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चुनावी माहौल खत्म हो चुका है। जीतने वाली पार्टी की तो जश्न है। विरोधी पार्टी के लिए माहौल वैसा ही बना है जैसे तूफान के बाद माहौल बन जाता है।
चुनाव के पहले हाथी वाली पार्टी में विभिन्न वजहों से पहचान पाने वाले कई नेताओं को जिम्मेदारी दी गई थी । इनमें पंडितजी के रिश्तेदार, फैजाबाद के दबंग ठाकुर साहब के अलावा अल्पसंख्यक चेहरे के रूप में कई दिग्गज शामिल थे। ये दावे भी बड़े-बड़े कर रहे थे, पर नतीजा आया तो सारे दावों की हवा निकल गई। अब इन बयान बहादुरों के खिलाफ काडर के भीतर से ही आवाज उठने लगी हैै। कई बयान बहादुरों को जिम्मेदारियों से मुक्त कर दिया गया है। कुछ की आगे विदाई हो सकती है।
समाजवादी सरकार की विदाई के साथ ही पंचम तल खाली हो गया है। सचिवालय के गलियारों में सबसे ज्यादा उत्सुकता यही है कि पंचम तल की कमान किसके हाथ होगी। वैसे तो कई नाम चर्चा में हैं। कई अफसर अपने-अपने संपर्क सूत्रों के सहारे यह ओहदा पाने का प्रयास भी कर रहे हैं। मौजूदा टीम में शामिल दो चेहरे भी वापसी के लिए हाथ-पैर मार रहे हैं, पर दिलचस्प ये है कि पंचम तल पर अपनी पहुंच बनाने के चक्कर में ये आला हाकिम एक -दूसरे की पोल भी खोलते जा रहे हैं।
भाजपा विधायक दल की बैठक में विधायकों में बड़े नेताओं के पास जाने की होड़ मची थी। उन्हें पक्का यकीन था कि किसी तरह बड़े नेता उन्हें एक झलक देख भर लें, तो वे तरक्की की अगली सीढ़ी भी पार कर लेंगे। कार्यक्रम के बाद एक विधायक को भाजपा के प्रदेश संगठन (महामंत्री) ने नाम लेकर पुकार लिया तो वे खुशी से झूम उठे। साथी विधायकों को बताने लगे-मेरा नाम लिया था महामंत्रीजी ने। अब तो मुझे पूरा यकीन है कि मैं तर जाऊंगा।