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अब तमिलनाडु जाइएगा तो अपनी पसंदीदा सॉफ्ट ड्रिंक साथ लेकर जाइएगा। ऐसा इसलिए कि जल्लीकट्टू के बाद अब वहां एक नया आंदोलन छिड़ने की बू आ रही है। ये आंदोलन पेप्सी और कोक के खिलाफ़ होगा। ज़ाहिर है इस बार लोग 'बीच' पर नहीं उतरेंगे। इसके लिए एक दूसरा तरीका अपनाया जाएगा।
इस बार इन दो बड़े ब्रांड्स की सॉफ्ट ड्रिंक्स का बहिष्कार किया जाएगा। इस बात को लेकर घबराने की ज़रूरत नहीं है कि बारह महीने पड़ने वाली गर्मी से वहां के लोग कैसे निजात पाएंगे, क्योंकि इसका भी इंतज़ाम कर दिया गया है। इस आंदोलन के पीछे का कारण ये है कि ये दो बड़ी कंपनियां भूजल स्रोतों का हनन कर रही हैं। इसलिए इनका बहिष्कार करके जो स्थानीय सॉफ्ट ड्रिंक्स ब्रांड हैं उनका उपभोग किया जाना चाहिए।
तमिलनाडु ट्रेडर्स फेडरेशन और कंसोर्टियम तमिलनाडु ट्रेडर्स एसोसिएशन इस बहिष्कार को आज से ही शुरू करेगी। इसका असर 20 लाख दुकानों पर पड़ेगा। हालांकि चेन्नई और राज्य के दूसरे हिस्सों में स्थित सुपरमार्केट इस आंदोलन में हिस्सा नहीं लेंगे। टीएनटीएफ़ के प्रेसिडेंट टी. वेल्लियन का कहना है कि जैसे तमिलनाडु के छात्रों ने जल्लीकट्टू के आंदोलन को सफल बनाया वैसे ही वो इस बहिष्कार को भी निश्चित रूप से सफल बनाएंगे।
वहीं ए.एम. विक्रमराजा का कहना है कि हम इन ड्रिंक्स का विरोध केवल इस वजह से ही नहीं कर रहे हैं क्योंकि ये एमएनसी द्वारा बनाई जाती हैं, हम ऐसा इसलिए कर रहे हैं क्योंकि इससे शरीर को नुक्सान पहुंचता है। तमिलनाडु पिछले कई सालों से सूखे का सामना कर रहा है ऐसे में इन कंपनियों पर रोकथाम लगाना ज़रूरी है।
ये बहिष्कार जल्द ही दूसरे राज्यों में भी फैल सकता है क्योंकि केरल के ट्रेडर्स एसोसिएशन भी ऐसा ही कदम उठाने पर विचार कर रहे हैं। हर साल सूखे की वजह से कई किसान आत्महत्या कर लेते हैं। ऐसे में ऐसा किया जाना ज़रूरी है।
वहीं दूसरी तरफ़ 118 साल पुरानी स्थानीय सोडा कंपनी के मैनेजर एस. कार्थीगाईकानी का कहना है कि इस बहिष्कार से हमारे व्यापार में 100% का फ़ाएदा हो सकता है।
तो दोस्तों अब तमिलनाडु के युवाओं से ये पूछना चाहिए कि क्या वो इस बहिष्कार के पक्ष में हैं? वो अब कॉलेज और स्कूल से आकर क्या सिर्फ़ नारियल पानी का सेवन करेंगे? या फिर स्थानीय सोडा पिएंगे? दोस्तों आपको क्या लगता है कि क्या इन हानिकारक पेय पदार्थों के खिलाफ़ दूसरे राज्यों में भी ऐसे आंदोलन छेड़े जाने की ज़रूरत है?