वो फिल्म डायरेक्टर जिसने अभिषेक बच्चन और करीना कपूर को बॉलीवुड में लॉन्च किया। वो डायरेक्टर जो अगर फिल्में बनाता है तो पूरा देश एक हो जाता है। वो डायरेक्टर जो फ़िल्मी परदे पर पाकिस्तान के पसीने छुड़ा देता है। वो डायरेक्टर जिसकी फिल्में पाकिस्तान में चालाने से मना कर दी जाती हैं। मैं बात कर रहा हूं, जेपी दत्ता साहब की। पूरा नाम ज्योति प्रकाश दत्ता।
एक जमाना था, मनोज कुमार का। उनकी फिल्मों की वजह से उन्हें भारत कुमार के नाम से बुलाया जाता था। आज के दौर में जेपी दत्ता वही डायरेक्टर हैं, जिनकी फिल्में हिंदुस्तान को एक धागे में जोड़ने के लिए बनती हैं। मशहूर लेखक-निर्देशक ओपी दत्ता के बेटे।
1997 में एक फिल्म आई थी। नाम था बॉर्डर। जब पर्दे पर उतरी तो पूरा देश पागल हो गया था। पहली बार लोगों को कोई ऐसी फिल्म देखने को मिली थी, जिसने वॉर को, युद्ध को उस स्तर पर परदे पर उतार दिया था मानों सच मुच का युद्ध चल रहा हो। जिसने सनी देओल के स्टारडम की नई परिभाषा लिख दी।
यह फिल्म बनी थी बैटल ऑफ़ लोंगेवाला को लेकर। 1971 के हिंदुस्तान-पाकिस्तान वॉर का सबसे शुरूआती चरण। जब राजस्थान के रेगिस्तानी इलाके से सटी सीमा पर पाकिस्तानी फ़ौज ने हमला कर दिया था।
यह फिल्म उस साल की सबसे बेहतरीन फिल्मों में से थी। जिसे परदे पर तो सफलता मिली ही। साथ ही उस साल के नेशनल अवॉर्ड फॉर बेस्ट फीचर फिल्म ऑन नेशनल इंटीग्रेशन से भी नवाज़ा गया।
फिल्म ऐसी की जब 2012 में अपने कॉलेज हॉस्टल के एक कमरे में हम अपने दोस्तों के साथ इस फिल्म को देख रहे थे, तब अचानक ही पूरा का पूरा कमरा और पूरा का पूरा फ्लोर अपने आप भारत माता की जय के नारे से गूंज उठा था।
और ऐसी एक नहीं। कई फिल्में हैं। जिसने जेपी दत्ता के नाम और देशभक्ति को एक ही साथ ला खड़ा किया। ऐसी ही एक फिल्म आई 2003 में 'एलओसी कारगिल'। 1999 के कारगिल वॉर पर बनी थी। जिसे ऑपरेशन विजय भी काहा जाता है।
इस फिल्म की एक ख़ास बात यह थी कि इस फिल्म में पत्रों के नाम। मतलब फिल्म के कलाकार जो किरदार निभा रहे थे वो सबके सब असली नाम थे। चाहे वो कैप्टेन अमित कालिया हों या कैप्टन विक्रम बत्रा या फिर अनुज नय्यर। चाहे लोकेशन ही क्यों ना हो। जेपी ने कहीं भी जरा सी कोताही नहीं की।इनकी फिल्में रियलिटी के इतने करीब से गुजरती हैं कि एक वक़्त के बाद आप ये भूल जाते हैं कि आप फिल्म देख रहे थे या फिर सच में इंडिया-पाकिस्तान का युद्ध चल रहा था। जिसमें इंडिया ने पाकिस्तान की खटिया खड़ी कर दी थी।
इनकी फिल्मों का प्रभाव हो या जो भी वजह हो, इंडियन डिफेंस फोर्सेज से भी इन्हें खूब सपोर्ट मिलता है। जिससे इन्हें फिल्में बनाने में कोई दिक्कत नहीं आती।आखिर मदद मिलनी भी तो लाज़मी है। कोई इंसान जिसने अपने करियर को जवानों के नाम कर रखा हो। उनके किस्से-कहानियों को दुनिया तक पहुंचाता हो। तो मदद तो मिलनी है। हम भी दत्ता साहब के शुक्रगुज़ार हैं जिनके बदौलत हमारी 15 अगस्त और 26 जनवरी की शामें गुलज़ार होती हैं।