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'कौन कहता है कि आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों' इंडिया में इस कहावत को बहुत ही सीरियसली लिया जाता है। तीन साल पहले उत्तराखंड के चम्पावत जिले की मझोड़ा ग्राम पंचायत के गांव पुष्पनगर के बृजेश विष्ट ने भी शायद इसी कहावत को दिल से ले लिया और दशरथ मांझी की तरह अकेले ही पहाड़ का सीना चीरकर सड़क बना डाली। फिलहाल सड़क कच्ची है, लेकिन हल्के वाहन और लोग आसानी से इसके जरिये मुख्य मार्ग तक पहुंच जाते हैं। पहले जंगलों से होकर जाना पड़ता था और बच्चों को भी दुर्गम रास्ते और नाले पार करके स्कूल जाना पड़ता था।
दशरथ मांझी ने अपनी पत्नी की याद में पहाड़ तोड़ा था, इधर बृजेश ने गांव वालों की मुसीबतों और शासन-प्रशासन की अनदेखी के जवाब में पहाड़ तोड़ा। बृजेश का गांव राष्ट्रीय राजमार्ग 125 से जुड़ने वाली खूनामलक सड़क से करीब 2 किलोमीटर की दूरी पर है। बृजेश भारतीय सेना के जवान हैं और जब उन्होंने कुदाल, हथौड़ा और छेनी उठाई तब वह 3 कुमाऊ रेजीमेंट में थे और उनकी तैनाती पिथौरागढ़ में थी। जब भी वह ड्यूटी से छुट्टी लेकर आते तो अपने औजार लेकर निकल पड़ते।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक 39 वर्षीय बृजेश ने इस काम के लिए न तो मजदूर रखे और न ही किसी गांव वाले की मदद ली। उन्होंने 2014 में सड़क बनाने का काम शुरू किया था।
इस बाबत गांव वालों वे कई दफा मंत्रियों और अधिकारियों का ध्यान खींचने की कोशिश की, लेकिन नतीजा सिफर रहा। आखिरकार बृजेश ने अकेले दम पर 2 किलोमीटर लंबी सड़क बनाकर ही दम लिया।
उम्मीद है कि बृजेश के इस काम से शासन-प्रशासन की नींद टूटेगी।