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प्रिय पाठकों,
बीते कुछ समय में राष्ट्रीयता, भारतीयता, राष्ट्रवाद, देशभक्ति जैसे शब्द सोशल मीडिया के माध्यम से 'खिल्ली' और 'नकारात्मकता' का पर्याय बने। जिसने भी इन शब्दों से खुद को जोड़ा उसे एक अदृश्य नफरत और कुंठा का सामना करना पड़ा। शायद इन शब्दों पर कट्टरता की हद तक अडिग रहना और दूसरों से भी इन्हें लागू करने की अपेक्षा ने ऐसी उपेक्षा को जन्म दिया। लेकिन सच क्या है? सच तो यही है कि इन शब्दों की तासीर अपने आप में भारत की प्राचीन और सभ्य संस्कृति को समेटे हुए हैं। इन शब्दों से भारत का गौरवशाली इतिहास जुड़ा है। ये शब्द सही से कानों में पड़ जाएं को मरे हुए आदमी में भी जान फूंक दें।
सरहद पर शायद इसी लिए जवान अपना सबकुछ लुटा देते हैं क्यों कि इन शब्दों पर वे अटूट विश्वास करते हैं, यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि इन्हीं शब्दों को जवान अपनी इबादत समझते हैं। लेकिन इन शब्दों का आज एक बढ़िया उदाहरण 'योग' हो सकता है।
योग यानी जोड़ना और आज योग दिवस ने पूरी दुनिया को भारत के गौरव से जोड़ दिया। 150 देशों ने योग किया। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक भारत में ही योग के 5000 से ज्यादा बड़े कार्यक्रम किए जा रहे हैं। दिल्ली के कनॉट प्लेस से लेकर न्यूयॉर्क तक योग की धूम है। एशिया, यूरोप, अमेरिका, अफ्रीका समेत पूरा विश्व भारत के योग पर न सिर्फ इतरा रहा है, बल्कि एक स्वस्थ्य समाज की परिकल्पना को पूरा करने में जुटा है।
सही मायने में यही है सच्ची भारतीयता, राष्ट्रीयता और राष्ट्रवाद, जिसने बड़ी ही सहजता से दुनिया भर के दिलों को जोड़ दिया।