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मुरादाबाद के कठघर मोहल्ले में बीते दिनों 24 साल के एक युवक की मौत हो गई, मानसिक रूप से विकलांग था। खबर सिर्फ इतनी भर नहीं है। अब सुनिए आगे की कहानी, युवक की मौत पर हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के काफी लोग जुटे, उसकी मौत पर भगवत गीता भी पढ़ी गई और कुरान की आयातें भी।
उसके लिए हिंदू और मुस्लिम दोनों ने अपनी परंपराओं की बेड़ियां तोड़ दीं। जिंदगी के साथ उसकी पहचान पर भी दोनों समुदायों का हक इस कदर था कि जिस शमशान घाट में हिंदू चिताएं जलाते हैं वहां उसे मुस्लिम रिवाजों से दफनाया गया। हिंदुओं के लिए वह चमन था तो मुस्लिमों के लिए रिजवान। जिस दौर में हिंदू और मुस्लिमों के बीच कुछ लोग खाई बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं उस दौर में यह युवक दोनों समुदायों के बीच एक ऐसे पुल की तरह खड़ा रहा जिसके सहारे दोनों के बीच की दूरियां चंद पलों में सिमट जाती थीं।
चलिए साम्प्रदायिक सद्भाव की इस अनूठी कहानी को अब विस्तार से जानते हैं। मुरादाबाद के कठघर मोहल्ले की रहने वाली ज्वाला सैनी बताती हैं कि अगस्त महीने की एक बारिश वाली शाम उसका जन्म मेरे घर में हुआ था। हमने उसका नाम प्यार से चमन रखा। ज्वाला बताती हैं कि वह मेरा दूसरा बेटा था, जन्म के बाद से वह काफी सुस्त रहता था, जांच कराया तो पता चला उसे कुछ मानसिक बीमारी हैं।
हमने उसके इलाज के लिए पूरे प्रयास किए, लेकिन उम्र के साथ उसकी बीमारी बढ़ती गई। एक दिन वह घर से अचानक गायब हो गया। पुलिस के अनुसार फरवरी 2009 में चमन घर से गायब हुआ था, लेकिन पुलिस ने उसकी गुमशुदगी की कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई।
इसी साल दिसंबर के महीने में उसकी मां ज्वाला देवी को पता चला कि चमन नजदीक की ही एक मस्जिद में है। वह उसे लेने के लिए वहां पहुंची लेकिन एक शुभान आलम नाम के एक मुस्लिम ने उसे रोक दिया। उसक दावा था कि ये उसका छोटा भाई रिजवान आलम है। मामला बढ़ा तो दोनों परिवार पुलिस थाने पहुंच गए लेकिन कोई भी उस पर हक का पुख्ता सुबूत पेश नहीं कर पाया।
दोनों ही परिवारों के पास उसकी कोई पुरानी तस्वीर नहीं थी जिससे पता चल पाता कि उसके घरवाले कौन हैं। क्षेत्र के सर्किल ऑफिसर सुदेश गुप्ता बताते हैं कि मजबूरी में पुलिस ने दोनों ही परिवारों को उसका अभिभावक तय करने का फैसला किया। इसके बाद तो जैसे युवक हिंदू और मुस्लिम दोनों मोहल्लों के लिए मोहब्बत का सबब बन गया।
हिंदुओं के लिए वह चमन था तो मुस्लिमों के लिए वह रिजवान। ज्वाला के घर में उसे बेटे की तरह दुलार मिलता तो शुभान के बच्चे उसे चाचा कहकर पुकारते। फिर तो सिलसिला ये बना कि वह खाना यहां खाता तो रात को सोता वहां, खाना वहां खाता तो सोने के लिए यहां आता।
बेटा घर आता तो मां ज्वाला उसे नहला धुला कर अच्छे कपड़े पहनाती और उसका पूरा ख्याल रखती, यहां से वह शुभान आलम के घर पहुंचता तो वहां उनके बच्चे अपने चाचा की खातिरदारी के लिए तैयार रहते। ज्वाला बताती हैं कि शुरुआत में यह सबकुछ अजीब साल लगता था लेकिन बाद में दिल को ये तसल्ली हो गई कि वो लोग भी इसका पूरा ख्याल रखते हैं।
क्षेत्र के स्थानीय पार्षद बताते हैं चमन के सहारे मोहल्ले के सारे हिंदू और मुस्लिम परिवार नजदीक आए और एक बड़ा परिवार सा बन गया। उसके बाद तो हर त्यौहार पर मिठाइयां एक दूसरे को दी जाती और साथ मिलकर सारे जश्न मनाए जाते।
इसी बीच एक वाकये ने सबको हिला दिया, इसके बाद तो सब जैसे एक साथ ही आ गए। कुछ दिन पहले चमन अचानक बीमार पड़ गया, जिसके बाद दोनों ही परिवारों ने उसके बेहतर इलाज के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी, उसे अच्छे इलाज के लिए बरेली ले जाया गया, हालांकि उसकी हालत लगातार बिगड़ती रही और बीते बुधवार को उसने वहां अंतिम सांस ली।
चमन की मौत के बाद दोनों ही समुदाय उसके अंतिम क्रियाकर्म की तैयारी में लग गए, हर कोई उस पर अपना पहला दावा जताते हुए अपने हिसाब से क्रियाकर्म की बात कर रहा था। क्षेत्र के सीओ बताते हैं कि हिंदू चाहते थे कि उसका अंतिम संस्कार उनके धर्म के हिसाब से हो तो मुस्लिम भी उसे अपने धर्म के अनुसार उसे दफनाना चाहते थे।
सीओ के अनुसार इस मुद्दे पर माहौल कुछ तल्ख भी हो गया था जिसके बाद हमें पुलिस का बंदोबस्त करना पड़ा। इसी बीच एक बीच का रास्ता निकाला गया। जिसके बाद तय हुआ कि हिंदुओं के शमशान घाट में चमन को दफनाने का इंतजाम किया जाएगा। शमशान घाट की कमेटी ने भी शव को दफनाने के लिए जगह देने की हामी भर दी। उसके अंतिम संस्कार के बाद अब दोनों ही परिवार अपने अपने धर्म के हिसाब से बाकी क्रियाएं पूरी करने की तैयारी कर रहे हैं।
(Source: Hindustantimes.com)