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राजनीति दो जगहों पर समानांतर रूप से चल रही है। एक वास्तिविकता के धरातल पर और दूसरी सोशल मीडिया की आभासी दुनिया में। संसद में पक्ष और विपक्ष के बीच तनातनी का असर आपको सोशल मीडिया पर जबरदस्त तरीके से देखने को मिलेगा। दोनों तरफ की सेनाएं मौके पर मुस्तैदी से एक्टिव हो जाती हैं। सही और गलत की तलवारें लिए लोग स्टेटस के मैदान में उतर आते हैं और 3-3 पैराग्राफ के झूठ लिखकर वायरल के समुद्र में झोंक देते हैं।
झूठ लिखने वाले भी कमाल के स्पेशलिस्ट होते हैं। वह अपनी बात को इतनी तथ्यात्मक तरीके से लिखते हैं कि पढ़ने वाले की सोचने और समझने की क्षमता छुट्टी पर चली जाती है। मैसेज देखा और फॉरवर्ड के बटन पर अपने आप उंगली पहुंच गई।
पिछले दिनों सोशल मीडिया पर एक बार फिर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कपड़ों को लेकर चर्चा शुरू हो गई। व्हाट्सएप पर दनादन शेयर किया जाने लगा कि प्रधानमंत्री मोदी सरकारी के लिए खजाने से हर साल 10-12 लाख रुपये खर्च किए जाते हैं। सवाल की सच्चाई जानने के लिए आरटीआई लगाई गई। जो जवाब आया उससे दूध का दूध और पानी का पानी हो गया।
आरटीआई एक्टिविस्ट रोहित सभरवाल ने प्रधानमंत्री कार्यालय से जानकारी मांगी कि अटल बिहारी वाजपेयी, मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी के कपड़ों पर हर साल सरकार कितना खर्च करती है। जवाब मिला कि प्रधानमंत्री की पोशाक के लिए सरकारी खजाने से एक भी पैसा खर्च नहीं किया जाता है। यह खर्च प्रधानमंत्री खुद ही वहन करते हैं।
यह पहला मौका नहीं है जब पीएम मोदी के कपड़ों को लेकर अफवाह फैलाई जा रही हो। इससे पहले भी इस तरह के वायरल मैसेज व्हाट्सएप और दूसरे मीडियम पर शेयर किये जा चुके हैं। यहां वायरल करने वाले मैजेस पढ़ने वालों के आईक्यू पर सवाल उठाते हैं। लोग जांच परख के ही सारी की सारी बात को फॉरवर्ड करें