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देश 72वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है, लेकिन इतने वर्षों की आजादी में हमने अपने अतिवाद के चलते हवा, पानी और अपनी धरती के साथ गुलामों जैसा बर्ताव किया। जहां मन चाहा कचरा कर दिया। अब इन्हें भी अपने बच्चों से आजादी की आस है, लेकिन सवाल है कि क्या आप दे पाएंगे? एक बार इनकी गुहार पर नजरे-इनायत कर लीजिए... शायद आपके जज्बात छलक आएं और आप सच्ची आजादी के काम में लग जाएं।
नदी को देश का दर्जा देते हैं लेकिन ये भूल जाते हैं कि यह मां गंदगी से आजादी के लिए संघर्ष कर रही है।
जिन दीवारों को कैद का सूचक माना जाता है, कई बार वो खुद भी आजादी की मांग करती हैं। अपनी आंखें खोल कर देखिए कभी।
सुनने में अच्छा लगता है कि हम आजाद हवा में सांस ले रहे हैं, लेकिन जरा सोचिए क्या हमारी हवा आजाद है।
जमीन की आजादी के लिए लंबा संघर्ष किया। अब जमीन को ही गंदा कर रहे हैं। आखिर कब मिलेगी आजादी।