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मकर संक्रांति हिन्दुओं का प्रमुख पर्व है। मकर संक्रांति पूरे भारत में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। पौष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है तभी इस पर्व को मनाया जाता है। मकर संक्रांति के दिन से ही सूर्य की उत्तरायण गति भी प्रारम्भ होती है। इसलिए इस पर्व को कहीं-कहीं उत्तरायणी भी कहते हैं, लेकिन मकर सक्रांति मनाई क्यों जाती है ये कम ही लोग जानते हैं। अलग-अलग मान्यताओं के अनुसार मकर सक्रांति मनाने के अलग-अलग कारण है, आइए जानते है इस बारे में।
पुराणों के अनुसार मकर सक्रांति के दिन सुर्य अपने पुत्र शनि के घर एक महिने के लिए जाते है, क्योंकि मकर राशि का स्वामी शनि है।
हालांकी ज्योतिषीय दृष्टि से सुर्य और शनि का तालमेल संभव नही, लेकिन इस दिन सुर्य खुद अपने पुत्र के घर जाते हैं। इसलिए पुराणों में यह दिन पिता-पुत्र को संबंधो में निकटता की शुरुआत के रूप में देखा जाता है।
इस दिन भगवान विष्णु ने असुरों का अंत करके युद्ध समाप्ति की घोषणा की थी। उन्होंने सभी असुरों के सिरों को मंदार पर्वत में दबा दिया था। इसलिए यह दिन बुराइयों और नकारात्मकता को खत्म करने का दिन भी माना जाता है।
एक अन्य पुराण के अनुसार गंगा को धरती पर लाने वाले महाराज भागीरथ ने अपने अपने पूर्वजों के लिए इस दिन तर्पण किया था। उनका तर्पण स्विकार करने के बाद इस दिन गंगा समुंद्र में जाकर मिल गई थी। इसलिेए मकर सक्रांति पर गंगा सागर में मेला लगता है।
माना जाता है की मां दुर्गा ने दानव महिषासुर का वध करने के लिए इसी दिन धरती पर कदम रखा था।
महाभारत में पितामह भीष्म ने सुर्य के उत्तरायण होने पर स्वेच्छा से शरिर का परित्याग किया था, कारण कि उत्तरायण में देह छोड़ने वाली आत्माएं या तो कूछ काल के लिए देवलोक में चली जाती है या पुनर्जन्म के चक्कर से उन्हें छुटकारा मिल जाता है।