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चाय बेचते-बेचते लिख डाली 24 किताबें, अपने आप में मिसाल हैं लक्ष्मण राव

Updated Mon, 04 Dec 2017 06:28 PM IST
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laxman Rao
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वो जमाना बीत गया जब लोग चाय बेचने को छोटा व्यवसाय या असम्मान की भावना से देखते थे। पीएम मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद ऐसी कई प्रेरणादायी कहानियां सामने आई हैं जहां चाय बेचने वाले प्रसिद्धि के शिखर पर जा बैठे । ऐसे ही एक चाय वाले की कहानी आपको बता रहे हैं जो न सिर्फ चाय बेचते हैं बल्कि अपने सपने को भी जीते हैं। 

हम बात कर रहे हैं दिल्ली के हिन्दी भवन के बाहर बैठने वाले लक्ष्मण राव की। लक्ष्मण राव चाय की दुकान लगाते हैं और अब तक 24 किताबें लिख चुके हैं। जिसमें से उनकी 12 किताबें प्रकाशित भी हो चुकी हैं, लक्ष्मण राव द्वारा लिखी गई 6 किताबों का प्रकाशन दो बार हो चुका है। उनकी 5 किताबें प्रिटिंग के प्रोसेस में हैं जो जल्दी ही आ जाएंगी। 

महाराष्ट्र में पैदा हुए लक्ष्मण राव, पिछले 40 सालों से साहित्य की सेवा कर रहे हैं वो कहते हैं कि साहित्य मेरा शौक है और चाय बेचना मेरा रोजगार। इसलिए वो जहां चाय बेचते हैं वहीं पर अपनी किताबें भी बेचते हैं। 
 

सफर की शुरुआत उनके गांव से हुई। वो बताते हैं कि गांव में छोटे से लड़के ने नदी में नहाने की इच्छा जताई। लड़का नदी में गया लेकिन वो कभी वापस नहीं आया। इसी घटना को देखकर लक्ष्मण राव ने लिखने का मन बनाया। उस बच्चे रामदास के नाम पर उन्होंने अपनी पहली कहानी लिखी जोकि बाद में किताब में तब्दील हो गई। वो लेखक गुलशन नंदा को अपना गुरू मानते हैं। 

किताब लिखने के लिए पढ़ना पड़ता है। बड़े-बड़े साहित्यकार रोजाना घंटों पढ़ते हैं, वो लिखने के साथ साथ ये भी जानना चाहते हैं कि दुनिया में क्या चल रहा है। लक्ष्मण राव भी रोजाना कम से कम 5 अखबार पढ़ते हैं। किताबों के लिए वो दिल्ली के दरियागंज पर निर्भर हैं। पिछले कई सालों से संडे के दिन दरियागंज जाकर किताबे खरीदकर लाना उनके शेड्यूल में शामिल है।  इसके अलावा उन्हें कई किताबें सरकारी कार्यालयों से भी मिली हैं। वो बताते हैं कि इन्दिरा  गांधी के कार्यकाल के दौरान वो पूर्व प्रधानमंत्री से मिली थे और उनके ऊपर एक किताब लिखने की इच्छा जाहिर की थी। लेकिन इन्दिरा गांधी ने अपने कार्यकाल पर किताब लिखने की अनुमति दी थी। उनकी यह पुस्तक 1984 में प्रकाशित हुई थी। 

लक्ष्मण राव, पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल से सम्मानित भी हो चुके हैं। वो बताते हैं कि जब पहली किताब छपवाने के लिए मैं प्रकाशकों के पास गया तो उन्होंने मना कर दिया। एक प्रकाशक ने कहा कि आपके पास प्रतिभा है लेकिन आप पहले पढ़ाई करो। तब लक्ष्मण ने पढ़ाई शुरू की। अब वो एम ए (हिन्दी साहित्य) कर चुके हैं।  अब तो लक्ष्मण राव की किताबें ऑनलाइन भी मिलती हैं साथ ही बुक फेयर में भी बिकती हैं।  

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