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बिहार में इक दिन बहार आई
लालू-बाबू दुश्मन से बने थे भाई
सत्ता की मौज कट रही थी
गधों को पंजीरी बंट रही थी
अचानक बाबू को खयाल आया
भविष्य में कुर्सी का सवाल आया
लालू की क्यारी में थे कई फूल
जो चुभते थे बाबू को बनके शूल
दूर देश में बाबू का एक दोस्त होता
जिसके पास था एक 'पालतू तोता'
मालिक के दानों पर तोता था पलता
दुश्मनों के मुंह पर कालिख था मलता
बाबू ने बिछड़े दोस्त से हाथ मिलाया
लालू की क्यारी पर तोते को लगाया
तोते का कमाल काम आया
बाबू ने लालू से पीछा छुड़ाया
सूबे में न चाहते हुए भी 'फूल' खिल गया
बिहार को एक बार फिर 'बाबू' मिल गया