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लोग कितने विकसित हैं, कितनी तरक्की पर हैं ये बस उनकी सोच से ही पता चलता है। लोगों के अंदर कहीं न कहीं अब भी पिछड़ी सोच घर बनाए हुए है। ये वो लोग हैं जो अब भी 'हिजड़े' को इंसान नहीं समझते हैं। हांलाकि अब ऐसी सोच रखने वाले बहुत कम लोग ही हैं। धीरे-धीरे यह सोच अब बदल रही है। समाज धीरे-धीरे इन्हें अपने हिस्से के रूप में अपनाने लगा है, रेलवे ने भी इसी दिशा में एक अच्छा कदम उठाते हुए एक फ़ैसला किया है।
रेलवे के सर्कुलर में टिकट आरक्षण, रद्द कराने के फॉर्म में महिला और पुरुष के साथ-साथ ट्रांसजेंडर का विकल्प भी शामिल करने का निर्णय किया गया है। जमशेद अंसारी नाम के वकील ने हाई कोर्ट में दायर अपनी जनहित याचिका में फॉर्म में ट्रांसजेंडर का कॉलम न होना, आईआरसीटीसी द्वारा संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 19 और 21 का उल्लंघन बताया था। जिसमें अदालत ने केंद्र और राज्य सरकारों से ट्रांसजेंडर को तीसरे लिंग के रूप में मान्यता प्रदान करने का निर्देश दिया था।
ख़ैर रेलवे ने एक सराहनीय काम किया है। कम से कम अब एक 'हिजड़ा' मज़ाक का पात्र तो नहीं बनेगा, उसे सोचना तो नहीं पड़ेगा कि वह किस कैटेगरी में रिजर्वेशन कराए। ट्रांसजेंडर्स को स्वीकार करने के रेलवे के इस कदम की हम सराहना करते हैं। किसी विशेष जेंडर का होने से पहले हर व्यक्ति देश का नागरिक होता है।