'जाही विध राखे राम ताहि विधि रहिए, विधि का विधान जान हानि-लाभ सहिए' रामायण की ये चौपाई सृष्टि के कर्ताधर्ता खुद ही अब अच्छे से समझ रहे होंगे। विधाता टेंट में हैं और न जाने कितने समय तक अभी टेंट में ही रहेंगे या फिर कोई ठोस हल निकलेगा।
बाबरी मस्जिद-राममंदिर विवाद को सुलझाने के लिए देश की सर्वोच्च अदालत ने तीन मध्यस्थों के नाम तय कर दिए हैं। प्रधान न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधानपीठ ने मामला मध्यस्थता को भेजे जाने के मुद्दे पर सभी पक्षों की बहस सुनकर अपना फैसला सुनाया।
इन नामों में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस फकीर मुहम्मद इब्राहिम कलीफुल्ला, आर्ट ऑफ लिविंग के प्रमुख श्रीश्री रविशंकर और सीनियर अधिवक्ता श्रीराम पंचू शामिल हैं। पैनल की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के रिटायर जज इब्राहिम खलीफुल्ला करेंगे। इस पैनल को एक हफ्ते के भीतर अपनी सुनवाई शुरू करनी होगी और 2 महीने के अंदर सभी पक्षों से बात करनी होगी। जिसके बाद ये पैनल अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को देगा।
हालांकि इस बीच भी पैनल लगातार कोर्ट को स्टेटस रिपोर्ट सौंपेगा। तीन सदस्यों के इस पैनल के सामने दोनों पक्षकार अपनी बात रखेंगे और ये मध्यस्थता फैजाबाद में होगी। फैजाबाद में होने वाली सुनवाई के लिए सारी व्यवस्था राज्य सरकार को करनी होगी। मध्यस्थता के दौरान प्रिंट मीडिया और टीवी मीडिया पर रोक लगाई गई है, यानी पूरी प्रक्रिया की रिपोर्टिंग नहीं की जाएगी।
आपको बता दें कि इससे पहले भी कई बार मध्यस्थता की कोशिशें हो चुकी हैं, लेकिन हर बार ये कोशिश असफल रही है। हालांकि, ये पहली बार हुआ है कि सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने इस मसले को मध्यस्थता के लिए भेजा है। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या की विवादास्पद 2.77 एकड़ भूमि तीन पक्षकारों-सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला के बीच बराबर-बराबर बांटने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 14 अपीलों पर सुनवाई के दौरान मध्यस्थता के माध्यम से विवाद सुलझाने की संभावना तलाशने का सुझाव दिया था।
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फकीर मुहम्मद इब्राहिम कलीफुल्ला
पूर्व जस्टिस फकीर मुहम्मद इब्राहिम कलीफुल्ला मूल रूप से तमिलनाडु के शिवगंगा जिले में कराईकुडी के रहने वाले हैं। कलीफुल्ला का जन्म 23 जुलाई 1951 को हुआ था। उन्होंने 20 अगस्त 1975 को अपने वकालत करियर की शुरुआत की। वह श्रम कानून से संबंधित मामलों में सक्रिय वकील रहे थे। कलीफुल्ला को पहले मद्रास हाईकोर्ट में स्थाई न्यायाधीश नियुक्त किया गया। इसके बाद उन्हें जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया, उन्हें 2000 में सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस के तौर नियुक्त किया गया और 2011 को कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश बनाया गया।
श्रीराम पंचू
अयोध्या विवाद सुलझाने के लिए बनी कमेटी के दूसरे सदस्य श्रीराम पंचू हैं। श्रीराम पंचू वरिष्ठ वकील हैं, श्रीराम पंचू मध्यस्थता के जरिए केस सुलझाने में माहिर रहे हैं। उन्होंने मध्यस्थता कर केस सुलझाने के लिए द मीडिएशन चैंबर (The Mediation Chambers) नाम की एक कानूनी संस्था भी गठित की है। इस संस्था का काम ही आपसी सुलह के जरिए कोर्ट से बाहर मुद्दों को सुलझाना है। श्रीराम पंचू एसोसिएशन ऑफ इंडियन मीडिएटर्स के अध्यक्ष हैं। वह बोर्ड ऑफ इंटरनेशनल मीडिएशन इंस्टीट्यूट के बोर्ड में भी शामिल रहे हैं। भारत की न्याय व्यवस्था में मध्यस्थता को शामिल करने में उनका अहम योगदान रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने श्रीराम पंचू को विशिष्ट मध्यस्थ (distinguished mediator) और देश के सबसे पुराने मध्यस्थों में से एक बताया है। श्रीराम पंचू देश के कई जटिल और वीवीआईपी मामलों में मध्यस्थता कर चुके हैं. इनमें कमर्शियल, कॉरपोरेट, कॉन्ट्रैक्ट के मामले जुड़े हैं। असम और नागालैंड के बीच 500 किलोमीटर भूभाग का मामला सुलझाने के लिए उन्हें मध्यस्थ नियुक्त किया था। इसके अलावा बंबई में पारसी समुदाय के मामले का निपटारा करने में भी वह मध्यस्थ रह चुके हैं।
श्री श्री रविशंकर
आर्ट्स ऑफ लिविंग के प्रमुख श्री श्री रविशंकर देश के प्रमुख आध्यात्मिक गुरुओं में से एक हैं। इससे पहले भी उन्होंने अयोध्या मामले में मध्यस्थता की कोशिश की थी, इसके लिए वह अयोध्या भी गए थे और पक्षकारों से मुलाकात की थी। श्री श्री रविशंकर इससे पहले भी लखनऊ में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात कर चुके हैं और उन्होंने इस मसले को सुलझाने के लिए एक फॉर्मूला भी पेश किया था। श्री श्री रविशंकर का नाम जैसे ही मध्यस्थ के रूप में सामने आया तो कई पक्षों और बड़े साधु-संतों ने उनका विरोध किया।
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