Home›History›
The Second Longest Continuous Wall In The World
कुम्भलगढ़ फोर्ट में है वर्ल्ड की दूसरी सबसे लम्बी दीवार
Rahul Ashiwal/Firkee.in
Updated Sun, 30 Oct 2016 11:32 AM IST
विज्ञापन
kumbhalgarh-fort-stay-rajasthan
विज्ञापन
विस्तार
चीन की ”The Great Wall Of China” के बारे में तो सुना ही होगा जो दुनिया के सात अजुबों में शामिल है और विश्व कि सबसे बड़ी दीवार है, पर क्या आपने विश्व कि दूसरी सबसे लम्बी दीवार के बारे में सुना है जो कि भारत में स्थित है?...जी हां दुनिया की सबसे लम्बी दूसरी दीवार भारत के राजस्थान में ही है। आइए बताते है इस दीवार के बारे में और इससे जुड़ी रोचक कहानी के बारे में....
विश्व कि दूसरी सबसे लम्बी दीवार
दरअसल हम बात कर रहें हैं राजस्थान के राजसमंद जिले में स्थित कुम्भलगढ़ फोर्ट की दीवार की जो कि 36 किलोमीटर लम्बी तथा 15 फीट चौड़ी है। इस फोर्ट का निर्माण महाराणा कुम्भा ने करवाया था। कुम्भलगढ़ का दुर्ग राजस्थान ही नहीं भारत के सभी दुर्गों में विशिष्ठ स्थान रखता है। यह दुर्ग समुद्रतल से करीब 1100 मीटर कि ऊचाईं पर स्थित है।
कुम्भलगढ़ फोर्ट का निर्माण
कुम्भलगढ़ फोर्ट का निर्माण सम्राट अशोक के दूसरे पुत्र सम्प्रति के बनाये दुर्ग के अवशेषों पर किया गया था। इस दुर्ग के पूरा होने में 15 साल ( 1443-1458 ) लगे थे। दुर्ग का निर्माण पूर्ण होने पर महाराणा कुम्भा ने सिक्के बनवाये थे जिन पर दुर्ग और इसका नाम अंकित था।
360 से ज्यादा मंदिर
दुर्ग कई घाटियों व पहाड़ियों को मिला कर बनाया गया है जिससे इसे एक अलग ही प्राकृतिक सुरक्षा मिली हुई है जिसे पाकर ये दुर्ग अजेय रहा। इस दुर्ग में ऊंचे स्थानों पर महल, दिर व आवासीय इमारते बनायीं गई और समतल भूमि का उपयोग कृषि कार्य के लिए किया गया वही ढलान वाले भागों का उपयोग जलाशयों के लिए किया गया, कहा जाता है की इस दुर्ग को किसी और पर निर्भर रहने की आवश्यकता नहीं थी। इस दुर्ग के अंदर 360 से ज्यादा मंदिर हैं जिनमे से 300 प्राचीन जैन मंदिर तथा बाकी हिन्दू मंदिर हैं।
कुम्भलगढ़ की आंख
इस दुर्ग के भीतर एक और गढ़ है जिसे कटारगढ़ के नाम से जाना जाता है, इसे कुम्भलगढ़ की आंख भी कहा जाता है। यह गढ़ सात विशाल द्वारों व मजबूत दीवारों से सुरक्षित है। इस गढ़ के शीर्ष भाग में बादल महल है व कुम्भा महल सबसे ऊपर है। महाराणा प्रताप की जन्म स्थली कुम्भलगढ़ एक तरह से मेवाड़ की संकटकालीन राजधानी रहा है।
गौरवशाली इतिहास
महाराणा कुम्भा से लेकर महाराणा राज सिंह के समय तक मेवाड़ पर हुए आक्रमणों के समय राजपरिवार इसी दुर्ग में रहा। यहीं पर पृथ्वीराज और महाराणा सांगा का बचपन बीता था। महाराणा उदय सिंह को भी पन्ना धाय ने इसी दुर्ग में छिपा कर पालन पोषण किया था। हल्दी घाटी के युद्ध में हार के बाद महाराणा प्रताप भी काफी समय तक इसी दुर्ग में रहे।
निर्माण कार्य में आईं बहुत अड़चने
इसके निर्माण कि कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। 1443 में राणा कुम्भा ने इसका निर्माण शुरू करवाया पर निर्माण कार्य आगे नहीं बढ़ पाया, निर्माण कार्य में बहुत अड़चने आने लगी। राजा इस बात पर चिंतित हो गए और एक संत को बुलाया। संत ने बताया यह काम तभी आगे बढ़ेगा जब स्वेच्छा से कोई मानव बलि के लिए खुद को प्रस्तुत करे। राजा इस बात से चिंतित होकर सोचने लगे कि आखिर कौन इसके लिए आगे आएगा। तभी संत ने कहा कि वह खुद बलिदान के लिए तैयार है और इसके लिए राजा से आज्ञा मांगी।
संत ने बताया उपाय
संत ने कहा कि उसे पहाड़ी पर चलने दिया जाए और जहां वो रुके वहीं उसे मार दिया जाए और वहां एक देवी का मंदिर बनाया जाए। ठीक ऐसा ही हुआ और वह 36 किलोमीटर तक चलने के बाद रुक गया और उसका सिर धड़ से अलग कर दिया गया। जहां पर उसका सिर गिरा वहां मुख्य द्वार ” हनुमान पोल ” है और जहां पर उसका शरीर गिरा वहां दूसरा मुख्य द्वार है।
मजदूरों के लिए 50 किलो घी और 100 किलो रूई का प्रयोग
महाराणा कुंभा के रियासत में कुल 84 किले आते थे जिसमें से 32 किलों का नक्शा उसके द्वारा बनवाया गया था। कुंभलगढ़ भी उनमें से एक है। इस किले की दीवार की चौड़ाई इतनी ज्यादा है कि 10 घोड़े एक ही समय में उसपर दौड़ सकते हैं। एक मान्यता यह भी है कि महाराणा कुंभा अपने इस किले में रात में काम करने वाले मजदूरों के लिए 50 किलो घी और 100 किलो रूई का प्रयोग करते थे जिनसे बड़े बड़े लेम्प जला कर प्रकाश किया जाता था।
अजेय रहा दुर्ग...लेकिन
इस दुर्ग के बनने के बाद ही इस पर आक्रमण शुरू हो गए लेकिन एक बार को छोड़ कर ये दुर्ग प्राय: अजेय ही रहा है। उस बार भी दुर्ग में पीने का पानी खत्म हो गया था और दुर्ग को बहार से चार राजाओ कि सयुक्त सेना ने घेर रखा था यह थे मुगल शासक अकबर, आमेर के राजा मान सिंह, मेवाड़ के राजा उदय सिंह और गुजरात के सुल्तान। लेकिन इस दुर्ग की कई दुखांत घटनाये भी है जिस महाराणा कुम्भा को कोई नहीं हरा सका वही परमवीर महाराणा कुम्भा इसी दुर्ग में अपने पुत्र उदय कर्ण द्वारा राज्य लिप्सा में मारे गए।
अपनी वेबसाइट पर हम डाटा संग्रह टूल्स, जैसे की कुकीज के माध्यम से आपकी जानकारी एकत्र करते हैं ताकि आपको बेहतर अनुभव प्रदान कर सकें, वेबसाइट के ट्रैफिक का विश्लेषण कर सकें, कॉन्टेंट व्यक्तिगत तरीके से पेश कर सकें और हमारे पार्टनर्स, जैसे की Google, और सोशल मीडिया साइट्स, जैसे की Facebook, के साथ लक्षित विज्ञापन पेश करने के लिए उपयोग कर सकें। साथ ही, अगर आप साइन-अप करते हैं, तो हम आपका ईमेल पता, फोन नंबर और अन्य विवरण पूरी तरह सुरक्षित तरीके से स्टोर करते हैं। आप कुकीज नीति पृष्ठ से अपनी कुकीज हटा सकते है और रजिस्टर्ड यूजर अपने प्रोफाइल पेज से अपना व्यक्तिगत डाटा हटा या एक्सपोर्ट कर सकते हैं। हमारी Cookies Policy, Privacy Policy और Terms & Conditions के बारे में पढ़ें और अपनी सहमति देने के लिए Agree पर क्लिक करें।