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मिलिए कृष्णा पाठक से, जो इंडियन टीम में खेलने के लिए अपने पिता के अंतिम संस्कार में नहीं पहुंचे

टीम फिरकी, नई दिल्ली Updated Thu, 16 Aug 2018 01:40 PM IST
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Krishna Pathak
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हम सफल शख्सियतों की जिंदगी की चकाचौंध देखकर जलने लगते हैं लेकिन ये भूल जाते हैं कि इस चकाचौंध में चमकने से पहले तेज आंच में खुद को चलाया है। एशियन गेम्स में जूनियर इंडियन हॉकी टीम के बैकअप गोलकीपर कृष्णा पाठक के संघर्ष की कहानी कुछ ऐसी ही है। जब कृष्णा का टीम के लिए सेलेक्शन हुआ तो उनके पिता जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष लड़ रहे थे। टीम इंग्लैंड दौरे पर जाने की तैयारियां कर रहीं थी कि कृष्णा के पिता का निधन हो गया। 

इस सदमें पर बात करते हुए कृष्णा कहते हैं कि शुरू से इतना कुछ देखा है कि ये सब झेलना आसान हो जाता है। पाठक बताते हैं कि जब वो सिर्फ 12 साल के थे तब उनकी मां का देहांत हो गया था। तब से कृष्णा अपने रिश्तेदार के यहां रहते हैं। वो कहते हैं कि मां की मौत के बाद मेरे पास ऐसा कोई ठिकाना नहीं था जिसे मैं घर कह सकूं।     
कृष्णा के पिता चंद्रबहादुर पाठक नेपाल से हिंदुस्तान आए थे। कृष्णा की दो बहनें पिता के साथ हिंदुस्तान नहीं आईं बल्कि वो नेपाल में ही रहनें लगी। एक भाई मलेशिया नौकरी करने के लिए चला गया। परिवार का कोई भी सदस्य साथ नहीं रहता और न ही किसी तरह के संपर्क में है। 

कृष्णा अपने चाचा के साथ रहते हैं और उन्हीं को अपना सब कुछ मानते हैं। पिता के बारे में बात करते हुए कृष्णा के चाचा की आंखें गीली हो गईं। उन्होंने कहा कि ऊपर वाला सब देखता है और सबको बराबर देता है। कृष्णा अपने हिस्से का दुख झेल चुका है। अब उसके पिता का आशीर्वाद उसके साथ है, कृ्ष्णा के पिता का सपना था कि उनका बेटा हिंदुस्तान के लिए खेलें। अगर कृष्णा मैच छोड़कर अंतिम संस्कार में आ जाता तो शायद पिता को ज्यादा दुख होता।  

कृष्णा कहते हैं कि जिंदगी में जो कुछ हो रहा था उससे मैं टूट गया था। कई बार मन करता था कि नेपाल अपनी दीदी के पास चला जाउं। वहां रहने के लिए जगह भी है। लेकिन फिर मैंने सोचा कि सचिन तेंदुलकर और विराट कोहली की जिंदगी में भी ऐसे ही मौके आए थे। जब उन्होंने हार नहीं मानी तो मैं क्यों मानूं। 

कृष्णा कहते हैं कि मैं जो भी बनूंगा मेरे पिता मुझ पर गर्व करें, इससे अच्छा तरीका उनको श्रद्धांजलि देने का नहीं हो सकता है।     

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