दीपाली अग्रवाल, टीम फिरकी, नई दिल्ली
Updated Tue, 16 Jan 2018 01:42 PM IST
विस्तार
जब कोई व्यक्ति किसी काम को करने की ठान लेता है तो उम्र, रंग, देश, भाषा जैसी तमाम रुकावटें नजर नहीं आती, उसमें भी जब किसी का हित करने की भावना हो और उसके लिए लगन भी हो तो कोई बाधा रास्ता नहीं रोक सकती। इस बता का सीधा सन्दर्भ है लखनऊ के आनंद कृष्ण मिश्र से, जिनकी उम्र अभी मात्र 13 है लेकिन सपने और काम उनकी उम्र से कहीं गुना आगे हैं।
आनंद अभी 9वीं कक्षा में पढ़ते हैं और पढ़ाई में हमेशा अव्वल रहते हैं। वह 2013 लखनऊ महोत्सव में शहजादे अवध का खिताब जीत चुके हैं और स्पोर्ट्स में भी धुरंधर हैं। लेकिन इससे कहीं बड़ी बात यह है कि, वह 9 साल की उम्र से ही गांव में रहने वाले गरीब बच्चों को शिक्षा दे रहे हैं। वह गांव-गांव जाकर 'बाल चौपाल' लगते हैं और स्कूल न जाने वाले बच्चों को पढ़ाते हैं। आनंद का मकसद ऐसे बच्चों को आत्म-निर्भर बनाना है।
आनंद का कहना है कि वह नहीं चाहते कि, कोई बच्चा होटल में या कहीं और भी बाल मजदूरी करे। इसके लिए वह हर संभव प्रयास भी कर रहे हैं।
आनंद बच्चों को साइबर वर्ल्ड की भी जानकारी देते हैं जिसमें वह इंटरनेट का पढ़ाई में महत्व बताते हैं। बाल चौपाल की शुरुआत उन्होंने लखनऊ से 12 किलोमीटर दूर काकोरी के भवानी खेड़ा गांव से की थी। इसके बाद और भी गांव में चौपाल लगाकर बच्चों को पढ़ाई के लिए प्रेरित किया। आनंद सिर्फ 5 घंटे सोते हैं और उसका ज्यादा समय पढ़ने और पढ़ाने में ही जाता है।
आनंद का कहना है कि, कुछ वर्ष पहले उन्होंने एक बच्चे को मोमबत्ती की रोशनी में पढाई करते देखा, जो संस्कृत और मराठी दोनों जानता था। इसके बाद आनंद के मन में विचार आया कि ऐसे कितने की प्रतिभावान बच्चे होंगे जिनके पास अवसर का अभाव होगा। आनंद ने अपने पिता से सलाह की और चौपाल लगानी शुरु कर दी। 'हम होंगे कामयाब' गीत के साथ शुरु होने वाले इस चौपाल में योग भी होता है।
अक्सर घर वाले लड़कियों को दूर दराज के स्कूल में नहीं भेजते इसलिए आनंद उनके लिए एक स्कूल खोलना चाहते हैं, इसके लिए वह राज्यपाल को चिट्ठी भी लिख चुके हैं। आनंद खुद एक आईएएस अफसर बनना चाहते हैं।