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अखबार, न्यूज चैनल और सोशल मीडिया को खंगालेंगे तो आपको एहसास होने लगेगा कि देश में कहीं भी कुछ ठीक नहीं हो रहा है। हिंदू बनाम मुस्लिम, मंदिर बनाम मस्जिद की लड़ाई सोशल मीडिया पर लड़ी जा रही है। प्रेम की हवा पर नफरत की आंच को हावी किया जा रहा है। लोग कभी गाय के नाम पर भिड़ जाते हैं, कभी धर्म के नाम पर तो कभी गांधी, नेहरु और जिन्ना के नाम पर। लेकिन इन सबसे अलग एक गांव ऐसा भी है जो नफरत के इस दौर में अंधेरे में उजाले की किरण की तरह है।
पंजाब में मूम नाम के एक छोटे से इलाके में पूरा गांव मिलकर मस्जिद बना रहा है। गांव में रहने वाले हिंदुओं ने अपनी जमीन दी है और सिक्ख श्रमदान कर रहे हैं। सिर्फ ये ही नहीं बल्कि इलाके में रहने वाले मुस्लिम लोग मंदिर बनाने का काम कर रहे हैं। अब आप सोच रहे होंगे कि ऐसा कैसे हुआ। तो चलिए आपको ले चलते हैं मोहब्बत के इस गांव में जिसका नाम है मूम।
पंजाब के मूम गांव में करीब 4500 लोग रहते हैं। मुस्लिमों की संख्या 400 है जोकि छोटे-मोटे काम करके जिंदगी गुजर बसर कर रहे थे। जबकि गांव में रहने वाले हिंदू व सिखों की आर्थिक हालत मुस्लिमों के मुकाबले ठीक थी। गांव में सभी धर्मों के लोग रहते हैं कभी किसी में कोई मनमुटाव नहीं हुआ। इसी गांव में मंदिर के निमार्ण कार्य में मुस्लिमों को जिम्मेदारी दी गई, मंदिर का काम खत्म करे के बाद मंदिर के मिस्त्री नजीम राजा खान ने मंदिर के प्रशासकों को खत लिखकर एक दरख्वास्त की।
उन्होंने लिखा कि आप हिंदुओं के पास एक मंदिर है, इससे पहले भी आपके पास एक मंदिर था। मुसलमानों के पास सजदा करने के लिए कोई जगह नहीं है। और न ही हमारे पास इतने पैसे हैं कि मस्जिद के लिए जमीन खरीद सकें। क्या आप लोग हमें जमीन का एक टुकड़ा दे सकते हैं ताकि हम अपनी मस्जिद का निर्माण काम शुरू कर सकें।
उनकी इस अपील पर मंदिर के प्रशासकों ने गंभीरता से विचार किया और जमीन देने का फैसला किया। मंदिर के पास की 900 स्कवायर फीट की जमीन मस्जिद के लिए दे दी गई। जमीन मिलने के कुछ दिनों बाद मुस्लिम मिस्त्रियों ने मस्जिद बनाने का काम शुरू किया तो इलाके के सिख हाथ बंटाने के लिए आ गए। क्योंकि हर मस्जिद गुरुद्वारे के बगल में ही बन रही है।
इस गांव की हवा में फैले प्यार और आपसी भाईचारे को आप महसूस कर सकेंगे। यहां गुरुद्वारे में गीता का पाठ होता है, कोई किसी भी धर्म का हो... वो किसी भी धर्म स्थली पर जा सकता है। किसी कोई रोक-टोक नहीं है। आज के वक्त में सांप्रदायिक सौहार्द का इससे बेहतर उदाहरण हो ही नहीं सकता।