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'सात अजूबे इस दुनिया में आठवीं इनकी जोड़ी'

Updated Fri, 07 Jul 2017 11:37 AM IST
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जय और वीरू की दोस्ती की मिसाल आज भी कायम है। वो फिल्म का किस्सा था लेकिन हकीकत में भी एक ऐसी ही दोस्ती की कहानी कायम होने जा रही है। हाथ में हथौड़ा, और लोहे की रॉड लेकर हर दिन ये दोस्त जंगल की और निकल जाते हैं। क्योंकि पिछले 13 सालों से इन्होंने अपना जीवन पूरी तरह पर्यावरण को सौंप दिया है। 

र्वोत्तर चीन के येली गांव के रहने वाले दो दोस्त हर रोज पेड़ लगाते और उनकी देखभाल करते हैं। असल जीवन की ​इस कहानी में सिर्फ पर्यावरण पर ही गौर करने की बात नहीं है। खास बात ये है कि एक के दोनो हाथ नहीं हैं और एक दृष्टिहीन हैं। ये दोनों पिछले 13 साल से एक दूसरे की आंख और हाथ भी हैं। इनका नाम वेंकी और हेक्सिया है। वेंकी के दोनों हाथ नहीं हैं और हेक्सिया दृष्टिहीन हैं। 
दोनो हर रोज एक हथौड़ा और लोहे की रॉड लेकर जंगल की ओर जाते हैं। आगे-आगे वेंकी चलते हैं और हेक्सिया उनकी शर्ट की बाजू पकड़ कर उनके पीछे चलते हैं। दोनो जब नदी के पास पहुंचते हैं तो हेक्सिया, वेंकी की पीठ पर चढ़ कर नदी पार करते हैं, ताकि बहाव से वो गिरे न। हेक्सिया का कहना है कि, 'मैं उसका हाथ हूं और वो मेरी आंख। हम अच्छे पार्टनर हैं'।

ये दोनों बचपन में साथ स्कूल जाते थे पर स्कूल के बाद दोनों अलग हो गए थे। लेकिन किस्मत में शायद इनका मिलना था। हेक्सिया बचपन से सिर्फ एक आंख से दृष्टिहीन था फिर साल 2000 में एक फैक्ट्री हादसे की वजह से पूरी तरह दृष्टिहीन हो गए।

दूसरी तरफ वेंकी महज तीन साल के थे, जब उन्होंने अपने हाथ से हाई वोल्टेज बिजली की तार छू ली थी, जिसके बाद उन्होंने अपने हाथ खो दिए थे। सालों बाद जब दोनो दोबारा ​मिले तो उनकी मजबूरी और जरूरतें एक थीं। दोनो ने तय किया कि वो एक साथ काम कर के पैसे कमाएंगे। दोनो को पेड़-पौधों का शौक था। उन्हें इसी के साथ अपने नए काम का विचार भी आया। उन्हें सरकारी जमीन किराए पर मिल गई जहां उन्होंने पेड़ लगाने और पर्यावरण की देखभाल करने की सोची।

हेक्सिया के मुताबिक उनके लिए ये कोई मुश्किल काम नहीं है। वो दिब्यांग हैं और अपने परिवार पर बोझ नहीं बनना चाहते। उनकी मानें तो ये पेड़ अगले 10 साल में बड़े हो जाएंगे और उन्हें पैसे मिलेंगे। 

उनका काम ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाना है और मौजूदा पेड़ों की देख-रेख करना। पिछले 13 सालों ने उन्होंने दस हजार पेड़ लगाए हैं, जिनमें से तीन हजार खत्म हो चुके हैं। भले ही ये काम धीरे चल रहा हो लेकिन आठ में से तीन हैक्टर जमीन पेड़ से भर चुकी है और कई पंछियों के घोंसले उसमें बन गए हैं। 

जब उन्होंने काम शुरु किया था, गांव वाले उनके साथ नहीं थे, अब सालों बाद उनका नजरिया बदल चुका है। जहां नदी के पास कोई पेड़ नहीं दिखता था, वहां अब चारों तरफ हरियाली है। अब गांव वाले भी कुछ न कुछ मदद करते हैं इनकी।

source-BBC

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