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बचपन में हम सभी ने सांप-सीढ़ी ज़रूर खेला है। निजी तौर पर ये हमें लूडो से कहीं ज़्यादा आसान खेल लगता था क्योंकि इसमें बिल्कुल भी दिमाग नहीं लगाना पड़ता है। बस सब कुछ आपके पासे को पटकने के हुनर और किस्मत पर निर्भर होता है। लेकिन इस खेल को भी छोटे बच्चे दिल से लगा लेते हैं और हारने पर बहुत रोते हैं। लड़ाई दंगा तक हो जाता है इस खेल में।
लेकिन क्या आपको पता था कि इस खेल का अविष्कार भारत में हुआ था? साथ ही आज ये जैसा दिखता है, सालों पहले ये उससे बिल्कुल अलग था।
प्राचीन भारत में इस खेल को मोक्षपट या मोक्ष पटामु के नाम से जाना जाता था। इसे दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व से खेला जाता रहा है वहीं कुछ लोगों का मानना है कि स्वामी ज्ञानदेव ने इस खेल को 13वीं शताब्दी में बनाया था। इस खेल को बनाने का मुख्य उद्देश्य बच्चों को कर्म और काम की शिक्षा देना था।
सीढ़ियां अच्छे कर्म को दर्शाती थीं वहीं सांप हमारे बुरे कर्म को दर्शाते थे। हमारे अच्छे कर्म हमें 100 के करीब लेकर जाते हैं जिसका अर्थ था मोक्ष। वहीं बुरे कर्म हमें कीड़े-मकौड़े के रूप में दुबारा जन्म लेने पर मजबूर करते हैं। पुराने खेल में सांपों की संख्या सीढ़ियों से अधिक होती थी। इससे ये दर्शाया गया था कि अच्छाई का रास्ता बुरे रास्ते से काफ़ी कठिन है।
ये खेल उन्नीसवीं शताब्दी में इंग्लैंड पहुंच गया। इसे शायद इंग्लैंड के शासक अपने साथ ले गए थे। 1943 में ये खेल यूएसए पहुंचा और वहां इसे मिल्टन ब्रेडले ने एक नया रूप दिया। अब ये खेल थोड़ा आसान हो गया है क्योंकि इसमें सांप और सीढ़ियों की संख्या सामान है। अब इसमें किसी तरह का कोई संदेश नहीं दिया जाता है।