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'वो पूछता है कि गालिब कौन था? कोई बतलाओ कि हम बतलाएं क्या?' चचा असदुल्ला खां गालिब अपने बारे में कह गए थे कि हमारे बारे में जानना हो तो उन्हीं से पूछो कि उन्हें क्या बताएं, जो पूछ रहे हैं कि उन्हें बताएं क्या?... बात कमबख्त व्हाया... व्हाया... व्हाया एक्सप्रेस है।
बात चचा गालिब कि है तो जवाब भी उन्होंने अपने अंदाज में ही दिया है। खबर उड़ रही है कि लौंडे जुकरबर्ग ने भारत के आम चुनाव 2019 से पहले नेताओं को उन्हीं के अंदाज में बताया है कि अब भला बताओ कि तुम्हें बताएं क्या?
सोशल मीडिया के जादू से सत्ता की सीढ़ियां चढ़ रहे नेताओं को 35 साल के लौंडे जुकरबर्ग ने कायदे से समझा दिया है कि ट्रंप के डंडे ने हमारी हवा टाइट कर रखी है। प्राइवेसी और डेटा लीक की चोरी का इल्जाम सिर माथे लिए घूम रहे हैं, तो सिर भन्ना गया है।
कुल मिलाकर लब्बोलुबाब ये है कि सोशल मीडिया पर इस बार चुनावों में नेताओं की असली परीक्षा होगी। फेसबुक राजनीतिक विज्ञापनों के लिए नियम कड़े करेगा। कंपनी का कहना है कि अमेरिका, ब्रिटेन और ब्राजील में राजनीतिक विज्ञापनों में पारदर्शिता लाने के उसके प्रयास पहले से ही चल रहे हैं।
कंपनी ने अपने विज्ञापन पेज पर एक पोस्ट कर इस बारे में जानकारी दी है और कहा है कि इस साल दुनिया भर में कई जगह आम चुनावों की तैयारियां चल रही हैं। हम बाहरी हस्तक्षेप को रोकने पर लगातार ध्यान दे रहे हैं। हमारे प्लेटफार्म पर जो भी विज्ञापन होगा उसमें लोगों को अधिक सूचना दी जाएगी।
कंपनी ने कहा है कि भारत में फेसबुक एक विज्ञापन लाइब्रेरी शुरू करेगा और आम चुनावों से पहले विज्ञापनों की पुष्टि का नियम लागू करेगा। यानी चुनावों में इस बार ई-प्लेटफॉर्म में बड़े पैमाने पर सोशल इंजीनियरिंग की जाएगी।
कंपनी का कहना है कि अमेरिका, ब्रिटेन और ब्राजील में राजनीतिक विज्ञापन देने वालों को विज्ञापन जारी होने से पहले अपनी पूरी पहचान और स्थान के बारे में पुष्टि अनिवार्य की गयी है। इन विज्ञापनों को सात साल के लिए संग्रहित कर दिया जाता है जिसे कोई भी देख सकता है।
फेसबुक ने कहा है कि नाइजीरिया और युक्रेन में कोई भी विदेशी चुनावी विज्ञापन स्वीकार नहीं किया जायेगा। यूरोपीय संघ में मई में यूरोपीय संसद के लिये होने वाले चुनावों में कंपनी पारदर्शिता उपाय जारी करेगी। कंपनी ने कहा है कि जून के अंत तक इन उपायों को वह दुनियाभर के विज्ञापनदाताओं के लिये उपलब्ध करा देगी।
दुनिया की सबसे बड़ी चेहरा पढ़ने वाली किताब 'फेसबुक' ने पिछले साल इस बात को स्वीकार किया था कि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के लिए काम करने वाले राजनीतिक क्षेत्र की कंपनी कैंब्रिज एनालिटिका ने उसके लाखों उपयोगकर्ताओं से जुड़ी जानकारी को चुरा लिया था।
यानी कुल मिलाकर आने वाला चुनावी मौसम सोशल मीडिया के लिहाज से काफी गरम रहने वाला है। इसमें कोई शक नहीं है कि सभी राजनीतिक दल सोशल मीडिया इंजीनियरिंग पर काफी फोकस करने वाले हैं। देश के बेरोजगारों को इंटरनेट की दुनिया में समय की कमी भले हो सकती है लेकिन माल-मसाले में कोई कमी नहीं रहने वाली है। लगातार स्क्रॉल करने की बढ़ती आबादी का पूरा मनोरंजन किया जाएगा।