फ्रेडा बेदी, वो ब्रिटिश महिला जिसने बेहद असामान्य जीवन जिया और भारत की आजादी की लड़ाई में शामिल हो गईं। इंग्लैंड के छोटे से शहर में जन्मीं फ्रेडा अपने प्यार के लिए भारत आई थीं। उनकी जीवनी लिखने वाले एंड्रयू वाइटहेड ने उनकी कहानी में ऐसा ही कुछ लिखा है। लेबल, रंग और पक्षपात से भी गहरी एक चीज होती है, और प्यार उनमें से एक है। ये शब्द फ्रेडा के ही कहे हैं। फ्रेडा अपने ब्वायफ्रेंड बाबा प्यारे लाल बेदी से ऑक्सफोर्ड में मिली थीं। दोनों यहीं पर पढ़ाई कर रहे थे। 1930 की शुरूआत में नस्लीय भेदभाव भी चरम पर था। फ्रेडा को अपने पिता के बारे में ज्यादा कुछ नहीं पता था। उनके पिता पहले विश्व युद्ध में भर्ती हुए, वह मशीन गन कॉर्पस में काम करते थे, जहां सबसे अधिक लोगों की मौत होती थी। जिसके कारण इसे 'सुसाइड क्लब' का नाम मिला था। उत्तरी फ्रांस में उनके पिता की मौत हो गई। उस वक्त फ्रेडा की उम्र महज 7 साल थी।
इसके बाद वह आध्यात्म की खोज के लिए आगे बढ़ीं। फ्रेडा जब ऑक्सफोर्ड में पढ़ रही थीं तो उस समय के युवा काफी चिंतित रहते थे। फासीवाद का उदय तो हो ही चुका था, साथ ही बेरोजगारी भी अपने चरम पर थी। पूरा विश्व एक तरह से खतरे में रह रहा था। उन्होंने कॉलेज में कई दोस्त बनाए और उनके साथ लेबर क्लब और अक्तूबर कम्युनिस्ट की बैठक में शामिल होने लगीं। वह ऑक्सफोर्ड मज्लिस की साप्ताहिक बैठक में भी जाती थीं। यहां छोटी संख्या में भारतीय छात्र भी आते थे, जो अपने देश के राष्ट्रवाद से जुड़े मामलों पर चर्चा करते थे।
उनके पति बीपीएल पंजाबी सिख थे। ऑक्सफोर्ड के महिला कॉलेज में पुरुष और महिला के बीच में दूरी पर विशेष ध्यान दिया जाता था। फ्रेडा प्यारे लाल से मिलती थीं, वो भी बिना किसी संरक्षिका की मौजूदगी में। क्योंकि वह नस्लीय भेदभाव में बिलकुल विश्वास नहीं करती थीं। जब फ्रेडा ने प्यारे लाल से शादी करने की बात कही तो उनके समय की मशहूर राजनीतिज्ञ बारबरा कास्टल हैरान रह गईं। फ्रेडा की मां इस रिश्ते से खुश नहीं थीं। लेकिन जब प्यारे लाल डर्बी आए और उनके परिवार से मिले तो वो सब रिश्ते के लिए मान गए। फ्रेडा का मानना था कि वह ऑक्सफोर्ड की ऐसी पहली अंडरग्रेजुएट छात्रा हैं, जिन्होंने भारतीय छात्र से शादी की।
शादी के वक्त फ्रेडा ने खुद को भारतीय के तौर पर पंजीकृत कराया और भारतीय वेशभूषा पहनी। दंपत्ति नाव से अपने चार माह के बच्चे के साथ इंटली के ट्रीसटी रवाना होकर मुंबई आ गए। ये दो हफ्ते का सफर था। नाव से उतरने के बाद सात घंटे तक उनके बैग आदि की जांच की गई कि कहीं वह वामपंथी विचारों के प्रचार के लिए तो नहीं आए हैं। प्यारे लाल का घर पंजाब के करतारपुर में स्थित था। फ्रेडा का रहन सहन अलग था फिर भी वह अपने भारतीय परिवार के रंग में ढलना चाहती थीं।
जब दूसरा विश्व युद्ध शुरू हुआ तो दोनों भारत को उसमें घसीटे जाने से खुश नहीं थे। प्यारे लाल को सैन्य भर्ती के दौरान तोड़फोड़ करने को लेकर शिविर में रखा गया। फ्रेडा भारत के लिए अपनी मातृभूमि के खिलाफ हो गई थीं। ब्रिटिश अधिकारियों को भी समझ नहीं आ रहा था कि एक ब्रिटिश महिला को कैसे नियंत्रित करें। उन्हें गिरफ्तार कराने के लिए भी ब्रिटिश अधिकारियों को बुलाया गया। उनसे सवाल पूछने वाला भी हैरान रह गया जब उन्होंने खुद को ऑक्सफोर्ड की छात्रा बताया। क्योंकि सवाल पूछने वाला खुद भी ऑक्सफोर्ड से था।
उस अधिकारी ने कहा कि चिंता मत करो, मुझे ये अजीब नहीं लगा। क्या तुम्हें अंग्रेज महिलाओं को दिए जाने वाले विशेषाधिकार चाहिए? इसपर फ्रेडा ने कहा कि उनके साथ एक भारतीय महिला की तरह ही बर्ताव किया जाए। फ्रेडा को छह माह की जेल हुई। फ्रेडा का कहना है कि यह उनकी किस्मत थी जो उन्हें भारत ले आई। ताकि वह एक अंग्रेज महिला होकर भारत की स्वतंत्रता की मांग करके एक इतिहास बना सकें। उनकी राजनीतिक प्रमुखता स्वतंत्रता के बाद भी बनी रही। 1959 में जब हजारों तिब्बती चीनी उत्पीड़न से बचने के लिए हिमालय आए, तो फ्रेडा ने इन बहादुर शरणार्थियों की मदद करने के लिए खुद को समर्पित कर दिया। वह तिब्बती आध्यात्मिकता में रम गईं। 60 के दशक में, उन्होंने बौद्ध शिक्षाओं के बारे में प्रचार करने के लिए अथक यात्रा की लेकिन अपने देश रहने के लिए कभी नहीं लौटीं।