। अपनी समझ का दायरा बढाएं जनाब क्योंकि आप हमें कैद करेंगे तो हम भी बगावत करना सीख ही जाएंगी।
और ऐसा ही कुछ हुआ है पाकिस्तान में। पाकिस्तानी महिलाओं ने जिस पुरज़ोर तरीके से इस विधेयक का विरोध किया वो काबिल-ए-तारीफ़ है। उन्होंने सोशल मीडिया पर गर्जना भरे स्वर में अपने सुर बुलंद किए और बता दिया कि बहुत हुआ सम्मान.. अब और नहीं।
https://twitter.com/Nidabutt9/status/737236172330676225
वो सरज़मीं जहां औरतों ने सिर्फ़ सुनना और स्वीकार करना सीखा है, अब चीख रही है। निदा ने अपने ट्वीट में कहा है कि उनके साथ मार-पिटाई हुई तो ख़ामियाज़ा भुगतना पड़ेगा। पेशे से डॉक्टर शगुफ्ता ने लिखा है कि मुझे मारने की कोशिश करो, मैं तुम्हारे हाथ तोड़ दूंगी। उसके बाद जो भी हो, अल्लाह पर छोड़ती हूं। जवेरिया ने ट्वीट किया है कि मर्द अपनी बीवियों को प्रति ज़िम्मेदारियों की बातें क्यों नहीं करते।
https://twitter.com/FahhadRajper/status/737237820289474560
https://twitter.com/justjaveriya/status/737215814391058434
जंग छिड़ चुकी है, एक ऐसी जंग जिसने सरहदें तोड़ दी हैं और पढ़कर बहुत सुकून मिल रहा है कि प्रतिरोध शुरू हो चुका है।
https://twitter.com/notfunnyzaib/status/737225709198938112
https://twitter.com/bbillawala/status/737211231946309632
https://twitter.com/filmyjoyo/status/737210450878857216
पाकिस्तान की लड़कियों! हमें नाज़ है तुम्हारे इस अंदाज़ और जुनून पर.. उस शुरूआत के लिए बहुत-बहुत शुभकामनाएं जो पहले ही हो जानी चाहिए थी, देर से ही सही.. तुम उठी और तुमने लोगों को ये एहसास दिलाया कि तुम ज़िंदा लाशें नहीं हो, रोबोट नहीं हो, प्लास्टिक की गुड़िया नहीं हो, तुम्हारी इस चेतावनी के लिए तुम्हें सलाम!
मर्दों, दुनिया के मंगल ग्रह पर पहुंचने के बाद अगर आपको इस बात की चिंता हो रही है कि महिलाएं बिना हिजाब के आपके घर की चौखट न लांघ जाएं तो आपका मशीनीकरण हो चुका है। आप स्थूल हो चुके हैं। उठें और मरने से पहले ज़िंदा बनने की कोशिश करें।