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प्रथिका यशिनी: भारत की पहली ट्रांससेक्शुअल सब-इंस्पेक्टर

Apoorva Pandey/ firkee.in Updated Sun, 02 Apr 2017 02:21 PM IST
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prathika yashini
prathika yashini - फोटो : bccl/indiatimes
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इस दुनिया में अभी भी लोग ट्रांसजेंडर के मुद्दे पर ज़्यादा जागरूक नहीं हैं। भारत भी उन्हीं देशों में से है। इस वजह से इस समाज से संबंध रखने वाले लोगों को अपने अधिकार से वंचित होना पड़ता है। पहले तो उन्हें अपने घरवालों से अपनी पहचान के लिए संघर्ष करना होता है उसके बाद ये समाज और यहां की व्यवस्था उसके सामने नई चुनौतियां लेकर खड़े होते हैं।

ऐसे में कुछ लोग हार मान जाते हैं और समाज द्वारा बनाए गए ढर्रे पर चलते हैं और कुछ अपने लिए नई राह ढूंढ निकालते हैं। अज हम बात करेंगे प्रतिभा यशिनी के बारे में जो भारत की पहली ट्रांससेक्शुअल सब-इंस्पेक्टर हैं। यहां तक पहुंचने के लिए इन्हें एक बहुत लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी है।
 

प्रथिका के मां-बाप एक ड्राइवर और टेलर थे। इनका परिवार सलेम में रहता था। प्रथिका का पालन-पोषण एक लड़के के रूप में हुआ था। लेकिन जब वो ग्यारहवीं में थीं तब उन्हें ये महसूस हुआ कि वो दूसरे लड़कों से अलग हैं। वो खुद को एक लड़के की तरह नहीं देखते थे। जब उन्होंने अपने मां-बाप को इस बारे में बताया तो उन्होंने उनका इलाज करवाने की हर संभव कोशिश की।

उन्हें डॉक्टर से लेकर झाड़-फूंक करने वालों तक के पास ले जाया गया। और अंत में ज़्यादातर ट्रांसजेंडर्स की तरह उन्हें भी अपना घर छोड़ना पड़ा। प्रथिका की यहां तक की कहानी किसी भी अन्य भारतीय एलजीबीटीक्यू की तरह है। लेकिन इसके बाद उन्होंने अपने जीवन की किताब में एक नया अध्याय लिखा।
 

प्रथिका 2011 से ही सेक्स चेंज की प्रक्रिया से गुअज़रने लगीं। ये समय उनके लिए काफी कठिन था। प्रथिका बचपन से ही एक पुलिस अफसर बनना चाहती थीं। लेकिन अपनी आइडेंटिटी की वजह से उन्हें परेशान होना पड़ता था। वो बताती हैं कि वो जब भी इंटरव्यू के लिए जाती थीं उन्हें कमरे से बाहर निकाल दिया जाता था। 

वो कहती हैं कि उन्होंने ये सपना देखना छोड़ ही दिया था। लेकिन फिर उन्होंने अपने अधिकारों के लिए एक लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी। उनका आवेदन हर जगह अस्वीकार कर दिया जाता था क्योंकि तमिल नाडु के पुलिस डिपार्टमेंट में थर्ड जेंडर के लिए कोई जगह नहीं थी। लेकिन फिर 2015 में मद्रास हाई कोर्ट के फैसले ने प्रथिका को उनके अधिकार दिलवाए।
 

प्रथिका अब एक सब-इंस्पेक्टर हैं और वो बताती हैं कि ट्रेनिंग के समय उनके साथ की सभी महिलाएं और पुरुष उनके साथ बहुत अच्छा व्यवहार करते थे। उन्हें ये कभी मेहसूस नहीं हुआ कि वो उन लोगों से अलग हैं। आखिरकार दृढ़ निश्चय ने प्रथिका को उनका अधिकार दिलवा दिया और आज वो अपने पैरों पर खड़ी हैं।

प्रथिका कहती हैं कि अब उनके ऊपर एक बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी है। वो अपनी कम्युनिटी के लोगों के लिए एक मिसाल बनना चाहती हैं और उनको अपने जीवन में कुछ बेहतर करने के लिए प्रेरित करना चाहती हैं। मद्रास कोर्ट के इस फैसले के बाद अब थर्ड जेंडर के दूसरे लोगों के लिए भी उम्मीद की नई किरण आई है।

अब शायद धीरे-धीरे इन लोगों के लिए रोज़गार के नए अवसर आएंगे और ये समाज और इनके अपने परिवार भी इनको अपना लेंगे।
 

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