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हमारे देश में ज्ञान स्कूलों-कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के अलावा मुफ्त में भी मिलता है। कई बार यह बसअड्डों-स्टेशनों की दीवारों पर चिपका मिल जाता है तो कई बार फलों- सब्जियों और रेड़ियों पर किलो-किलो भर यूं ही मिल जाता है। पान और चाय की दुकानों पर तो इसके मिलने की गारंटी होती है, क्योंकि सुबह शाम यहां ज्ञानियों का जमघट लगता ही है।
अच्छी बात यह है कि यहां ज्ञानी होने के लिए पढ़ा लिखा होना जरूरी नहीं है, एक साधारण दिहाड़ी वाला आदमी जो कभी स्कूल नहीं गया, वह भी आपको ज्ञान दे सकता है। इस हिसाब से देखा जाए तो देश में ज्ञानियों की भरमार है, लेकिन हर कोई इसे अमल में भी लाए ये जरूरी नहीं।
मिसाल के तौर पर हाल ही में एक रिपोर्ट आई थी कि देश में करीब 72 करोड़ लोग खुले में शौच करते हैं। यह तब है जब स्वच्छ भारत मिशन जोरों से चलाया जा रहा है। समस्या शायद इसलिए बरकरार है, क्योंकि लोग इसे समस्या मानते ही नहीं हैं। उन्हें लगता है कि इससे वह अपना घर साफ और पवित्र रख पाते हैं। लेकिन इस पवित्रता की भेंट सबसे ज्यादा महिलाओं को चढ़ना पड़ता है। सर्दी-गर्मी हो या बरसात... हर मौसम में सूरज की दस्तक उनके लिए शौच पर पाबंदी लगा देती है। बुजुर्गों को भी इसके कारण फजीहत के अनिवार्य दौर से गुजरना पड़ता है। ताज्जुब इस बात का है कि जिस अभियान को महात्मा गांधी के जमाने से चलाया जा रहा है कि, उसके होते हुए आज भी देश में गांव के गांव ऐसे हैं जहां एक भी शौचालय नहीं बना है।
एक ऐसे गांव पर नजर पड़ी मुंबई के किशिनलाल चेलाराम महाविद्यालय के छात्रों की। करीब 300 छात्रों ने इस गांव के लिए जो किया, वह शायद भगवान ही धरती पर आकर कर सकते हैं। आगे की स्लाइड में पढ़ें पूरी दिलचस्प कहानी।
बात 2005 की है जब कॉलेज की राष्ट्रीय योजना सेवा (NSS) की यूनिट ने पलघर जिले के कारवाले गांव के एक स्कूल में कैंप लगाया और वहां शौचालय का निर्माण करवाया। इस दौरान छात्रों को पता चला कि उस गांव में भी एक भी शौचालय नहीं है। छात्रों ने तब अपने प्रोजेक्ट का विस्तार कर लिया और गांव के लिए शौचालय बनाने की ठानी।
शुरु में तो गांव वाले शौचायलों के लिए आनाकानी करते रहे, लेकिन छात्र अपने काम डटे रहे। वे आखिरकार गांव वालों को समझाने में सफल हुए और फिर शौचायल बनने का कारवां शुरू हुआ।
छात्रों की मुहिम ने तेजी पकड़ी और 2015 में गांव में 49 शौचालय बनकर तैयार हुए। 2016 में 300 से ज्यादा छात्रों ने एनएसएस के प्रोग्राम अधिकारी डॉक्टर सतीश कोल्टे के निर्देशन में 67 शौचालय और बनाए। इसके लिए छात्रों ने रविवार की छुट्टियां शौचालयों के निर्माण में लगाईं। 2 साल में छात्रों ने गांव 107 शौचालय बना दिए है। इस दौरान छात्रों ने शौचालय के लिए गड्ढा खोदने लेकर उसका सोकपिट बनाने, दीवारें खड़ी करने और उन्हें रंगने का सारा काम किया। इसकी ट्रेनिंग उन्हें प्रोग्राम मैनेजर और सीनियरों से मिली थी। इस अब गांव में हर परिवार के लिए एक शौचालय की व्यवस्था है।
छात्रों ने यहां ज्ञान बांटने के अलावा उसे अमल में भी लाने का काम किया जिसकी शायद देश में बहुत जरूरत है। अगर हर कोई चीजों को अमल में लाना शुरू कर दे तो देश की तस्वीर बदलने में देर नहीं लगेगी।
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thebetterindia