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अगर आपको किसी मल्टी नेशनल कंपनी के चेयरमैन से मिलने का मौका मिले तो आप उनसे कैसे सवाल पूछेंगे? ज़ाहिर सी बात है आप उनकी कामयाबी, काम करने के ढंग, सफल होने के मंत्र आदि पूछेंगे। लेकिन जब बेंगलुरु में हो रहे अर्थिअन अवॉर्ड्स में मौजूद कुछ बच्चों को विप्रो के चेयरमैन अज़ीम प्रेमजी से मिलने का मौका मिला तो उन्होंने उनसे पूछा कि क्या आप बचपन में शैतान बच्चे थे?
प्रेमजी ने इन सभी सवालों का बहुत धैर्य से जवाब दिया और स्टूडेंट्स की सारी शंकाओं का जवाब दिया।
एक छात्र ने प्रेमजी से पूछा कि पहले हमारे गांव में बहुत चीलें आती थीं लेकिन अब नहीं आतीं, उन्हें वापस कैसे बुलाया जाए? इस पर प्रेमजी ने कहा कि आपको उनके लिए दाने डालने चाहिए और पेड़ लगाने चाहिए। चीलों को ज़मीन पर बैठना पसंद नहीं है।
कितने त्याग
ये पूछे जाने पर कि आपने यहां तक पहुंचने के लिए कितने त्याग किए हैं प्रेमजी ने कहा कि मैंने बहुत मेहनत की है और इस वजह से मैं अपने परिवार पर ध्यान नहीं दे पाया।
एक छात्र ने पूछा कि आपको इस कंपनी को खोले जाने के लिए किसने प्रेरित किया?
जवाब मिला कि विप्रो की शुरुआत मेरे पिता ने की थी। लेकिन मैंने इसको आगे बढ़ाने की हर संभव कोशिश की है। मैं बस इस कंपनी और इसके काम को पहले से भी ज़्यादा बेहतर बनाना चाहता था और इसी ने मुझे प्रेरित किया। अब हम पहले से कहीं ज़्यादा तेज़ी से आगे बढ़ रहे हैं।
सफलता का मंत्र
जब प्रेमजी से उनकी सफलता का मंत्र पूछा गया तो उन्होंने कहा कि कड़ी मेहनत और किस्मत। सफलता इन्हीं दो चीज़ों पर निर्भर होती है।
प्रेमजी ने कहा कि किस्मत अपने आप आपके पास चलकर आती है आप उसे ढूंढ नहीं सकते।
कॉलेज क्यों छोड़ा?
एक बच्चे ने सवाल किया कि आपने कॉलेज बीच में ही छोड़ दिया था, क्या इससे आपकी ज़िंदगी और मकसद पर असर नहीं पड़ा?
प्रेमजी ने कहा कि मैंने कॉलेज इस वजह से छोड़ा था क्योंकि मेरे पिता की मृत्यु बहुत जल्दी हो गई थी। मुझे ये पूरा कार्य भार संभालना था। लेकिन फिर कई सालों बाद मैंने स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिग्री हासिल कर ली।
एक स्टूडेंट ने कहा कि सफल होने से अधिक सफलता को बनाए रखना मुश्किल है। तो आप सफल रहने में कैसे कामयाब होते हैं।
मैं आपके साथ 100% सहमत हूं। जैसे ही आप सफलता को छूते हैं, अपने कार्यक्षेत्र से आपकी उम्मीदें बढ़ जाती हैं। इससे भी ज़्यादा आपकी खुद से आशाएं बढ़ जाती हैं। मेरे हिसाब से सफलता को बनाए रखने का सिर्फ़ एक तरीका है वो यह कि आपको खुद से निरंतर प्रतियोगिता करनी होगी।
बचपन में शैतान थे?
इस सवाल पर प्रेमजी बोले कि जब मैं छोटा बच्चा था तो बहुत शैतान था। उस समय स्टूडेंट्स की बहुत पिटाई की जाती थी। हमें क्लास के बाहर अपने घुटनों के बल खड़े होना पड़ता था। ये बहुत अच्छा है कि स्कूलों में अब ये सब कम हो गया है। लेकिन मैंने क्लास के बाहर खड़े होकर काफ़ी समय बिताया है।