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'भाभी को जिताएंगे, दीदी को निपटाएंगे'

Apoorva Pandey/ firkee.in Updated Mon, 30 Jan 2017 01:45 PM IST
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s - फोटो : google
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विस्तार


चुनाव सिर पर हैं और हर कोई अपनी तिकड़म भिड़ाने में लगा हुआ है। प्रेस कांफ्रेंस के साथ समझिए चुनाव प्रचार भी शुरू हो ही गया है। यहां प्रेस कांफ्रेंस हुई और उधर नेता जी का बयान भी आ गया। आज आपके लिए हम सीधे लखनऊ से परदे के पीछे की बातें लेकर आए हैं।

आपके लिए पेश है लखनऊ डायरी के पन्नों से कुछ अंदर की बातें। बातें ताज़ी और करारी हैं। इससे पहले की सब ठंडा हो जाए, जल्दी से परोस देते हैं। तो आपके लिए हाज़िर है चुनावी खिचड़ी...


पंजे पर हावी साइकिल


साइकिल से गठबंधन क्या हुआ, पंजे वाली पार्टी के संगठन की सबसे ज्यादा मुसीबत बढ़ गई है। अब तो साइकिल वाले नेता पंजे वाली पार्टी के नेताओं पर रौब भी गांठ रहे हैं। बात पिछले दिनों की है सूबे की राजधानी में सत्तापक्ष एक वजीर चुनाव लड़ रहे हैं। गठबंधन के बाद उन्होंने पंजे वाली पार्टी के शहर के नेताओं के साथ अपने घर में मीटिंग की। बेचारे शहर अध्यक्ष अपने नेताओं के साथ मीटिंग में पहुंचे। वहां कुछ को बैठने की जगह मिली, लेकिन कई खड़े ही रहे। कुछ अपनी बात कह पाए तो बाकी की सुनी ही नहीं गई। मीटिंग के बाद पंजे वाली पार्टी के कार्यकर्ताओं ने अपने नेताओं को खूब खरी-खरी सुनाई। कहा, आगे से मीटिंग करनी हो तो अपने ही ऑफिस में करवाओ। आखिर हम लोगों की भी कोई इज्जत है। अब बेचारे पंजे वाली पार्टी के नेता बड़े परेशान हैं। एक तरफ गठबंधन की दुहाई है तो दूसरी ओर कार्यकर्ताओं का दबाव। समझ नहीं आ रहा कि क्या करें।
 


भाभी को जिताएंगे, दीदी को निपटाएंगे


गठबंधन के बाद पंजे वाली पार्टी को राजधानी में सीटिंग सीट भी नहीं मिली है। यहां से दीदी विधायक हैं जो अब कमल वाली पार्टी में शामिल हो गई हैं। साइकिल वाली पार्टी ने इस सीट से मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू को टिकट दिया है। पंजे वाली पार्टी के कार्यकर्ता दीदी से काफी नाराज हैं। इसलिए उन्होंने एक नया नारा भी गढ़ लिया है-‘भाभी को जिताएंगे, दीदी को निपटाएंगे।’ वे भाभी के साथ कैंपेन करने को लेकर काफी उत्साहित हैं। अभी से भाभीजी के संपर्क में पहुंच भी गए हैं।
 


कुर्सी का संकट


कुर्सी की जंग नेता ही नहीं, अफसर भी लड़ रहे हैं। हर बार की तरह इस बार भी चुनाव सेल सक्रिय कर दिया गया और अधिकारियों को तैनाती भी हो गई। इस सेल के मुखिया के तौर पर आईजी रैंक के एक अधिकारी की पोस्टिंग भी हो गई, लेकिन उन्हें बैठने के लिए एक अदद कुर्सी तक नसीब नहीं हो पाई। बेचारे आईजी साहब फाइलों समेत कभी चुनाव सेल में ही अपने मातहताें से मिलते हैं तो कभी फाइलें समेटे डीजीपी ऑफिस के गलियारों में मिल जाते हैं। किसी ने उनसे बैठने की जगह पूछ ली तो आईजी साहब सकपका गए। दर्शन बघारते हुए बोले-कुर्सी किसी की नहीं होती, मैं तो काम करने आया हूं, कहीं भी कर लूंगा।

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