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आईएएस किंजल सिंह, जिन्होंने 'नारी शक्ति' की परिभाषा को सच करके दिखाया!

shweta pandey/firkee.in Updated Mon, 12 Dec 2016 02:40 PM IST
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किंजल सिंह
किंजल सिंह
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विस्तार

ऐसी कहानी आपने अकसर फिल्मों और किताबों में पढ़ी होगी। पर आज कुदरत ने जिंदगी की हकीकत में ऐसा कर दिखाया जिस के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता। ये कोई काल्पनिक कहानी नहीं है। ये कहानी है एक ऐसी लड़की की जिसने अपने जीवन में कभी हार नहीं मानी और वो कर दिखाया जो कोई सोच भी नहीं सकता। आज समाज में उसने अपनी एक अलग पहचान बना ली है, उसका नाम है किंजल सिंह (IAS Kinjal Singh)। किंजल सिंह आज एक आईएएस अफसर जरूर हैं लेकिन इस मुकाम तक पहुंचना उनके लिए आसान नहीं था।

आइये जानते है IAS Kinjal singh के बारे में विस्तार से...

किंजल का एक छोटा परिवार था। जिसमें उनके माता-पिता व एक छोटी बहन प्रांजल थीं। किंजल के पिता केपी सिंह गोंडा के डीएसपी थे। जिनका सन 1982 में उन्हीं के साथ काम करने वालों ने एनकाउंटर कर दिया। पिता की हत्या के समय वे महज छह माह की थीं।
 


जब उनके पिता की हत्या हुई उस वक्त वह आईएएस की परीक्षा पास कर चुके थे। उनका इंटरव्यू बाकी था। तभी से उनकी मां के दिमाग में ये ख्याल था कि उनकी दोनों बेटियों को सिविल सर्विस की परीक्षा में बैठना चाहिए। हांलाकि मां को कैंसर हुआ था जिसके चलते वो अपनी जान गवां बैठीं।

 किंजल को मां की मौत के दो दिन बाद ही दिल्ली लौटना पड़ा क्योंकि उनकी परीक्षा थी। उसी साल किंजल ने दिल्ली यूनिवर्सिटी में टॉप किया। इस बीच उन्होंने छोटी बहन को भी दिल्ली बुला लिया और मुखर्जी नगर में फ्लैट किराए पर लेकर दोनों बहनें आइएएस की तैयारी में लग गईं। किंजल बताती हैं, “हम दोनों दुनिया में अकेले रह गए। हम नहीं चाहते थे कि किसी को भी पता चले कि हम दुनिया में अकेले हैं।

दोनों बहनों की उम्र में महज एक साल का अंतर है। पर उन्हें अभी भी अपने पिता के हत्यारो को सजा मिलने का इंतजार था। पुलिस का दावा था कि इनके पिता की हत्या गांव में छिपे डकैतों के साथ क्रॉस-फायरिंग में हुई थी। लेकिन उनकी पत्नी यानि किंजल की मां का कहना था कि उनके पति की हत्या पुलिस वालों ने ही की थी।

 हांलाकि 31 साल तक चले मुकदमे के बाद सीबीआई की अदालत ने हत्यारों को फांसी की सजा सुनाई। किंजल सिंह को देर से ही सही पर न्याय मिल गया। कहावत है कि “जस्टिस डिलेड इज जस्टिस डिनाइड” यानि देर से मिला न्याय न मिलने के बराबर है। न्याय मिलने के कारण किंजल खुश तो थीं पर देर से मिलने की वजह से अपनों को खो देने का अफसोस भी। 
 


इसका जिक्र उन्होंने अपनी कामयाबी  के बाद एक इंटरव्यू में कहा -“बहुत से ऐसे लम्हे आए जिन्हें हम अपने पिता के साथ बांटना चाहते थे। जब हम दोनों बहनों का एक साथ आईएएस में चयन हुआ तो उस खुशी को बांटने के लिए न तो हमारे पिता थे और न ही हमारी मां।” 

ये लड़ाई जरूर एक लंबे वक़्त तक चली पर किंजल ने अपनी जिंदगी में कभी हार नहीं मानी। उसने सारी बाधाओं को अपनी लगन और मजबूत इरादों से पार किया। एक आम इंसान के लिए IAS Kinjal Singh एक प्रेरणास्त्रोत हैं। 


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