विस्तार
पाकिस्तान न जाने कितनी बार ही युद्ध के क्षैत्र में भारत से मात खा चुका है, लेकिन वो अपनी नापाक हरकतों से बाज नहीं आता। 1950 से ना जाने कितनी ही बार पाकिस्तान ने भारत से युद्ध किया है, लेकिन हर बार इंडियन आर्मी हमेशा उसे मुहं तोड़ जवाब देने को तैयार रहती है। पाकिस्तान चाहे कितनी भी चालाकी कर ले भारत उसे उसकी औकात याद दिला ही देता है, ऐसा ही कुछ हुआ था 1971 की जंग में। दरअसल 1971 की जंग में पाकिस्तान जानता था कि युद्ध की तस्वीर बदलने वाला फैक्टर है भारत का आईएनएस विक्रांत। लिहाजा, उसे डुबाने के लिए पाकिस्तान ने भेजा था अपना सबसे बड़ा हथियार, पाकिस्तान ने आईएनएस विक्रांत को डुबोने के लिए अपनी नेवल सबमरीन ग़ाज़ी को भेजा था, जिसे यहीं 3 और 4 दिसंबर की मध्यरात्रि को डुबो दिया गया था।
दक्षिण एशिया की पहली पनडुब्बी, PNS ग़ाज़ी पाकिस्तान की वो इकलौती पनडुब्बी है जो बंगाल की खाड़ी तक पहुंचने के लिए 11000 समुद्री मील की दूरी तय करने की क्षमता रखती है। नवम्बर 14, 1971 को PNS गाजी, गोले बारूद और भोजन की पूरी व्यवस्था के साथ, चुपचाप कराची बंदरगाह से अरब महासागर की ओर निकली। जहाँ पनडुब्बी को जाहिरा तौर पर पूर्वी पाकिस्तान (आज का बांग्लादेश) स्थित चटगांव के लिए भेजा गया था, इस सबके पीछे असली मकसद था भारत के aircraft carrier, INS विक्रांत को टारगेट करनाl
आपको बता दें PNS ग़ाज़ी -71 के युद्ध में पाकिस्तान का सबसे छुपा हुआ शक्तिशाली अस्त्र था। उस समय भारत के पास एक भी पनडुब्बी नहीं थी। ऐसे में ग़ाज़ी को रोकना बड़ी चुनौती थी। उससे भी बड़ी चुनौती थी ग़ाज़ी का मनोवैज्ञानिक खौफ। ग़ाज़ी अपने मिशन में कामयाब हो जाती यानि विक्रांत उसके हमले की जद में आ जाता तो ये पाकिस्तान की बहुत बड़ी मनोवैज्ञानिक जीत होती। मुमकिन है कि असर जंग के नतीजे पर भी पड़ता, लेकिन ऐसा नहीं हुआ क्योंकि समंदर में चले-चूहे और बिल्ली के खेल में भारतीय नौसेना ने ग़ाज़ी को मात दे दी।
अमेरिका ने अपनी डायब्लो पनडुब्बी को 1965 की भारत-पाक जंग से कुछ ही समय पहले पाकिस्तान को पट्टे पर दिया था। पाकिस्तान ने इसका नाम गाजी रखा था। 65 की जंग में गाजी का इतना खौफ था कि भारतीय नौसेना ने कराची पर हमले का प्लान टाल दिया था। गाजी का ये खौफ 71 की जंग पर भी मंडरा रहा था।
पाकिस्तान की पनडुब्बी पीएनएस ग़ाज़ी-समंदर में अदृश्य दुश्मन की तरह अरब सागर पार करते हुए बंगाल की खाड़ी तक पहुंच गई थी। अगर ग़ाज़ी ने किसी भी तरह से भारत के सबसे बड़े जंगी जहाज INS विक्रांत को निशाना बना लिया होता तो जंग की शुरुआत में ही भारत दबाव में आ जाता, लेकिन भारतीय रणनीतिकारों ने इतनी चालाकी से समंदर में धोखे का जाल बिछाया कि ग़ाज़ी उसमें फंसकर तबाह हो गई।
पूर्वी पाकिस्तान के सैन्य प्रशासक जनरल नियाजी और उसकी फौज को मनोवैज्ञानिक सहारा मिलता रहे-इसलिए ये पैगाम देना जरूरी था कि पाकिस्तानी पनडुब्बी समंदर में भारत का पूरा चक्कर काटते हुए ढाका तक पहुंच सकती है। ये कमाल पाकिस्तान की अमेरिका से लीज पर ली गई पनडुब्बी ग़ाज़ी ही कर सकती थी, जो 75 दिन तक पानी के भीतर रह सकती थी।
20 हजार किलोमीटर लंबा सफर करने की क्षमता से लैस थी। इसीलिए 71 का युद्ध शुरू होने से ठीक पहले 14 नवंबर से 22 नवंबर के बीच गाजी को चुपचाप कराची से बंगाल की खाड़ी की तरफ रवाना कर दिया गया। लेकिन उसका असली मिशन था-विमान वाहक पोत विक्रांत को खोजकर तबाह करना।
भारतीय नौसेना को सिग्नल इंटरसेप्ट से पता चल चुका था कि ग़ाज़ी कराची से बंगाल की खाड़ी के बीच कहीं समंदर में ही है। ये खबर पूर्वी पाकिस्तान की समुद्री घेराबंदी के लिए विशाखापत्तनम के बंदरगाह से निकल चुके विक्रांत के लिए खतरे की घंटी थी। इसी मौके पर पूर्वी नेवल कमांड के वाइस एडमिरल एन कृष्णन ने बड़ा दांव खेला। उन्होंने पनडुब्बी रोधी क्षमता से लैस INS राजपूत को INS विक्रांत होने का नाटक करने को कहा। INS राजपूत से भारी वायरलेस मैसेज भेजे जाने लगे। मद्रास नेवल बेस को कहा गया कि उनकी तरफ बड़ा युद्धपोत आने वाला है।
एडमिरल एन कृष्णन जानते थे कि ये सारी कवायद पाकिस्तानी नौसेना और भारत में मौजूद पाकिस्तानी जासूसों से बच नहीं पाएगी। पाकिस्तान को जरूर ऐसा लगेगा कि विक्रांत जैसा कोई बड़ा युद्धपोत विशाखापत्तनम में है। हुआ भी यही। 26 नवंबर को पानी घात लगाए ग़ाज़ी को अपने कमांड सेंटर से सूचना मिली कि INS विक्रांत विशाखापत्तनम में ही है। लिहाजा ग़ाज़ी विक्रांत को डुबोने के इरादे से विशाखापत्तनम की तरफ बढ़ने लगी। जैसे ही भारतीय नौसेना को ग़ाज़ी के मद्रास पहुंचने की भनक लगी, वैसे ही INS विक्रांत को बचाने का मिशन भी शुरू हो गया।
मुश्किल ये भी थी कि जंग शुरू होने से कुछ ही दिन पहले विक्रांत के बॉयलर में दरार आ गई थी। इस वजह से उसकी रफ्तार भी 16 नॉट ही रह गई थी। इतनी कम रफ्तार में वो कभी भी किसी भी पनडुब्बी का शिकार बन सकता था। इसीलिए, ग़ाज़ी के साए से विक्रांत को दूर रखने के लिए उसे चुपचाप "X Ray" नाम के एक गुप्त ठिकाने की तरफ रवाना कर दिया गया। ये गुप्त ठिकाना मद्रास से 1000 मील दूर अंडमान-निकोबार में था। तब तक ग़ाज़ी को डुबोने की योजना पर अमल शुरू हो चुका था।
अपने कमांड से विक्रांत के विशाखापत्तनम के पास होने की खुफिया सूचना पाकर पाकिस्तानी पनडुब्बी ग़ाज़ी बेखौफ होकर वहां तक पहुंच गई थी। इसी मौके पर विशाखापत्तनम के समुद्र तट से कुछ ही दूर पर आईएनएस राजपूत के कैप्टन लेफ्टिनेंट कमांडर इंदर सिंह ने पानी पर बड़ी हलचल देखी। उन्होंने अनुमान लगाया कि इतनी हलचल किसी पनडुब्बी के पानी में गोता लगाने से ही हो सकती है।
लिहाजा उन्होंने अपने नौसैनिकों को समंदर में पनडुब्बी नष्ट करने वाले दो डेफ्थ चार्जर डालने का हुक्म दिया। पानी के भीतर पहुंच कर डेप्थ चार्जर ने अपना काम कर दिया। पानी के भीतर हुए धमाके ने गाजी को समंदर में ही जलसमाधि दे दी। नौसैनिक युद्ध में ग़ाज़ी को डुबोने की ये घटना 71 की जंग का एक सुनहरा इतिहास है। हालांकि पाकिस्तान दावा करता है कि ग़ाज़ी को INS राजपूत ने नहीं डुबोया था, बल्कि वो खुद ही डूब गई थी। खैर हार को बर्दास्त कर पाना इतना आसान नहीं..और वो भी जब हार इतनी बड़ी और शर्मनाक हो कि आप अपने ही हथियार से मारे जाओ...
credit:
1,
2,
3,
4,
5