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दादी की 1 रु वाली इडली हुई भयंकर वायरल, अब आनंद महिंद्रा बनना चाहते हैं इनके बिजनेस पार्टनर

टीम फिरकी, नई दिल्ली Published by: Ayush Jha Updated Wed, 11 Sep 2019 03:06 PM IST
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प्रतिकात्मक तस्वीर
प्रतिकात्मक तस्वीर - फोटो : social media
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 बिजनेस और सोशल मीडिया की दुनिया में आनंद महिंद्रा एक मशहूर नाम है। वे अक्सर अपने ट्वीट्स के कारण सोशल मीडिया पर चर्चा में रहते है। इस बार भी उनका एक ट्वीट जबरदस्त तरीके से वायरल हो रहा है। दरअसल, उन्होंने तमिलनाडु की एक बुजुर्ग महिला की कहानी सोशल मीडिया पर शेयर की है। महिला का नाम कमलाथल है। वे चेन्नई के कोयंबटूर के पास रहती है।
82 वर्षिय कमलाथल अपनी इड़ली और सांभर के लिए काफी प्रसिद्ध हैं। उनकी खासीयत यह है कि आज भी उनकी इडली की कीमत केवल1 रुपये है। सुबह के 6 बजे से लोग उनके दरवाजे पर चूल्हे की बनी इडली सांभर का स्वाद लेने आ जाते हैं। वह इडली सांभर बनाने के लिए पारम्परिक तरीकों का इस्तेमाल करती हैं।
आनंद महिंद्रा ने उनके काम की तारीफ करते हुए कि वे दादी के बिजनेस में निवेश करना चाहते है। ये रहा  उनका ट्वीट..
 

अपने ट्वीट में आनंद महिंद्रा लिखते हैं,कुछ कहानियां बेहद सामान्य होती हैं, लेकिन अगर आप भी कमलाथल जैसा कुछ प्रभावशाली काम करते हैं, तो यकीनन वो दुनिया को हैरान करेगा। मुझे लगता है कि वह अब भी लकड़ी के चूल्हे का इस्तेमाल करती हैं। अगर कोई उन्हें जानता है, तो मुझे उन्हें एक एलपीजी गैस चूल्हा देना चाहूंगा और उनके बिजनेस में निवेश करने में मुझे खुशी होगी।

 
मीडिया में आई खबरों की मानें तो कमलाथल ने करीब 30 साल पहले इडली बेचनी शुरू की थी। वे यह काम मुनाफे के लिए नहीं करती , बल्कि लोगों का पेट भरने के लिए करती हैं। उनकी एक खासियत और है कि वह रोजना 1000 इडली बनाती हैं और वह यह सारा काम अकेले ही करती हैं। 
वो अपने हाथ से बनाई गई हर इडली को इसलिए एक रुपये में बेचती हैं, ताकि दिहाड़ी मजदूर और उनका परिवार उसे खरीद सके। जबकि आस-पास के गांव में एक इडली 6 रुपये की और डोसा 20 रुपये का मिलता है। 50 पैसे में खिलाती थीं एक इडलीदादी के हाथ की इडली खाने के लिए लोग 2 किलोमीटर दूर से भी आते हैं। शुरुआत में दादी एक इडली 50 पैसे में देती थीं।
कमलाथल पिछले 30 बरस से अपनी यह दुकान चला रही है। उनका कहना है कि लोगों ने महंगाई को देखते हुए कीमत बढ़़ाने के लिए कहा लेकिन उन्होंने मना कर दिया क्योंकि ग्राहकों में अधिकांश दिहाड़ी मजदूर और स्कूली बच्चे हैं।
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