इंडियन आर्मी। इंडियन एयर फ़ोर्स या नेवी। कोई भी फ़ोर्स। सिर्फ एक फ़ोर्स नहीं है। एक भरोसा है, विश्वास है। हमारा आपका हम सब का। एक अटूट विश्वास। विश्वास कि हम हर रात चैन से सो सकते हैं। हमारा देश सुरक्षित है। हमारी सीमाएं सुरक्षित हैं। लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं है कि इंडियन आर्मी का मतलब या फ़ौज के किसी भी विंग का मतलब कि सिर्फ पुरुषों के ही दम पर चल रहा। इसमें हमारे देश की महिलाओं का भी उतना ही हाथ है।
आज हम आपको ऐसी ही कहानी सुनाने जा रहे हैं। कहानी देश की पहली महिला लेफ्टिनेंट जनरल की। और नेवी की पहली महिला वाईस एडमिरल की। और ये दोनों ही एक ही महिला के नाम है। लेफ्टिनेंट जनरल पुनीता अरोरा।
पुनीता अरोरा की कहानी कोई आम कहानी नहीं है। ये संघर्ष और बलिदान की कहानी है।
पुनीता तब सिर्फ 1 साल की थीं जब इनका पूरा परिवार पार्टीशन के बाद इंडिया आ गया था। जैसा कि लाखों लोगों ने किया था। जब इनके मां-बाप पाकिस्तान छोड़ कर इंडिया आ रहे थे। तब इनके पास खुद को ढकने के लिए एक कंबल और एक ग्लास था।
पुनीता बताती हैं कि हालात बहुत अलग थे। घर जॉइंट फैमिली थी। तो जो जितना भी कमा कर खाने पीने का इंतज़ाम करता उसे पूरे परिवार के बीच खर्चे के लिए बराबर-बराबर बांटा जाता। और इससे मुझे तभी से बहुत कुछ सीखने को मिला। आर्मी में आने के बाद भी मुझे इसका बहुत फायदा मिला। परिवार ने मेहनत करके खुद को फिर से खड़ा किया।
पुनीता डॉक्टर बनना चाहती थीं। और उनके पिता जी ने उनके इस बात का पूरा सपोर्ट किया। लेकिन हालात साथ नहीं थे। उन दिनों मतलब 1960 के आस-पास मेडिकल कॉलेज में लड़कियों का दाखिला आसान नहीं था। मेडिकल कॉलेज वाले लड़कियों को आसानी से नहीं लेना चाहते थे।
उन्होंने सहारनपुर के मेडिकल कॉलेज में दाखिले के लिए अर्जी दी। लेकिन उन्होंने कहा कि हम सिर्फ लड़कों को एडमिशन दे सकते हैं। वज़ह जो भी रही हो। हो सकता है लड़कियों के रहने का कोई इंतज़ाम ही ना हो। लेकिन पुनीता जी तब भी तटस्थ थीं। इन्हें तो दाखिला लेना ही था। तो हार कर कॉलेज वालों ने इनसे कहा कि और तीन लड़कियां ढूंढ कर लाओ तब एडमिशन मिलेगा। इन्होंने ढूंढ लिया। मिल गया एडमिशन।
यहां से MBBS की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद AFMC जॉइन कर लिया। AFMC मतलब? मतलब आर्म्ड फ़ोर्सेस मेडिकल कॉलेज। अंडरग्रेजुएट के रूप में। और इसके बाद यहां से आर्मी में ऑफिसर हो गईं। इसी कॉलेज में पढ़ाने का काम मिल गया। तब वहां लड़कियों के लिए हॉस्टल भी नहीं होता था। तो इनके लिए बैरक बना कर इन्हें उसमें रहने को दिया गया था।
इसके बाद पोस्टिंग बदली। बावजूद इसके कि वो एक महिला हैं। इनकी पोस्टिंग पर कोई फ़र्क नहीं पड़ा। हर तरह की पोस्टिंग मिली। एक पोस्टिंग थी फ़तेहगढ़। कानपुर से थोड़ी दूर। कहते हैं डाकुओं का अड्डा हुआ करता था। कोई हॉस्पिटल नहीं था। कानपुर के लिए रोज दिन में एक बार ट्रेन होती थी। छूटे तो छूटे। वहां रह कर बहुत वक़्त तक लोगों की सेवा की। इससे आया कॉन्फिडेंस। आत्मविश्वास।
जम्मू कश्मीर में पोस्टिंग मिली। तब वहां एक बार आर्मी के एक बस पर हमला हुआ था। कई लोग घायल हुए थे। कईयों की जान भी चली गई थी। जिनमें कुछ बच्चे भी थे। जवानों के परिवार के। घायलों का इलाज़ किया। जिसके बाद भारत के राष्ट्रपति से इन्हें विशिष्ट सेवा मेडल मिला।
जनरल अरोरा को अपने करियर में करीब 15 मेडल मिले हैं। 36 सालों की सर्विस। आर्म्ड फ़ोर्सेस के होस्पिटल में इन्होंने ही महिलाओं के लिए स्पेशल गायने-एंडोस्कोपी जैसी फैसिलिटी शुरू करवाई थी। जिसके लिए इन्हें सेना मेडल दिया गया था।
कहती हैं, इंडिया में जो कुछ भी है सब सही है। लोग खामियां ढूंढें तो ढूंढें। हां, ये बात सही है कि चीज़ें स्लो हैं थोड़ी सी। जो वक़्त के साथ ठीक हो जाता है। घर में इनका बेटा भी डॉक्टर है। इनेक पति भी आर्मी से ब्रिगेडियर के पोस्ट से रिटायर हुए। वो भी डॉक्टर ही थे। इनकी बेटी भी आर्मी में ही डॉक्टर ही हैं। और अगर रैंक को देखें तो ये अभी तक अपने परिवार में सबसे बड़ी पोस्ट पर रही हैं।
अब सबसे खास बात। चुंकि, आर्म्ड फ़ोर्सेस मेडिकल की सर्विस आर्मी, एयर फ़ोर्स और इंडियन नेवी तीनों के लिए ही कॉमन है। तो अगर वो चाहें तो जरूरत के हिसाब से अपनी सर्विस चेंज कर सकते हैं।
जिसके बाद ये नेवी में भी पहली महिला वाईस एडमिरल बनीं। और आर्मी की पहली महिला लेफ्टिनेंट जनरल भी।
अब इतने के बाद सिर्फ एक शब्द निकलता है, शुक्रिया, पुनीता अरोरा जी! आपकी वज़ह से ना जानें कितनी लड़कियों को ख़्वाबों का नया आसमां मिला!