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इन जनाब का भी जवाब नहीं! आजकल ये जनाब सड़क से लेकर सत्ता के गलियारों तक चर्चा का विषय बने हुए हैं और अब अंतर्राष्ट्रीय पटल पर 'कूटनीतिक हथियार' भी साबित हो रहे हैं। बहुत संभव है कि नाराजगी या कुंठा में लिया जाने वाला इनका नाम जल्द ही ससम्मान लिया जाने लगे। वैसे, सच तो यह कि यूपी के पूर्व सीएम की आलोचना में घेरे जाने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इनकी तारीफ में खूब कसीदे गढ़ चुके हैं, इन्हें लगन-कर्मठता और जुझारूपन का सर्टिफिकेट भी अनौपचारिक तौर पर जारी कर चुके हैं।
हम सबने यूपी चुनाव के दौरान 'गधे' की महत्ता को जाना। हमेशा से जरूरी मुद्दों पर नानुकुर करने वाला पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान भी डैचू महाराज' की अहमियत को समझ रहा है और अपने फाजिल दोस्त चीन के समक्ष इन्हें बतौर 'निवेश और कारोबार का मसौदा बनाकर पेश करने की तैयारी कर रहा है। कहना गलत नहीं होगा कि पाक के लिए गधा एक कूटनीतिक हथियार बनने जा रहा है।
पाकिस्तान ने गधों की डील के लिए एक अरब रुपयों का मसौदा तैयार किया है। चीन इस भारी रकम का निवेश पाक में गधों पर करेगा। भई, दोनों दोस्तों का 'याराना' दुनिया से छिपा नहीं है और फिर एक दोस्त अपने दोस्त के लिए क्या नहीं करता! लेकिन कहीं ऐसा तो नहीं कि एक दोस्त दूसरे की रहमदिली का फायदा उठाने पर तुला हो! जी नहीं, गधा दरअसल दोनों की जरूरत है। पाक जहां अपने कृषि योजनाओं को साधना चाहता है तो चीन की जरूरतें उसके मर्ज से जुड़ी हैं, जो गधा अपनी जान पर खेलकर पूरी कर सकता है। यह मजाक नहीं, सीरियस बात है। आगे पढ़ें-
पूरी बात यह है कि पाकिस्तान के चार प्रांतों में एक खैबर पख्तूनख्वाह ने चीन के लिए गधों नई ब्रीड (खेप) तैयार करने का वीणा उठाया है। इसके लिए अगामी 17-18 मार्च को चीन में होने वाले एक रोड शो में भी पाकिस्तान इस योजना का जिक्र करेगा। डील को 'खैबर पख्तूनख्वाह-चाइना सस्टेनेबल डॉन्की डिवेलपमेंट प्रोग्राम' का नाम दिया गया है।
हालांकि ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है। अफ्रीकी देश नाइजीरिया, केन्या और बुरकिना फासो गधों को एक्सपोर्ट करते हैं। उसी को देखते हुए खैबर पख्तूनख्वाह की सरकार चीन को गधे एक्सपोर्ट करने की सोच रही है।
इस डील से पाक-चीन को होने वाले फायदे
पाकिस्तान में सक्रिय समाचार वेबसाइट द ट्रिब्यून की खबर के मुताबिक चीन-पाक आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) के तहत गधा एक्पोर्ट शुरू होगा।
गधा एक्सपोर्ट से संबंधित सरकारी कागजातों के मुताबिक पाकिस्तान में 'डेंचू मियां' की वैल्यू कोई समझ नहीं रहा, जबकी उसके फाजिल दोस्त चीन में इनकी बहुत इज्जत, बरक्कत और जरूरत है। वैसे सच तो इनकी जरूरत का ही है। चीन में अन्य उत्पादों के अलावा दवाओं के निर्माण में दरअसल गधों की खाल (चमड़े) का इस्तेमाल होता है।
सरकारी कागज में यह भी लिखा है कि प्रस्तावित परियोजना के अनुसार स्थानीय गधों के स्वास्थ्य और ब्रीड में सुधार करने पर गधा पालन समुदाय की सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार आएगा। गधा पालन और इसके कारोबार से जुड़े लोगों की आय को ध्यान में रखते सरकार ऐसे उपाय करेगी जिससे गधों की कीमतों में भी उछाल आए। इसके लिए नई तकनीकि पर काम होगा। गधा पालकों और उनकी सेवाओं की उपलब्धता की क्षमता पर काम निर्भर करेगा। मामले गरमाते देख तीन बख्तरबंद गधों और एक ऊंट के मालिक एक एजेके एक्टिविस्ट ने बुनियादी जरूरतों की मांग भी रख दी है।
फिलहाल मसौदे के लिए प्रस्तावित रकम एक अरब पाकिस्तानी रुपयों की रखी गई है, लेकिन सरकारी कागजातों पर जोर दिया गया है कि योजना न केवल निवेश की रकम पर खरी उतरेगी, बल्कि इससे अच्छा राजस्व भी तैयार होगा।
गधों के लिए शेल्टर निवेशक तैयार करेंगे।
उनके सीमेन प्रोडक्शन के लिए भी जगह सुनिश्चित की जाएगी।
गधों की देखभाली में लगे किसानों के रहने का भी बंदोबस्त किया जाएगा।
इसके लिए इस्तेमाल होने वाली जरूरी मशीनें लगाई जाएंगीं।
सौर्य ऊर्जा का इंतजाम किया जाएगा।
खैबर पख्तूनख्वाह की सरकार गधा पालन में लगे टेक्नीकल और नॉन टेक्नीकल कर्मचारियों की सभी जरूरतों का ख्याल रखेगी।
परियोजना को पाक सरकार और निवेशक के बीच परस्पर सहमति के संयुक्त उद्यम के जरिए अंजाम दिया जाएगा।
पाक सरकार के डॉक्युमेंट में कहा गया है कि परियोजना राज्य-स्वामित्व, राज्य-समर्थित और निजी संस्थाओं के लिए भी खुली रहेगी।