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देखिए 2016 में पहलाज निहलानी ने भारतीय संस्कृति को बचाने के लिए क्या काम किए हैं

Apoorva Pandey/ firkee.in Updated Tue, 13 Dec 2016 02:31 PM IST
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कालजयी निर्णय
कालजयी निर्णय - फोटो : google
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साल 2016 बीतने वाला है और हमें इस समय उन सभी लोगों को याद करना चाहिए जिन्होंने राष्ट्र निर्माण में बहुत बड़ा योगदान दिया है। ऐसे लोगों की एक लंबी फ़ेहरिस्त है जिन्होंने इस साल ऐसे महान काम किये हैं कि आप उनकी तारीफ़ करते नहीं थकेंगे।

इस कड़ी में हम आज बात करेंगे CBFC यानी सेंट्रल बोर्ड ऑफ़ फ़िल्म सर्टिफिकेशन की जिसने अपने कालजयी निर्णयों से भारत की संस्कृति को बचाने और संवारने में मदद की है। तो आइये नज़र डालते हैं उनके द्वारा लिए गए कुछ महत्त्वपूर्ण कदमों पर...

फ़िल्म उड़ता पंजाब के बारे में आप जानते हैं और उससे जुड़ी तमाम कंट्रोवर्सीज़ के बारे में भी आपको पता है। पंजाब के हाल जानने हों तो एक बार गूगल कर लीजिएगा। वहां पर ड्रग्स की समस्या को लेकर ये फ़िल्म बनाई गई थी। लेकिन सेंसर बोर्ड ने कहा इससे पंजाब की छवि धूमिल होने का ख़तरा है तो उन्होंने अपनी कैंची चलाई और इस उड़ती हुई फ़िल्म के पर कतर दिए।

बोर्ड ने कहा इस फ़िल्म में पंजाब का नाम तक नहीं आना चाहिए। खैर सच से भागने का ये अच्छा तरीका है। लोग चाहे बर्बाद हुए जा रहे हों लेकिन पिक्चर में कुछ ऐसा नहीं दिखाना चाहिए।
 

फ़िल्म डेडपूल को A सर्टिफिकेट दिया गया इसके बावजूद इसमें से वेजाइना शब्द को हटा दिया गया। देखिए लोगों को गलती से भी पता नहीं चलना चाहिए कि इस संसार में वेजाइना जैसी कोई चीज़ भी होती है। यही फ़िल्में इस देश की बर्बादी का कारण हैं वरना तो भारतवासी बहुत सीधे-सादे हैं।
 

इस फ़िल्म का एक डायेलॉग था, "उम्र में बड़ी है एक्सपीरियंस भी कमाल का है"। सुनने में अश्लील लग रहा है न? अश्लीलता टपक रही है। आपको नहीं लग रहा? संसार बोर्ड को लगा। इसलिए इसे डिलीट कर दिया गया। इसके अलावा फ़िल्म से अनुष्का के किसिंग सीन्स को भी काट कर आधा किया गया।

और लोग इस कदम से इतने प्रभावित हुए कि भारत वासियों ने निजी ज़िन्दगी में भी किस करना बंद कर दिया है. ये साड़ी गन्दी बातें होती हैं, बचपन में नहीं सीखा क्या?
 

मां की गाली से तो आप सब लोग वाक़िफ़ होंगे। हमने पहली बार स्कूल में सुनी थी. आपने कब सुनी याद करिएगा। जिस देश में गुस्सा आते ही लोग मां-बहन की गाली बक देते हों वहां फ़िल्म बैड मॉम्स में नारी की इज्ज़त को बचाते हुए एक महान काम किया गया।

मां की गाली के अंग्रेज़ी वर्ज़न मदरफ़... में से मदर शब्द को म्यूट कर दिया गया बाकी सब चलता है। बस मां-बाप पे मत जाना भेन#$@%।
 

नए जोकर वाली फ़िल्म थी न सुसाइड स्क्वाड, उसमें से 'ऐस' शब्द को हटा दिया गया। हर जगह से। क्योंकि वो हमारे शरीर का अंग नहीं है।

 
'द ग्रेट ग्रैंड मस्ती' फ़िल्म। अब जैसी भी थी. इसमें से शब्द 'घंटा' को हटा दिया गया। बताइए ये शब्द तो हम में से बहुतों का तकियाकलाम है। इसे हटा दिया। फ़िल्म को A सर्टिफिकेट देने के बावजूद इसके 7 मिनट काट दिए गए।

(वैसे ऐसी बे सिर-पैर की फ़िल्मों को पूरा ही काट दिया जाए तो भी हमें बुरा नहीं लगेगा)
 

मिडिल फिंगर दिखाते जितने भी सीन थे इस फ़िल्म में सबको हटा दिया गया. इसके बाद इसे A सर्टिफिकेट दे दिया गया।

 
इस फ़िल्म में भी एक डायेलोग को बदल दिया गया। "ये बड़ा शामदेव है" की जगह "ये बड़ा टाइगर श्रॉफ है"। CBFC के हिसाब से योग गुरु का मज़ाक उडाना गलत बात है लेकिन आप किसी एक्टर का मज़ाक उड़ा सकते हैं।
 

इस फ़िल्म को A सर्टिफिकेट दिया गया और तीन मिनट काट लिए गए।

 
ये फिल भी बहुत महान फ़िल्मों में गिनी जाती है। इस फ़िल्म में शरीर के एक पार्ट को उसका असली नाम हटाकर 'इनसाइक्लोपीडिया' नाम दिया गया था। आखिर ज्ञान बढ़ाना भी ज़रूरी है।
 

इस फ़िल्म में नट्स शब्द को म्यूट कर दिया गया। लेकिन क्यों?

 
इस फ़िल्म में 'बास्टर्ड' को 'रास्कल' में बदल दिया गया। और 'बिस्तर में' को 'घर में' कर दिया गया क्योंकि बिस्तर में गंदे काम होते हैं और घर में कीर्तन।

 
'स्क्रियूड अप' अच्छा शब्द नहीं है, इसे फ़िल्म से हटाकर एडल्ट्स को देखने दिया गया।
 
कुलमिलाकर बात ये है कि भारत में एक एडल्ट को भी कान और आंख पर हाथ रखकर फ़िल्म देखनी होती है। उनको बस पोर्न वेबसाइट देखने भर की आज़ादी है।
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