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इन युवा छात्रों के आविष्कारों से पूरी दुनिया में रौशन हो गया भारत का नाम

Apoorva Pandey/ firkee.in Updated Mon, 15 May 2017 03:13 PM IST
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young indian inventors
young indian inventors - फोटो : north east today, hindustan times
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जब भी आपने स्कूल में कुछ बड़ी खोजों और आविष्कारों के बारे में पढ़ा होगा तो पाया होगा कि इस लिस्ट में भारतीयों की संख्या बेहद कम है। उस वक्त आपके दिमाग में यह बात जरूर आती होगी कि भारत में वैज्ञानिकों की संख्या इतनी कम क्यों है। भले ही उस समय आपको यह महसूस हुआ हो लेकिन अब समय पूरी तरह से बदल चुका है।

भारत विज्ञान के क्षेत्र में दिन पर दिन तरक्की कर रहा है। आजकल तो भारतीय बच्चे ही ऐसे आविष्कार कर रहे हैं कि आप यह सोचने पर मजबूर हो जाएंगे कि इन नन्हें वैज्ञानिकों को इतने शानदार आईडिया आए कहां से? जिस उम्र में हम लोग न पढ़ने के बहाने ढूंढते थे उस उम्र में ये बच्चे पूरी दुनिया में अपना नाम रौशन कर रहे हैं। आइए आज हम आपको ऐसे ही कुछ बच्चों से मिलवाते हैं जिन्होंने अपने आविष्कारों से भारत ही नहीं बल्कि दूसरे देशों को भी चौंका दिया है!
 

अरुणाचल प्रदेश के अनंग ने ऐसे गॉगल्स बनाए जिन्हें दृष्टि बाधित लोगों की समस्या को कम करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। इन्हें पहनकर वो अपने रास्ते में आने वाली बाधाओं को आसानी से पार कर सकते हैं। इस चश्मे में ऐसे सेंसर लगे होते हैं जो लोगों की मदद करते हैं। सामने कोई भी चीज आने पर ये बीप की आवाज करते हैं। अनंग को एक छोटी लड़की को देखकर इसे बनाने की प्रेरणा मिली थी जो देख नहीं सकती थी। यूनिसेफ ने अनंग से इसे और बेहतर करने को कहा है।
 

तमिलनाडु के आकाश मनोज ने एक ऐसी डिवाइस बनाई है जिससे साइलेंट हार्ट अटैक्स का पता लगाया जा सकता है। आकाश के दादा जी की मृत्यु एक साइलेंट हार्ट अटैक से हुई थी। इस तरह के हार्ट अटैक को पकड़ पाना बेहद मुश्किल होता है और इसमें तुरंत ही मौत हो जाती है। आकाश ने एक ऐसी डिवाइस बनाई जो साइलेंट हार्ट अटैक को भी आसानी से पकड़ सकता है। आकाश को राष्ट्रपति भवन और एम्स दिल्ली से भी सहायता मिली। 
 

हर्षवर्धन गुजरात के रहने वाले हैं और इन्होंने मात्र 14 साल की उम्र में ही एक लेजर ड्रोन बना लिया जो लैंड माइंस का पता लगाने में सक्षम है। इन्होंने गुजरात सरकार के साथ 5 करोड़ रुपये का करार भी किया है। सरकार से मदद मिलने से पहले हर्षवर्धन इस प्रोजेक्ट में अपने 2 लाख रुपये लगा चुके थे। यह ड्रोन भारतीय सेना के लिए बेहद मददगार साबित हो सकता है। इसमें इंफ्रारेड सेंसर, थर्मल मीटर और 21 मेगापिक्सल के कैमरे के साथ एक आरजीबी सेंसर भी लगा हुआ है। 

यह ड्रोन न सिर्फ लैंडमाइंस का पता लगा लेता है बल्कि उसकी तीव्रता का पता भी लगा लेता है।
 

शालिनी कुमारी ने मात्र 12 साल की उम्र में ही एक 'एडजस्टेबल वॉकर' बनाया था। इसकी मदद से चलने में असमर्थ लोगों को सीढ़ियां चढ़ने में आसानी होती है। शालिनी के दादा जी का एक्सीडेंट हुआ था जिस वजह से वो सीढ़ियां नहीं चढ़ पाते थे, तभी शालिनी के दिमाग में ऐसा कुछ बनाने का आईडिया आया। शालिनी को अपने इस आविष्कार के लिए डॉ। एपीजे अब्दुल कलाम से नेशनल इनोवेशन अवॉर्ड भी मिला था।
 

शिवकाशी में बहुत सारी पटाखे बनाने वाली फैक्ट्रियां हैं। इन्हीं में से एक में जयकुमार की मां भी काम करती थीं। एक बार वहां आग लग गई और इस हादसे में जय की मां गंभीर रूप से घायल हो गईं। उस समय इन्होंने यह तय किया कि वह ऐसा कुछ बनाएंगे कि इस तरह के हादसों से होने वाले जान-माल के नुकसान को कम किया जा सके। जयकुमार ने ऐसा फायर एक्स्टिंगुइशर बनाया जो आग का पता लगते ही पानी के मोटर को चालू कर देता है। इसमें खास तरह के हीट सेंसर लगे हैं। इससे पहले जय ने एलपीजी सिलेंडर से लगने वाली आग का पता लगाने वाली डिवाइस बनाई थी।
 

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