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सुप्रीम कोर्ट ने एक पिटीशन का जवाब देते हुए सेंटर से कहा है कि हम सिर्फ़ एक एंट्रेंस एग्जाम लेकर, किसी बच्चे की काबीलियत को नहीं आंक सकते। इसलिए ज़रूरत है कि इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन के लिए कोई दूसरा तरीका निकाला जाए।
कोर्ट ने कहा कि इस संबंध में हमें कोई ऑर्डर देने का अधिकार नहीं है इसलिए सरकार को ही इसके लिए वाजिब कदम उठाने होंगे। कोर्ट ने कहा, कि चयन के समय 40% बोर्ड रिजल्ट का हिस्सा होना चाहिए और 60% एंट्रेंस एग्जाम का। इसमें दोनों ही तरह के बच्चों का फ़ाएदा होगा। उनका भी जिनका बोर्ड रिजल्ट किसी वजह से खराब हो जाता है और उनका भी जो कुछ मार्क्स से छूट जाते हैं।
जस्टिस ए.के. गोयल और यू.यू. ललित ने कुकुरमुत्ते की तरह फैलते हुए कोचिंग सेंटरों को रेगुलेट करने की बात भी कही। ये पीआईएल सीपीएम के छात्र संघ एसएफ़आई द्वारा दाखिल की गई थी जिसमें कहा गया था कि ये कोचिंग इंस्टिट्यूट छात्रों से बहुत ज़्यादा पैसे वसूलते हैं साथ ही उनका शोषण भी करते हैं।
इसपर कोर्ट ने कहा कि कोचिंग सेंटरों को रेगुलेट किया जा सकता है, लेकिन इनपर पूरी तरह से बैन नहीं लगाया जा सकता। छात्र संघ की तरफ़ से ये भी कहा गया कि सरकार को इस 40 000 करोड़ रुपय के बिज़नेस की तरफ़ ध्यान देना चाहिए। इनका फ़ाएदा सिर्फ़ अमीर छात्रों को मिल पाता है और इससे गरीब छात्रों का नुक्सान होता है।
कोचिंग इंस्टिट्यूट में इतने अधिक पैसे खर्च करने के बाद जब बच्चा एग्जाम पास नहीं कर पाता है तो उसे ये लगता है कि उसने मां-बाप का पैसा बर्बाद कर दिया है जिस वजह से बच्चों में आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ जाती है।
इसपर कोर्ट ने कहा कि हम मानते हैं कि इन कोचिंग सेंटरों की वजह से स्कूल की पढ़ाई दूसरे स्तर पर नज़र आ रही है लेकिन केवल इस वजह से इनपर बैन नहीं लगाया जा सकता। इनको रेगुलेट करने का काम केंद्र का है।