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मंगलुरू के कृष्णप्पा गौड़ा पद्मबैल पेशे से सरकारी टीचर हैं, लेकिन आजकल कृषि विज्ञान की नई परिभाषा लिख रहे हैं। कृष्णप्पा ने अपने घर की छत को ही ऐसे खेत में तब्दील कर दिया है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कृष्णप्पा अपने छत पर पिछले पांच वर्षों से तरह तरह की सब्जियां, फल और चावल उगाते हैं। चावल की खेती के बारे में बच्चा बच्चा जानता है कि उसके लिए पानी से लबालब खेत चाहिए, लेकिन कृष्णप्पा अजब तकनीक से बहुत कम पानी लगाकर अपनी छत पर करीब 50 किलो चावल की खेती कर लेते हैं।
1200 स्क्वॉयर फुट की छत पर खेती से जो पैदा होता है, उसे कृष्णप्पा बेचते नहीं है, बल्कि अपने घर में ही इस्तेमाल करते हैं, इस वजह बाहर से फल और सब्जियां वगैरह खरीदना उनके लिए लगभग न के बराबर हो गया है।
कृष्णप्पा ने 200 ग्रो बैग खरीदे। ग्रो बैग एक प्रकार के प्लास्टिक के बैग होते हैं जिनमें फसल योग्य मिट्टी बनाकर भरी जाती है और उसमें पौधे या बीज रोपे जाते हैं। अमूमन ग्रो बैग्स का इस्तेमाल टमाटर उगाने के लिए होता है।
कृष्णप्पा खेती करने के लिए न के बराबर पानी का इस्तेमाल करते हैं। मिट्टी, बालू और गोबर से बने ग्रो बैग्स की अगर सही से देखभाल की जाए तो ये चार साल तक चलते हैं। नारियल हस्क को वह हैंगिग प्लांटर की तरह इस्तेमाल करते हैं।
कृष्णप्पा फसल चक्र के अनुसार खेती करते हैं। इस हिसाब से अप्रैल और मई के महीने में चावल की खेती करते हैं, उसके बाद उन ग्रो बैग्स में वह फल, सब्जियां और हल्दी उगाते हैं।