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होली के त्योहार पर नवाबों के समय से रामपुर में गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल कायम है। रियासत के अंतिम शासक नवाब रजा अली खां गीत और संगीत के शौकीन थे। उन्होंने भी होली पर जो गीत लिखे उन्हें आज भी गुनगुनाया जाता है। उनके गीतों में ब्रज की भाषा में घुला प्रेम का रस भी टपकता नजर आता है।
नवाब रामपुर रजा अली खां ने संगीत सागर के अलग-अलग खंडों में अपनी लेखन शैली से परिचय कराया है। रजा लाइब्रेरी में मौजूद संगीत सागर के खंडों में उन्होंने तमाम गीतों को लिखा है। नवाब ने जब यह गीत लिखे तब रामपुर रियासत में गीत और संगीत की महफिल सजा करती थी। वैसे तो उन्होंने बसंत और सावन के गीतों को भी सुर लय और ताल के साथ राग संग तैयार किया है, उनकी संगीत कंपोजिंग को भी उस दौर में उन्होंने गीत के साथ ही तैयार किया था।
नवाब रजा अली खां ने राग भोपाली, राग असावरी, ताल तिताला, राज तिलंग, राग परजा, राग तिलक खमोद. राग झंझोरी, राग देस, राग खम्मन, राग भैरवी, राग वृंदावनी, राग सारंग, राग एमन कल्यान, राग बागेश्वरी आदि का उपयोग लेखन शैली में किया है।
यह होली गीत रहे हैं नवाब के हस्तलिखित
-ब्रजबासी कैसी लीला रचाई, फागुन ऋतु मधुवन पै छाई।
रंग गगर भर लाई हर ब्रज लुगाई, मन मोहन टिक टोकन आई।
बंशीधुन सुन सुध बिसराई, ब्रजवास में कैसी लीला रचाई।
-आई-आई रंग की बहार खेलो-खेलो साजन नार
हाथन पिचकारी लो संभाल
रंग नदी बहे, प्रेम पवन से उमड़े अबीर गुलाल
फिरकत बांटे जड़ाऊ जोड़े, बने से साजे सुखपाल
रजा पिया खेलें रंग पुत्र का, परजा कहे जिये लाल।
आई मनोहर बहार खेलो-खेलो साजन नार...
गंगा-जमुनी पिचकारी गोरी ताने मन की उमंग
एक न माने लपक झपक करें तकरार
रामपुर राज की कुंज गली में रजा पिया मचाएं धूम,
बधाई गाए सारा संसार
मतवारे श्याम मोसे करो न ढिठाई
हटो बोलें न तोसें गागर मोरी छपाई
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आवौ श्याम लीला रचाएं सत्य संग सै
विष खाए सौतन तुम्हें देख इस ढंग से
शीश पै मुकुट शोभे माथे पै चंदन
रजा पिया खायें खम्माच नयो रंग सै
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अब न खेलूं तोसे होरी सइयां मोरे
चुहल करत मोरी बइयां मरोरी
रजा पिया व्यर्थ करो न ढिठाई
तुम ही खेलोगे मोसे होरी, सइयां मोरे
मनदीप कौर कार्यक्रम अधिशासी आकाशवाणी रामपुर ने बताया नवाब रजा अली खां ने खुद होली गीतों को ऐसे शब्दों में पिरोया है उन्होंने अपनी संगीत सागर किताबों के खंडों में एक तरफ गीत लिखा है तो दूसरी ओर राग और ताल भी समझाया है। उस दौर में उनका यह लेखन मौजूदा वक्त के लिए एक बड़ी गीत-संगीत शिक्षा से कम नहीं है।
नफीस सिद्दीकी इतिहासकार, नवाब दरबार के संगीत और नवाबी रस्मों के लेखक कहते हैं नवाब रजा अली खां ने होली के रंगों से चार बैत की चुनरिया से रंग लिया। ढोलक और झांझ पर गाई जाने वाली होली केवल तंबल की संगत पर गाई जाने लगी। नवाब रजा अली ने चार बैत को तबले पर तालबद्ध और रागबद्ध करके नया काम किया।