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जेब में खनकते सिक्के हों तो चाहत हरे-भरे नोटों की होती है। दुकानदार से या तो चिल्लर नहीं देने के लिए बहस होती है या फिर ढेर सारे सिक्के पकड़ा देने पर बहस होती है। सिक्के जेब में ज्यादा हो तो गरीब टाइप फील होने लगती है। चाय-पान की दुकान पर तो दोस्त मजाक में पूछ भी लेते हैं कि आजकल दफ्तर के बाद सड़क किनारे कहां बैठ रहे हो। जब तक ये सिक्के होते हैं तभी तक इनकी कद्र नहीं होती है। जब जेब में फुटकर न हो, तो भी टेंशन बढ़ने लगती है। हमारे लेन-देन को आसान बनाने वाले यह सिक्के सरकार के लिए कितने आसान है। यह जानने के लिए एक आरटीआई लगाई गई।
किसी साहब ने सरकार से आरटीआई के जरिए जवाब मांगा कि 1,2,5 और 10 रुपये के सिक्के बनवाने में सरकार को कितना खर्च आता है। आरबीआई ने इस आरटीआई का जो जवाब दिया वह हैरान करने वाला है।
सरकार के मुताबिक 1 रुपये का सिक्का बनाना सरकार के लिए काफी खर्चीला होता है। 1 रुपये का सिक्के बनाने में सरकार को 1 रुपये 11 पैसे का खर्च आता है। यानी 9 की लकड़ी और 90 का खर्च।
सिर्फ 1 रुपये का सिक्का महंगा पड़ता है। अन्य सिक्कों का हाल ऐसा नहीं है। 2 रुपये के सिक्के की लागत होती है 1 रुपये 28 पैसे। 5 रुपये का सिक्का 3 रुपये 69 पैसे का पड़ता है। जबकि 10 रुपये के सिक्के के लिए 5 रुपये 54 पैसे चुकाने पड़ते हैं। तो ऐसे में समझ में नहीं आता कि सरकार 1 रुपये के सिक्कों को बंद क्यों नहीं कर देती।