Home Feminism World Richest Women Zhou Qunfei From China Has Inspirational And Motivational Story

कभी करती थी कारखाने में काम, आज खुद के हैं 32 कारखाने…

Updated Tue, 18 Jul 2017 04:07 PM IST
विज्ञापन
Zhou Qunfei,
Zhou Qunfei, - फोटो : South China Morning Post
विज्ञापन

विस्तार

यूँ ही नहीं मिलता कोई मुकाम, उन्हें पाने के लिए चलना पड़ता हैं, इतना आसान नहीं होता कामयाबी का मिलना, उसके लिए किस्मत से भी लड़ना पड़ता हैं… कामयाबी के लिए एक ब्लॉग से संदीप कुमार सिंह की  लिखी गईं ये लाइनें चीन की सबसे अमीर महिला पर बिल्कुल सटीक बैंठती हैं। जिनके पास एक वक्त में खाने, रहने और पढ़ने के लिए पैसे नहीं थे और आज अकूत संपत्ति की मालकिन हैं। 

नाम- जो कनफे
उम्र- 47 साल
उपलब्धि-  लेंस टेक्नॉलोजी की फाउंडर मेंबर, दुनिया की सबसे अमीर महिला का खिताब
संपत्ति- करीब 6 खरब अमेरिकी डॉलर, 32 कारखाने और 90 हजार एप्लॉय
जो कनफे, जब 33 साल की थीं, तभी उनकी पहचान दुनिया के सामने आ चुकी थी। कनफे का बचपन जितनी मुफलिसियों के साथ बीता है उनकी जवानी में उतने ही रोमांचक सघर्ष भी रहे। 16 साल की उम्र में अपनी पढ़ाई छोड़ दी थी, यहां इन्होंने कुछ दिनों तक खेतों में काम किया था, दिल नहीं लगा तो शहर की ओर रुख किया। यहां जो ने कुछ दिनों तक एक कारखाने में काम किया जहां घड़ियों के लेंस बनाए जाते थे। 

एक अखबार से बात करते हुए जो ने बताया था कि वो फैक्ट्री में काम करने के बाद पढ़ाई करती थी ताकि अपनी जिंदगी को बदल सकें। 22 साल की उम्र मेें किसी तरह जो ने  कुछ रकम जुटाकर अपना कारखाना शुरू किया जोकि घड़ियों के लेंस बनाती थी। धीरे-धीरे कारवां बढ़ता गया और काफिला बढ़ता गया। 

जो कनफे ने अपनी कंपनी साल 1993 में खोली थी, 2003 में जब उनकी कंपनी 10 साल की हो चुकी थी तो उनके पास मोटोरोला कंपनी से ऑफर आया कि वो मोटो रेजर वी-3 के लिए स्कैच फ्री ग्लासेस बनाए। यहां से कनफे ने पीछे मुड़कर नहीं देखा, मोटोरोला के बाद सैमसंग और नोकिया के ऑफर्स ने कनफे को उड़ान के लिए पंख दिए। साल 2007 में एपल ने जब आईफोन लॉन्च किए तो कनफे की कंपनी को स्क्रीन बनाने का ऑफर दिया, इसके बाद कनफे की कंपनी दिन दूूनी और रात चौगुनी तरक्की करने लगी, देखते ही देखते उनके 32 कारखाने खुल चुके हैं जहां करीब 90 हजार लोग काम करते हैं।

जिस वक्त जो कनफे ने अपना सफर शुरू किया था तो उस वक्त उनके पास न रहने का ठिकाना था और न खाने का साधन… पढ़ाई छूट चुकी और परिवार दूर हो चुका था। साथ था तो सिर्फ हौसला और कुछ कर गुजरने की इच्छा शक्ति, जिसने जो को दुनिया में मनचाहा मुकाम दिया। जो की कहानी दुष्यंत कुमार की उन लाइनों पर बिल्कुल फिट बैठती हैं… कैसे आकाश में सूराख़ हो नहीं सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो....  

विज्ञापन
विज्ञापन
विज्ञापन
विज्ञापन
विज्ञापन
विज्ञापन

Disclaimer

अपनी वेबसाइट पर हम डाटा संग्रह टूल्स, जैसे की कुकीज के माध्यम से आपकी जानकारी एकत्र करते हैं ताकि आपको बेहतर अनुभव प्रदान कर सकें, वेबसाइट के ट्रैफिक का विश्लेषण कर सकें, कॉन्टेंट व्यक्तिगत तरीके से पेश कर सकें और हमारे पार्टनर्स, जैसे की Google, और सोशल मीडिया साइट्स, जैसे की Facebook, के साथ लक्षित विज्ञापन पेश करने के लिए उपयोग कर सकें। साथ ही, अगर आप साइन-अप करते हैं, तो हम आपका ईमेल पता, फोन नंबर और अन्य विवरण पूरी तरह सुरक्षित तरीके से स्टोर करते हैं। आप कुकीज नीति पृष्ठ से अपनी कुकीज हटा सकते है और रजिस्टर्ड यूजर अपने प्रोफाइल पेज से अपना व्यक्तिगत डाटा हटा या एक्सपोर्ट कर सकते हैं। हमारी Cookies Policy, Privacy Policy और Terms & Conditions के बारे में पढ़ें और अपनी सहमति देने के लिए Agree पर क्लिक करें।

Agree