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'हो रहा भारत निर्माण' से लेकर हम 'मेरा देश बदल रहा है' तक पहुंच चुके हैं। देश का सबसे ज्यादा उद्धार और विकास इन गीतों में ही हुआ है। वास्तविक हालत कुछ और है कहकर मैं आपको वास्तविक हालत से रू-ब-रू कराने की ज़हमत भी नहीं उठाना चाहती। आप जानते हैं कि ज़मीनी हक़ीकत क्या है।
तो क्या करें? सरकार को कोस-कोस कर अपना काम खत्म कर दें? उसके बाद हमारी कोई जवाबदेही नहीं बनती? कश्मीर के लिए नेताओं को कोसने वाले हमलोग अपने मोहल्ले तक का ख्याल नहीं रख पाते हैं। थोपना सबसे आसान काम है, सो वो करते रहते हैं। कुछ लोग हैं जो इस मरुभूमि में भी ज़िंदादिली ढूंढ निकालते हैं।
एक बच्ची है उरई की। उरई पड़ता है बुंदेलखंड, उत्तरप्रदेश में। करीब छः साल की इस बच्ची का नाम दिव्या है। उरई रेलवे स्टेशन के पास एक मंदिर है, उसके बगल में इसका घर है। दूसरी कक्षा में पढ़ने वाली दिव्या उस घर से अक्सर ही रेलवे स्टेशन के इंक्वायरी काउंटर (पूछताछ खिड़की) के सामने आकर बैठती है। अपना होमवर्क करती है। होमवर्क के लिए घर में जगह नहीं है? सर जी, जगह तो है पर रोशनी भी तो होनी चाहिए न! इसलिए ये बच्ची यहां आकर अपना काम पूरा करती है। पूछताछ खिड़की के सामने जलने वाली लाइट इसे पढ़ाती है। साथ में दिव्या की छोटी बहन भी आती है। जबतक दिव्या काम पूरा करती है, वो खेलती-कूदती रहती है और फिर दोनों लौट जाते हैं।
अगर आपके आस-पास कुछ ऐसा होता है तो अनदेखा कर के आगे बढ़ने से पहले ठहरकर सोचिएगा। ये लोग भिखारी नहीं हैं। बेहतर ज़िंदगी जीने के लिए मेहनत कर रहे हैं, आपसे बिना कुछ मांगे। इनकी मदद की जानी चाहिए, इनको प्रोत्साहन मिलना चाहिए। ताकि बना रहे लोगों का अच्छाई पर विश्वास। सबकुछ मोदी ही नहीं ठीक करेंगे, कुछ आप भी करते चलिए।