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समाज में कई प्रकार अपराधी हैं। खूनी, गुंडे, डकैत, जेबकतरे, चोर और न जाने कितने। कुछ पैसों के लालच में किए गए अपराध के चक्कर में न जाने कितने ही लोग बदनाम हुए, लेकिन कुछ अपराधी ऐसे भी हैं, जिन्होंने करोड़ों का हेर फेर किया और बच गए। लेकिन कितने भी शातिर अपराधी क्यों न हों, कभी न कभी कानून के शिकंजे में फंस ही जाता है। हमारे देश में भी ऐसी कई चोरियां हुईं हैं, जिन्होंने प्रशासन, पुलिस के साथ-साथ जनता को भी चौंकाया। इन्हें चोर कहा जाए या आर्थिक अपराधी मगर हैरतअंगेज तरीके से इन्होंने कईयों को चूना लगाया। हालांकि, आखिर में बुरे का नतीजा, बुरा ही होता है।
सिक्योरिटी स्कैम - 1991
आपने हर्षद मेहता का नाम तो सुना होगा। गुजरात के साधारण जैन परिवार में जन्में हर्षद को महत्वकांक्षांएं जिंदगी ले बहुत ज्यादा थीं। असल में हर्षद मेहता एक शेयर ब्रोकर था जो 1991 में बीएसई सेंसेक्स में घपला करके चर्चाओं में आया था। ये आज तक कोई नहीं जान पाया कि मेहता ने इस स्कैम से कितना पैसा बनाया था।
बैंकों को एक निश्चित धनराशि अपने पास रखनी पड़ती है। इस राशि का ब्यौरा प्रशासन को हर शुक्रवार को देना होता है। ऐसे में कुछ बैंको के पास पैसा कम होता था तो कुछ के पास ज्यादा। यहीं मेंहता ने अपना काम किया।
मेहता कम धन वाले बैंकों के पास जाते और कहते कि वो कई बैंको को जानते है जिनके पास ज्यादा धन है। मदद का भरोसा देकर मेहता उस बैंक से अपने नाम का एक चैक लेते और आश्वासन देते का वो पैसे का इंतजाम करवा देंगे। ऐसे ही वो अन्य बैंको के पास गए और सबको यही बाक बोलकर अपने नाम ये चैक बनवाते रहे। इस पैसे को उन्होंने शेयर बाजार में लगा दिया, जिसके कारण बाजार में बहुत बड़ा उछाल आया। लेकिन एक समय के बाद गुब्बारे की हवा निकल गई और शेयर बाजार, औंधे मुंह गिर गया।
कई व्यापारियों ने अपनी पूरी जिंदगी की पूंजी गंवा दी। कई लोग कंगाल हो गए। कई बैंक प्रमुख अधिकारियों ने इस्तीफे दे दिए और विजया बैंक के प्रमुख ने अपनी बिल्डिंग कि छत से कूद कर आत्महत्या कर ली। मेहता पर सैंकड़ों मुकदमे ठोके गए, लेकिन 27 ही दर्ज हुए, और सिर्फ 1 में ही सजा मिली। आज तक न तो यह पता चला कि मेहता ने इस घपले से कितना पैसा बनाया, वो कहां है और किसके पास है।
मिथिलेश कुमार श्रीवास्तव उर्फ नटवरलालभारत में इस नाम को किसने नहीं सुना। ये चोर इतना शातिर था कि आज के समय ये एक 'संज्ञा' बन चुका है। इसने देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के सिग्नेचर कॉपी करके ताज महल, लाल किला, राष्ट्रपति भवन, संसद भवन और 545 सांसद तक बेच दिए थे।
नटवरलाल ने टाटा, बिड़ला और धीरूभाई अंबानी जैसे बड़े उद्योगपतियों से भी लाखों रुपए हड़प लिए थे। 100 से भी ज्यादा मामलों में अपराधी नटवरलाल के पीछा 8 राज्यों की पुलिस कर रही थी। उसे 113 साल की जेल हुई थी। लेकिन नटवरलाल इतनी आसानी से हाथ आने वालों में से नहीं था। पुलिस ने उसे 9 बार पकड़ा, जिसमें से वो 8 बार फरार हो गया। 1996 में 84 की उम्र में उसे आखरी बार पकड़ा गया लेकिन वो तब भी निकल भागा। नटवरलाल को 24 जून 1996 को आखरी बार देखा गया था। नटवरलाल के वकील नंदलाल जैसवाल का कहना है कि उसकी मौत 2009 में 97 साल की उम्र में हुई, लेकिन उसके भाई गंगा प्रसाद श्रीवास्तव के अनुसार उसका अंतिम संस्कार 1996 में हुआ था।
ATM कांड- 2012
2012 में कुछ लोगों ने पंजाब और केरल में एक ऐसा घपला हुआ जिसकी वजह से बैंको से करोड़ो लूटे गए। एटीएम मशीन में एक सिस्टम होता है जिसमें अगर आप कुछ सेकंड में पैसा नहीं निकालते हैं, तो वो राशि फिर से मशीन के अंदर चली जाती है और रुपए आपके खाते में फिर जमा हो जाते हैं। चोरों ने इसी डिजाइन का फायदा उठाया।
चोर अलग-अलग बैंको के एटीएम में जाते और एक निश्चित राशि निकालते थे। पैसे जब बाहर आते तो सिर्फ कुछ रूपए लेते और बचे हुए पैसे मशीन के अंदर ही चले जाते। मशीन को यह पता नहीं होता कि कितना पैसा निकाला गया है, इस वजह से आपके खाते में सारा पैसा फिर जमा हो जाता थी। मसलन आपने 5000 रुपए निकालने का आदेश दिया और 5000 बाहर आने पर आपने 4000 निकाल लिए और 1000 मशीन वापस चले गए। मगर आपके खाते में 5000 ही जमा होते थे।
इस तरह इस गैंग ने केरल और पंजाब के फेडरल बैंक से 75 लाख रूपए लूट लिए। जब बैंक को इस गड़बड़ी के बारें में पता चला तो उन्होंने पुलिस को खबर किया। इस मामले में पुलिस ने 6 लोगों को गिरफ्तार किय़ा। चोरी पकड़े जाने पर इन लोगों ने कूबूल किया कि इन्होंने दूसरे बैंको से भी लाखों का घपला किया था। कुल मिला कर इन्होंने करीब 2 करोड़ की लूट की।
इस कांड के बाद एनपीसीआई (NPCI- National Payments Corporation of India) ने बैंकों को आदेश दिया कि नोट वापस जाने वाली सुविधा को बंद कर दें। रिजर्व बैंक के अंतिम निर्देश के बाद इसे लागू कर दिया गया। आज भी यह सुविधा बंद है।
ओपेरा हाउस डकैती- 1987आपने स्पेशल 26 फिल्म तो देखी ही होगी। यह फिल्म एक सत्या घटना पर आधारित है। फिल्म में चार लोग नकली सीबीआई इंस्पेक्टर बन कर मुंबई की एक बड़ी ज्वेलरी की दुकान में 2 करोड़ की लूट करते हैं। फिल्म और असलियत में फर्क यह है कि असलियत में इस अपराध को अंजाम सिर्फ एक आदनी ने दिया था।
19 मार्च, 1987 के दिन मुंबई पुलिस मुख्यालय में एक फोन आया, जो मुंबई के सबसे बड़े ज्वेलरी शोरूम, ओपेरा हाउस, से थी। उनकी शिकायत यह थी कि सीबीआई की एक टीम ने उनके स्टोर पर छापा मारा और उनका मुख्या करोड़ों की ज्वेलरी लेकर गायब है। पुलिस मौके पर पहुंची और देखा कि लीडर को छोड़ कर सभी लोग वहां मौजूद थे। लीडर मोहन सिंह की तलाश शुरू की गई।
मोहन सिंह इतना शातिर था कि उसने 18 मार्च को टाइम्स ऑफ इंडिया में एक एड निकाला था जिसमें 'इंटेलिजेंस अफसर और सिक्योरिटी अफसर' की पोस्ट के लिए नौकरी के अवसर का था। उम्मीदवार ताज कॉन्टिनेंटल होटल पहुंचे, जहां उनका इंटरव्यू लिए गया। उनमें से 26 लोगों को सिलेक्ट किया गया। आइडेटिटी कार्ड देकर एक बस में बैठाया गया, जो उन्हें ओपेरा हाउस लेकर गई। सीबीआई का नाम सुनकर इतना डर गए कि किसी ने भी इसका विरोध नहीं किया। इसी डर का फायदा उठा कर मोहन सिंह करोड़ों के जेवरात लेकर गायब हो गया।
हैरानी की बात यह है कि मोहन सिंह को पुलिस आज तक नहीं पकड़ पाई है। पुलिस रिकॉर्ड के हिसाब से यह 'परफेक्ट क्राइम' था।
पंजाब नेशनल बैंक डकैती- 198712 फरवरी, 1987 में लाभ सिंह नाम के इंसान ने पंजाब नेशनल बैंक, लुधियाना ब्रांच से करीब 6 करोड़ रुपये लूटे। कैसे लूटे यह जान कर आप हंसी जरूर आएगी।
लाभ सिंह और उसके कुछ साथी पंजाब नेशनल बैंक की ब्रांच में गए और सारे कर्मचारियों और बैंक में आये हुए लोगों को बंदी बना लिया। दरवाज़ा बंद करके उन्होंने बैंक के ही फ़ोन से पुलिस को कॉल लगाया कि शहर के किसी और बैंक में डकैती हो रही है। ये सुन कर पुलिस अपनी पूरी फ़ोर्स के साथ उस ब्रांच की तरफ चली गई। लाभ सिंह और उसके साथियों ने बड़े आराम से बैंक लूटा और चलते बने।ये थीं कुछ घटनाएं, चोरियां और डकैतियां जिन्होंने पुलिस और प्रशासन के छक्के छुड़ा दिए थे। कहते हैं न कि तेज़ दिमाग अगर गलत हरकतों में लग जाए तो बहुत नुकसान पहुंचा सकता है।