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आजकल तो ऐसा अक्सर होता है कि शर्म करने वाले लोग पीछे रह जाते हैं, बाजी वो मार ले जाता है जो बोलने में तेज हो। लेकिन अतीत में एक सबसे बड़ी खोज की वजह बनी थी 'शर्म और झिझक'। इस आविष्कार को विज्ञान के सबसे बड़े आविष्कारों में से एक माना जाता है। 'स्टेथोस्कोप' एक ऐसी खोज है जिसके बिना आज कोई भी इलाज संभव नहीं है। सर्दी-खांसी हो या हार्ट अटैक, बगैर स्टेथोस्कोप के इसका इलाज 'न' के बराबर है।
रेने लीनेक ने 'स्टेथोस्कोप' का आविष्कार 1816 में किया था। उन्होंने मेडिसिन की पढ़ाई अपने फिजिशियन अंकल की देखरेख में की। दरअसल स्टेथोस्कोप के आविष्कार के पीछे की वजह थी 'लीनेक' की शर्म और झिझक। स्टेथोस्कोप के आविष्कार से पहले डॉक्टर किसी मरीज की जांच के लिए उसके सीने के पास कान लगाकर उसकी धड़कनें सुनते थे लेकिन उन्हें तब शर्मिंदगी महसूस हुई जब वो एक महिला का इलाज कर रहे थे।
लीनेक जब हार्ट की किसी समस्या से जूझ रही महिला की जांच कर रहे थे तो उन्हें थोड़ी झिझक महसूस हुई। लीनेक ने इस स्थिति से बचने के लिए कागज को मोड़कर उसे ट्यूब जैसा आकार दिया। ट्यूब के एक सिरे को महिला के चेस्ट पर दबाया और दूसरे सिरे को अपने कान के पास लगाकर उसकी हार्ट बीट सुनी। लीनेक की यह झिझक स्टेथोकोप के आविष्कार की वजह बन गई।
अपने इसी प्रयोग से सीख लेकर लीनेक ने बाद में लकड़ी के कई खोखले मॉडल बनाए जिसके एक सिरे पर माइक्रोफोन लगा था और दूसरे सिरे पर ईयरपीस और उन्होंने इसे नाम दिया स्टेथोस्कोप।स्टेथोस्कोप नाम देने की भी वजह है। दरअसल स्टेथोस्कोप ग्रीक भाषा के शब्द stethos (यानि की चेस्ट) और scopos (परीक्षण) से मिलकर बना है। यानि चेस्ट की जांच और परिक्षण को स्टेथोस्कोप कहा जाता है।
source- moment of science