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हिंदुस्तान में खाना सिर्फ पेट भरने वाला आइटम नहीं है, यहां इससे मन भी भरा जाता है। छौंका लगाकर परोसी गई दाल हो या बढ़िया लवाबदार पनीर.... जायका हर चीज में पूरा मिलेगा। मूड ऑफ हो या हो खुशी का मौका… दोनों मौकों पर थाली सज जाया करती है। हमारे यहां खानों में भी देसी और विदेशी वाली कैटेगरी होती है। जिनमें मसालों का इस्तेमाल बिना कंजूसी के किया जाता है उन्हें हम देसी खाने की बिरादरी का मान लेते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कई ऐसे खाने हैं जिनको हम देसी मानते हैं और वो दरअसल विदेशी हैं।
इन्हें हम बचपन से देसी समझ कर खाते आ रहे हैं वो विदेशी... वैसे इनके विदेशी होने से कोई दिक्कत नहीं है, बशर्ते सोशल मीडिया पर कोई आपको देशद्रोही न कह दे, बहरहाल ये सब छोड़िए, आइए आपको बताते हैं कि वो कौन-कौन से आइटम हैं जिन्हे आप देसी समझकर चट करते आ रहे हैं।
ये जानकार आपको दुख हो सकता है कि जिस समोसे को हम राष्ट्रीय नाश्ते का प्रतीक समझते हैं, दरअसल वो हमारा है ही नहीं। ये पहली बार 10वीं सदी में बना था। इसमें पहले आलू नहीं मांस और मसाले भरे जाते थे। मध्य पूर्व के कुछ व्यापारी इंडिया आए तो अपने साथ खाने का ये आइटम ले आए। वो इसे संबोसैग के नाम से पुकारते थे। इतिहास में भी दर्ज है, अमीर खुसरो ने लिखा था कि समोसों को राजघरानों का प्यार मिला था।
न जाने हम सबने कितनी बार इसे दही में डुबो-डुबोकर रस ले लेकर खाया है, लेकिन इतिहासों में दर्ज जानकारी के मुताबिक इसका जन्म भी मध्य पूर्व में हुआ था। इसे अरबी भाषा में जबाया और फारसी भाषा में जलीबिया कहा जाता था। हिंदुस्तान ने इसे न सिर्फ अपनाया बल्कि बेशुमार प्यार दिया। जलेबी पर सबसे पहला हक तुर्की और ग्रीस का है, इसके बाद इस पर हमारा हक है। कहते हैं मुस्लिम व्यापारी इसे भारत लेकर आए थे।
जिस मिठाई को हमने गर्म और ठंडी… दोनों में बराबर प्यार दिया, अफसोस की वो मिठाई भी भारत की नहीं है। ये भूमध्य और फारस में पहली बार बनाई गई थी। वहां इसे लुकमत अल कबीडी कहा जाता था। उस वक्त आटे की बनी गेंदों को शहद की चटनी में भिगोया जाता था और चीनी छिड़क कर पेश किया जाता था। गुलाब जामुन जब भारत पहुंचा तो हमने इसे अपने हिसाब से बदल दिया। इसके बारे में भी कहते हैं कि मुगल शासक शाहजहां का फेवरेट डेजर्ट हुआ करता था।
यहां तो चाय के नाम पर चुनाव लड़े जाते हैं लेकिन सच्चाई ये है कि हम भारतीयों का सबसे पसंदीदा पेय, दरअसल चाइना का है। भारत में इसकी लोकप्रियता के पीछे अलग कहानी है। चीन के लोग इसे औषधीय पेय के तौर पर इस्तेमाल किया करते थे। लेकिन वो इस पर ज्यादा ध्यान नहीं देते थे। ब्रिटिशर्स चाहते थे कि चाय पर चीन का एकाधिकार खत्म हो लिहाजा उन्होंने भारत के लोगों को चाय उगाने की तकनीक सिखाई, तब से चाय हमारे यहां ही फल फूल रही है।
राजमा को तो हम पंजाबी मान लेते थे। यहां तक कि फाइव स्टार होटल्स में भी मेन्यू के पंजाबी वाले हिस्से में राजमा की वैरायटी देखने को मिल जाती है। वास्तव में राजमा को सबसे पहले मध्य मेक्सिको और ग्वाटेमाला में उगाया गया था। वो बीन्स को उगाते थे, फिर उसे उबाल कर… मसालों के साथ मिलाकर खाया करते थे।
अब इतना सब कुछ सुन चुके हैं तो शायद आपको इडली का दुख न हो, इडली भी इंडोनेशिया से भारत पहुंची है, लेकिन कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इडली अरब निवासियों का पसंदीदा खाना है।
तो इस तरह से… एक एक करते हुए कई सारे देसी आइटम, विदेशी हो चुके हैं। लेकिन हम तो विशाल हृदय वाले लोग हैं। हमने विदेशी खानों को भी अपने अंदाज पकाया और तड़का लगाया है। अब कोई कितना भी कहे… ये तो हमारे अपने हैं… खाएंगे हम, चाहे कोई कितना भी विदेशी कहे।