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वो गाना तो आपने सुना होगा। "कभी प्यासे को पानी पिलाया नहीं, बाद अमृत पिलाने से क्या फायदा"। इस लाइन को एक शख्स पिछले 22 साल से अपने जीवन का आधार बनाकर जी रहा है। दोस्त ने मरते समय कहा... "प्यासे को पानी पिलाने से बड़ा पुण्य कोई नहीं।
मन को सुकून और चैन की जिंदगी जीने के लिए इस काम को जरूर करना, इससे आत्मा को बड़ा सुकून मिलेगा। " बस ये बात को 68 साल के एक बुजुर्ग इतनी शिद्दत से निभा रहा है जिसे जानकर हर किसी के आंसू छलक जाएंगे।
यह कहानी है मध्यप्रदेश के जावदेश्वर गांव के 68 साल के रामपाल प्रजापति की। रामपाल प्रजापति अपने गांव से 20 किलोमीटर दूर पाली हाइवे पर बाल्टी में पानी लेकर शर्दी,गर्मी या बरसात हरदम मौजूद रहते हैं। जैसे ही कोई बस दूसरा वाहन रुकता है वह बाल्टी और लौटे में पानी लेकर बस की खिड़कियों के पास पहुंच जाते हैं।
पैदल हो या बाइक से गुजर रहा राहगीर हर किसी को रामपाल पानी के लिए जरूर पूछते हैं। पिछले 22 साल से रामपाल प्यासाें को पानी पिलाने का काम कर रहे हैं। वो भी बिना किसी स्वार्थ के।
रामपाल प्रजापति का एक दोस्त था वासुदेव वैष्णव जो उसी हाईवे पर लोगों को पानी पिलाने का काम करता था। कई साल तक वासुदेव यही काम करता रहा जब उसने दम तोड़ा तो रामपाल से कहा कि प्सासे को पानी पिलाने से बड़ा कोई पुण्य नहीं। अगर तुम यह कर पाओ तो जरूर करना। पैसा नहीं आत्मा को सुकून इतना मिलेगा कि किसी भी चीज की चाह नहीं रहेगी। दोस्त के यह अंतिम बोल को अब रामपाल अपनी जिंदगी का मकसद बनाकर जी रहा है।
रामपाल का कहना है कि जिस दिन मैं नहीं आता तो पत्नी आती है लेकिन, यह काम कभी नहीं छोड़ा। किसी लालच में नहीं बस खुद के लिए यह काम कर रहा हूं।
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