अभी-अभी नवरात्र ख़त्म हुए हैं और इसके बाद एक चीज़ ऐसी है जो लोगों के लिए बेकार हो गई है। ये है माता की चुन्नी। ये वो पतली पट्टियां होती हैं जो लोग कीर्तन या माता की चौकी के समय अपने सिर पर बांधते हैं। इसके अलावा ये चुन्नियां घर में स्थापित भगवान पर भी चढ़ाई जाती हैं। नवरात्र ख़त्म होने के बाद कुछ लोग इनको नदी में प्रवाहित कर देते हैं तो कुछ लोग किसी को दे देते हैं। कुलमिलाकर इसका कोई इस्तेमाल नहीं रह जाता।
दिल्ली का एक एनजीओ इस चुन्नी को रिसाइकिल करके एक बहुत अच्छा काम कर रहा है। 'गूंज' एक ऐसी संस्था है जो इनका इस्तेमाल नई चीज़ बनाने में कर रहा है। इसे इस्तेमाल करके ये संस्था शादी के लहंगे बना रही है। बाद में इन लहंगों को उन परिवारों को दान कर दिया जाता है जो शादी का भारी खर्च नहीं उठा सकते। इसके अलावा ये और कई चीज़ें बनाकर कई परिवारों का भला कर चुकी है।
भारत में शादी का मतलब 2 लोगों का मिलना नहीं बल्कि ढेर सारा खर्च होता है। जैसे ही कोई लड़की पैदा होती है मां-बाप उसकी शादी को लेकर परेशान हो जाते हैं। वो सोचने लगते हैं कि अब उनके सामने जीवन का एक ही लक्ष्य है वो है लड़की की शादी। इसके बाद वो अपने और अपनी बेटी के उन सपनों को भी पूरा करना चाहते हैं जो उन्होंने शादी को लेकर देखे हैं। ऐसे में उनके लिए शादी की एक-एक चीज़ इकठ्ठा कर पाना बेहद मुश्किल हो जाता है।
लेकिन कुछ लोग हैं जो सामूहिक विवाह करवा कर गरीब परिवारों की मदद करते हैं। गूंज संस्था इस संबंध में कुछ नया कर रही है। ये संस्था माता की चुन्नी से शादी के लहंगे और दूसरी चीज़ें बना रही है। ये लोगों से कह रही है कि वो अपनी चुन्नियों को फेंकें नहीं बल्कि उन्हें दे दें।
ये एक बहुत अच्छी पहल है क्योंकि इससे नदियां भी दूषित नहीं होंगी और किसी की मदद भी हो जाएगी। थोड़ी सी क्रिएटिविटी दिखाकर ये संस्था लहंगे बना रही हिया उर साथ में एक किट भी दे रही है जिसमें फुटवियर, पर्स और मेकअप का सामान भी है। इसके अलावा ये चादर और कुछ बर्तन भी इन परिवारों को देते हैं।
गूंज उत्तराखंड, या प्रदेश और बिहार में अब तक कई सारी किट्स पहुंचा चुकी है। एक वेडिंग किट में दूल्हा-दुल्हन के लिए कपड़े, फुटवियर, पर्स, मेकअप बॉक्स, कॉस्मेटिक्स, गहने, चादरों का सेट और कुछ बर्तन होते हैं। सोचिये ऐसे परिवारों का कितना बोझ कम हो जाता है।
ये एक बहुत अच्छा प्रयास है और इससे लोगों की काफी मदद हो जाती है। इसके लिए लोगों को उनकी आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखकर चुना जाता है। इन परिवारों को संस्था के लोग या पंचायत चुनती है।
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