लोगों में अक्सर ही इस बात को लेकर जंग छिड़ी रहती है कि सुबह-सुबह फ्रेश होने (जो कि असल में पॉटी करने का कोड वर्ड है) का सबसे सही तरीका क्या है, यानी हमें किस आसन में बैठकर ये काम करना चाहिए। अब इसके दो ही तरीके हैं या तो इंडियन टॉयलेट का इस्तेमाल किया जाए या फिर वेस्टर्न। अब आप कहेंगे कि इसमें इतनी बड़ी बात क्या है। लेकिन अगर इसमें बड़ी बात न होती तो भला पीकू फिल्म की थीम 'मोशन से ही इमोशन' क्यों होती?
इस फिल्म में भी जब अमिताभ बच्चन हर तरह का जतन करके थक जाते हैं तो इरफान खान उन्हें इंडियन टॉयलेट के फायदे बताते हैं। वो इसे बड़ी तन्मयता से उन्हें एक्सप्लेन करते हैं और वो भी ध्यान से सुनकर इस बेहतर तरीके पर अमल करते हैं। इस थीम को लोगों ने इतना पसंद किया कि एक बड़े अवॉर्ड फंक्शन में शाहरुख़ खान तक खुद को इंडियन टॉयलेट के फायदे बताने से नहीं रोक पाए।
अब पहले तो आप वो देखिए जो शाहरुख खान ने बताया...
शाहरुख़ ने बेहद रोमांटिक अंदाज में अपनी सेनोरिटा को समझाया कि पॉटी हमेशा इंडियन स्टाइल में ही करनी चाहिए।
पीकू ने भी हमें समझाया- 'मोशन से ही इमोशन'
पीकू फिल्म में कांस्टिपेशन से परेशान अमिताभ अपना हर एक टेस्ट करवा डालते हैं, लेकिन उनको कोई बीमारी नहीं निकलती, इस पर वो खुश होने के बजाय और ज्यादा परेशान हो जाते हैं। पूरी फिल्म में एक बाप-बेटी के रिश्ते को दिखाया गया है। ये कहानी इमोशन से भरी हुई है लेकिन इसके जड़ में केवल एक चीज है वो है मोशन। फिल्म में दीपिका की मौसी का किरदार निभा रही मौसमी चैटरजी कहती हैं कि आपको कांस्टिपेशन पेट में नहीं बल्कि दिमाग में है। उनकी ये बात भी बिल्कुल सही है। कांस्टिपेशन की बीमारी का दिमाग से संबंध होता है जो लोग परेशान रहते हैं उन्हें पेट की दिक्कतें भी शुरू हो जाती हैं।
तो अब हम लोग बात करते हैं इंडियन और वेस्टर्न टॉयलेट की। तो एक बात बिल्कुल सही है कि इंडियन टॉयलेट हर तरह से वेस्टर्न से बेहतर है। ये सारी बातें ऐसी ही नहीं कही जातीं बल्कि इसके पीछे कुछ तार्किक कारण हैं। ये सवाल कोरा पर भी पूछा गया और लोगों ने इसके जवाब अपने-अपने ढंग से दिए, लेकिन इन जवाबों में एक बात जो कॉमन थी वो थी शरीर का पॉश्चर।
इंसान हमेशा से इंडियन स्टाइल को फॉलो कर रहा था
सही ढंग से फ्रेश होने के लिए ढंग से बैठना जरूरी है। सदियों से इंसान इंडियन स्टाइल में बैठकर ही पॉटी कर रहा था लेकिन पश्चिमी सभ्यता के उदय के बाद से ही वहां ये तरीका बदल गया। इसे बेहद आरामदेह और शान-ओ-शौकत वाला तरीका माना जाता है। लेकिन असल में ये बिल्कुल गलत तरीका है।
कोलाइटिस, हेमोराइड्स, कांस्टिपेशन, कोलन कैंसर और एपेंडीसाइटिस जैसी बीमारियों का एक कारण ये समझा जाता था कि ये ज्यादातर डाइट्री फाइबर की कमी की वजह से होती हैं और बाथरूम पॉश्चर इसका एक बहुत छोटा हिस्सा है। लेकिन स्ट्रेंनफर्ड यूनिवर्सिटी की एक स्टडी में इस बात का पता चला है कि असल में ये बीमारियां गलत बाथरूम पॉश्चर की वजह से होती हैं।
भारतीय टॉयलेट में लोग स्कवैट की पोजीशन में बैठते हैं यानी बैठक लागाने का आसन। और यही सही है। ये सिर्फ कांस्टिपेशन की समस्या से पीड़ित लोगों के लिए नहीं बल्कि हर किसी के लिए सही है। इसके पीछे भी एक वैज्ञानिक कारण है। हमारा कोलन 6 फीट लंबा होता है और सारा वेस्ट इसी में इकठ्ठा होता है। यहां से होकर ये रेक्टम में जाता है।
सही पॉश्चर क्यों है जरूरी
प्यूबोरेक्टैलिस नाम की एक मसल होती है जो रेक्टम को चोक करती है। वेस्टर्न टॉयलेट में बैठने के समय ये मसल वेस्ट को बाहर निकालने में दिक्कत पैदा करती है। वहीं इंडियन स्टाइल में बैठने पर ये रुकावट दूर हो जाती है। ये तो हो गई शरीर के अंदरूनी सिस्टम की बात।
इसके अलावा लोग ये भी मानते हैं कि पब्लिक प्लेस पर जितने भी वेस्टर्न टॉयलेट होते हैं वो बेहद गंदे होते हैं। उन्हें हर कोई अलग-अलग तरह से इस्तेमाल करता है और वो बेहद गंदे भी हो जाते हैं। इसके बाद उनपर बैठने का मन नहीं करता। वहीं दूसरी तरफ इंडियन टॉयलेट को गंदा होने पर भी इस्तेमाल किया जा सकता है क्योंकि आपके शरीर का कोई भी हिस्सा इससे छूता नहीं है। ऐसे में कोई भी इन्हें इस्तेमाल कर सकता है।
इंडियन टॉयलेट साफ-सफाई के लिहाज से भी बेहतर
वहीं बैठक लगाने की पोजीशन पर बैठने से थाई मसल भी मजबूत हो जाती है। जिन लोगों को शुरू से ही वेस्टर्न टॉयलेट इस्तेमाल करने की आदत होती है वो अगर एक्सरसाइज नहीं करते तो उनके पैरों की मसल इतनी कमज़ोर होती हैं कि वो दंड बैठक भी लगा नहीं पाते। ऐसे में जिन जगहों पर वेस्टर्न टॉयलेट नहीं होते वहां उन्हें काफी दिक्कत होती है और पैरों में तकलीफ भी शुरू हो जाती है।
ऐसे में अगर आपको अपने इमोशन ठीक रखने हैं तो अपने मोशन को कंट्रोल करना पड़ेगा और वो तभी संभव है जब आप ढंग से सही तरीके का इस्तेमाल करके मोशन करेंगे। ये बात अलग है कि दुनिया भर में वेस्टर्न टॉयलेट का इस्तेमाल हो रहा है लेकिन भारत अभी भी सही तरीके का इस्तेमाल कर रहा है।
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