25 जून 1983 का दिन था। लॉर्ड्स के मैदान में इंडिया ने इतिहास रचा था। उसी की 33वीं सालगिरह पर हमें कुछ रोचक किस्से लिख भेजे हैं 'चन्द्रशेखर आज़ाद जी' ने। रेडियो और क्रिकेट पर कुछ-कुछ लिखते रहते हैं तो कुछ हमें भी भेज देते हैं। आज उसी कड़ी में 1983 के सेमी फाइनल्स से लेकर फाइनल तक इंडिया के सफ़र के कुछ रोचक और यादगार हिस्से। पढ़िए और आपके पास भी है कुछ मस्त-सा तो लिख भेजिए अपनी के तस्वीर के साथ shivendu.shekhar@auw.co.in इस पते पर
तारीख ठीक से याद नहीं आ रहा था। लेकिन मौसम से लग रहा था कि यही दिन थे। फिर जब चेक किया तो पता चला 25 जून 1983। आज से ठीक 33 साल पहले जब कपिलदेव ने दोनों हाथों से वर्ल्ड को अपने सिर पर उठा लिया था। हां, अब न वर्ल्ड कप हो गया है क्रिकेट का। उस समय तो इंडिया जैसी पिद्दी टीम के लिये वह कप ही उसकी दुनिया उसकी पहचान बन गयी थी। जिस टीम से किसी को कोई खास उम्मीद नहीं थी वह कुछ ही सप्ताह बाद वर्ल्ड चैंपियन थी। यह जीत कोई तुक्का नहीं था। क्योंकि दो बार की चैंपियन वेस्ट इंडीज़ को दो दफे हराना कोई खेल नहीं था। लेकिन अभी तो सेमीफाइनल बचा हुआ था। वो भी इंग्लैंड के साथ।सेमी फाइनल में तीन विकेट गिरने के बाद जब इंग्लैंड के माइक गैटिंग और एलेन लेम्ब ने क्रीज पर पांव जमा दिए थे तो भारतीयों के पेशानी पे बल पड़ गया था। तभी यशपाल शर्मा के सटीक थ्रो ने गेटिन्ग का काम तमाम कर दिया। लेकिन धाकड़ ऑल राऊंडर इयान बॉथम का खतरा अभी बाकी था। कपिल ने गेंद बिहारी कीर्ति आज़ाद को थमाई और कीर्ति ने अपना काम बखूबी अंजाम देते हुए बॉथम को क्लीन बोल्ड कर दिया।
https://youtu.be/fj5hTeyQL74अब इंग्लैंड बैकफुट पर थी और जैसे-तैसे 213 तक पहुंच पाई। इंग्लैंड की मज़बूत गेंदबाजी को देखते हुए भारत की राह आसान नहीं थी। गावस्कर और श्रीकांत ने सधी हुई शुरुआत की। मोहिंदर अमरनाथ जो गेंदबाजी में उम्दा प्रदर्शन कर चुके थे। बल्लेबाजी में भी पीछे नहीं रहे और मैन ऑफ द मैच का पुरस्कार भी झटक लिया। लेकिन असली हीरो संदीप पाटिल थे जिन्होंने चौकों की झड़ी लगाते हुए इंग्लैंड को अपनी उस पारी की याद दिला दी जब उन्होंने नामी बॉल्लर बॉब बिलिस के ओवर की छहों गेंदों को सीमा रेखा के बाहर पहुंचा दिया था।
https://www.youtube.com/watch?v=ainArm3lHY0 अब भारत फाइनल में था और खिताब से सिर्फ़ एक क़दम दूर। सामने थी डिफेन्डिन्ग चैंपियन वेस्ट इंडीज़ की टीम। जिसमें बहुत बड़े-बड़े नाम थे। डेस्मंड हेन्स, लेर्री गोम्स, कप्तान लॉयड जैसे बड़े-बड़े धाकड़ बल्लेबाज। जेफ्फ डुजोन जैसा विकेटकीपर और माइकेल होल्डिंग, जोएल गार्नर जैसे तूफ़ानी गेंदबाज। और एक खिलाड़ी था जिसकी चर्चा अलग से नहीं करेंगे तो उस खिलाड़ी की नहीं बल्कि क्रिकेट की तौहीन हो जाएगी। वो खिलाड़ी था सर्वकालीन महान बल्लेबाज विवियन रिचर्ड्स। जब तक क्रीज पर रहेंगे विरोधी टीम चैन नहीं ले सकती। उसमें भी अगर भारत जैसी टीम हो जिसने सिर्फ़ 184 रन का लक्ष्य दिया हो और सामने रिचर्ड्स जैसा बल्लेबाज। लेकिन यही तो क्रिकेट है। आज भारत का दिन था और दिन था कप्तान कपिलदेव का। रिचर्ड्स को रोकने वाला कौन था? कोई नहीं, पर भारत को भी आज कौन रोक सकता था।लेकिन कपिलदेव ने इसको धर लिया। शेर पिंजरे मे बंद हो चुका था। बाकी को ढेर होते देर न लगी। मोहिंदर अमरनाथ की वो गेंदबाजी, 7 ओवर मात्र 12 रन और 3 विकेट। साथ में मदनलाल 12 ओवर में 31 रन लेकिन 3 विकेट। वेस्ट इंडीज के खिलाड़ी कुछ समझ नहीं पा रहे थे आखिर चल क्या रहा है। कोई पैंतरा काम नहीं कर रहा था। लेकिन इंडिया को अपनी मंजिल पास दिख रही थी।
दुनिया कपिलदेव की मुठ्ठी में थी जिसे उसने दोनों हाथों से सर पे उठा लिया था। हो भी क्यों नहीं मैदान भी लॉर्ड्स का था जिसे क्रिकेट का मक्का कहते हैं। क्रिकेट की किताब में एक और सुनहरा पन्ना जुड़ चुका था। हिन्दुस्तान इतिहास रच चुका था। और पब्लिक मैदान में कूद गई थी।
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ज़िम्बाब्वे के साथ हुए उस मैच की कमेन्ट्री ने देश में हाहाकार मचा दिया था