भारत में धर्म-कर्म हर चीज से बड़ा है। इससे भी खास बात कि देश के इतिहास में बड़े-बड़े धर्मगुरु पैदा हुए हैं। जिनमें से कुछ ने तो अपनी कथाओं और ज्ञान से बहुतों का उद्धार किया, सकारात्मक ऊर्जा बिखेरी लेकिन कुछ ऐसे अपवाद के रूप में उभरे जिन्होंने धर्म के नाम पर विवाद के अलावा कुछ नहीं किया। इसके बहुत से उदहारण भारत में देखने को मिल सकते हैं। लेकिन आपको ये जानकर जरूर हैरानी होगी की भारत का एक धर्मगुरु ऐसा भी था जिससे अमेरिका भी डर गया था।
इन आध्यात्मिक गुरुओं के प्रति देश की भोली जनता की श्रद्धा भी देखते ही बनती है। आज से कुछ दशक पहले की बात की जाए तो एक भारतीय आध्यात्मिक गुरू ने अमेरिकी मीडिया में काफी सुर्खियां बटोरी थी। उस आध्यात्मिक गुरू को अनुयायी भगवान रजनीश, ओशो या सिर्फ भगवान के नाम से जानते थे।
ओशो को भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया के सबसे विवादास्पद आध्यात्मिक गुरुओं की सूची में ऊपरी स्थान दिया जाता है। सेक्स जैसे विषयों पर अपने खुले विचारों को बेबाकी के साथ दुनिया के सामने पेश किए जाने की वजह से ओशो के लिए 'सेक्स गुरू' जैसे शब्दों का भी भरपूर इस्तेमाल किया गया था।
1980 के दशक की शुरुआत में भारतीय मीडिया और सरकार के द्वारा ओशो के विचारों को चुनौती दिए जाने के बाद उन्होनें अपना आश्रम पूना से अमेरिका स्थानांतरित कर लिया। अमेरिकी लोगों के अलावा वहां की सरकार को भी इस बात का अंदाजा नहीं था भारतीय आध्यात्मिक गुरू के नाम खुद का एक शहर भी होगा, जिसे वे रजनीशपुरम के नाम से जानेंगे।
अमेरिकी अधिकारियों को रजनीश के शिष्यों की बढ़ती तादाद ने चौंका दिया था। ओशो के एंटीलोप, ऑरेगन में आगमन के बाद से ही अमेरिकन टीवी पर उनकी बहुत चर्चा थी। जिसकी प्रमुख वजह उनका और उनके सन्यासियों के अजीब तौर-तरीके, रहन सहन, अधिकारियों और स्थानीय लोगों से टकराव की खबरें थीं।
जनमत के आधार पर एंटीलोप का नाम बदलकर रजनीशपुरम कर दिया गया। स्थानीय लोगों ने इसका विरोध किया। इस वजह से स्थानीय लोग और भी असुरक्षित महसूस करने लगे।
अपने चार साल के मौन से बाहर आकर ओशो ने अपने निजी सचिव और प्रवक्ता शीला पर उनके करीबी शिष्यों को जान से मारने का आरोप लगाया था। जिसके बाद ओशो ने अपने अनुयायियों से कहा कि तुम सब आजाद हो। मैं कोई धार्मिक गुरु नहीं। यह कोई संगठित धर्म नहीं, ‘रजनीशईज्म’ यहां खत्म होता है।
अमेरिकी अधीकारीयों ने ओशो को गिरफ्तार कर लिया गया।उन पर फेडरल कानून के तहत 136 से अधिक आरोप लगाये गए। बाद में एफबीआई से उनके कभी अमेरीका न आने की शर्त पर भारत ने उन्हे अपने कब्जे में ले लिया। वर्ष 1990 में उनकी मौत हो गई।